भारत महिला एशियन हॉकी चैंपियन, ओलंपिक के झटके के बाद कैसे किया कमाल?
भारतीय टीम ने लगातार दूसरी बार महिला एशियाई चैंपियंस ट्रॉफ़ी हॉकी चैंपियनशिप का ख़िताब जीतने में सफलता हासिल की है. भारत ने फ़ाइनल में चीन को 1-0 से हराया.
भारत ने ये ख़िताब तीसरी बार जीता है. इस तरह वो ख़िताब जीतने के मामले में दक्षिण कोरिया के बराबर आ गया है.
चीन इससे पहले भी फ़ाइनल में पहुंच चुका है, पर उसकी ख़िताब से दूरी बरकरार रही.
इस बार वो पेरिस ओलंपिक में रजत पदक जीतकर आया था, इसलिए ख़िताब का प्रबल दावेदार माना जा रहा था. लेकिन भारतीय टीम ने उसके सपनों को साकार नहीं होने दिया.
BBC बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिए दीपिका ने फ़ाइनल में भी किया कमालदीपिका को भारतीय टीम की जान माना जाता है. वो फ़ाइनल में भी भारत को पार लगाने वाली साबित हुईं.
उन्होंने पहला हाफ़ गोल रहित रहने के बाद तीसरे क्वार्टर की शुरुआत होते ही हमला बोला और 31वें मिनट में ही पांचवां पेनल्टी कॉर्नर हासिल किया.
इस पर गेंद ढंग से स्टॉप नहीं होने पर नवनीत ने सर्किल के बाहर गेंद रोकी और सर्किल के बाएं खड़ी दीपिका को पास दिया. दीपिका ने सामने दो डिफ़ेंडर देखकर घूमकर जगह बनाई और रिवर्स शॉट से गोल कर दिया.
दीपिका का यह इस चैंपियनशिप में 11वां गोल था. वो गोल करने के मामले में पहले स्थान पर रहीं और उन्हें सर्वाधिक गोल करने का अवॉर्ड मिला. वो सेमीफ़ाइनल में गोल नहीं कर सकी थीं, पर सही मौके पर गोल जमाकर भारत को लगातार दूसरी बार चैंपियन बनाने में अहम भूमिका निभाई.
दीपिका ने इस सफलता के अलावा एक पेनल्टी स्ट्रोक बर्बाद भी किया. भारत को 42वें मिनट में संगीता को सर्किल में गिराने पर पेनल्टी स्ट्रोक मिला. इसे नवनीत कौर के बजाय दीपिका लेने आईं, पर उनकी पुश को चीनी गोलकीपर ने दायां पैर बढ़ाकर रोक दिया.
भारतीय टीम के पेरिस ओलंपिक के लिए क्वालिफाई नहीं कर पाने के बाद हरेंद्र सिंह को टीम का कोच बनाया गया. उन्होंने भारत को पहली सफलता दिलाकर दिखाया है कि वो मिशन 2028 की तरफ़ सफलतापूर्वक बढ़ रहे हैं.
हरेंद्र सिंह ने युवा खिलाड़ियों पर भरोसा किया है. साथ ही प्रीति दुबे को सात साल बाद वापस बुलाया है.
प्रीति भारत के लिए 2016 के रियो ओलंपिक में खेल चुकी हैं, पर 2017 के बाद उन्हें एकदम से भुला दिया गया. पर इस फ़ॉरवर्ड खिलाड़ी ने कोच द्वारा जताए भरोसे पर ख़ुद को खरा उतारा है.
दीपिका की अगुआई में भारतीय टीम में लालरेमसियामी, संगीता कुमारी, शर्मिला और ब्यूटी डुंग डुंग जैसी युवा खिलाड़ी शामिल हैं. ये सभी लंबे समय तक खेल सकती हैं. इससे भारतीय भविष्य उज्ज्वल नज़र आता है.
भारतीय महिला हॉकी में कप्तान सविता पूनिया के ही किस्से मशहूर हैं. लेकिन युवा गोलकीपर बिचू देवी खारिबाम ने जिस तरह का प्रदर्शन किया, वो यादगार रहेगा.
चीन के लिए 22वें मिनट में पेनल्टी कॉर्नर पर डेंग क्यूचान के पहले शॉट को लालरेमसियामी ने चार्ज किया, लेकिन गेंद फिर चीन के कब्ज़े में चली गई. दूसरे शॉट को बिचू देवी ने दाईं तरफ़ डाइव लगाकर हाथ से रोका और रिबाउंड पर लिए गए तीसरे प्रयास को बाहर कर दिया.
बिचू देवी आख़िरी क्वार्टर में भी भारतीय गोल पर तैनात थीं. इस क्वार्टर में चीन ने बराबरी का गोल करने के लिए पूरी ताकत झोंक दी, लेकिन बिचू की मुस्तैदी ने उन्हें गोल जमाने से रोक दिया.
बिचू देवी मणिपुर से ताल्लुक रखती हैं और उनकी हॉकी खिलाड़ी बनने की कहानी बेहद दिलचस्प है.
शुरुआत में वो फ़ुटबॉल खेला करती थीं, लेकिन टीम में चयन न होने पर उनके पिता ने हॉकी अपनाने का सुझाव दिया. 2015 में उन्होंने मणिपुर के लिए झारखंड के ख़िलाफ़ शानदार खेल दिखाया. उनके प्रदर्शन से प्रभावित होकर कोच नेपोलियन सिंह ने उन्हें मध्य प्रदेश से खेलने का सुझाव दिया.
बिचू देवी ने नेपोलियन के सुझाव पर ग्वालियर स्थित अकादमी में दाख़िला लिया. उनकी सफलता में कोच परमजीत सिंह का भी बड़ा योगदान है. वो 2021 में भारतीय टीम में शामिल हुईं और तब से लगातार भारतीय टीम का हिस्सा बनी हुई हैं.
भारतीय टीम को आमतौर पर मज़बूत डिफ़ेंस के लिए नहीं जाना जाता, लेकिन कोच हरेंद्र सिंह, जो ख़ुद डीप डिफ़ेंडर रह चुके हैं.
उन्होंने इस पक्ष को ख़ासा मज़बूत किया है. नेहा, उदिता, ज्योति और सुशीला चानू की मौजूदगी ने भारतीय डिफ़ेंस को अभेद्य बना दिया है.
इस डिफ़ेंस की सबसे बड़ी ख़ूबी उनकी साफ़-सुथरी टेकलिंग और बेहतरीन तालमेल है. इसका नतीजा ये रहा कि चीन, जो पेनल्टी कॉर्नर में काफ़ी मज़बूत माना जाता है, ज़्यादा मौके हासिल नहीं कर सका. भारतीय डिफ़ेंस में बेहतरीन तालमेल भी देखने को मिला.
ANI चीन की टीम लीग मुकाबले में डिफ़ेंसिव खेली थी, जिससे भारतीय डिफ़ेंस की परख नहीं हो सकी थी दोनों पर ही दिखा फ़ाइनल का दबावभारत और चीन दोनों ने शुरुआत तो तेज़ी से की, पर दोनों के प्रदर्शन में सतर्कता नज़र आई. इसकी वजह ये थी कि दोनों को इस बात का अहसास था कि गोल हो जाने पर दबाव हावी हो सकता है. इसी कारण दोनों टीमों ने हमले तो बनाए, पर उन पर पूरा ज़ोर नहीं लगाया.
चीन लीग मुकाबले में डिफेंसिव खेली थी, जिससे भारतीय डिफेंस की परख नहीं हो सकी थी. लेकिन फाइनल में चीन ने अपनी रणनीति बदली और लंबे पास से हमले बनाकर लगातार भारतीय रक्षा पंक्ति की परीक्षा ली.
भारतीय रक्षा पंक्ति में नेहा, सुशीला चानू और उदिता की मुस्तैदी के चलते चीन को पहले हाफ में कोई सफलता नहीं मिल सकी.
भारत को पेनल्टी कॉर्नरों को गोल में बदलने की कमज़ोरी के कारण जापान के खिलाफ खासी परेशानी का सामना करना पड़ा था. ये कमज़ोरी फाइनल में चीन के खिलाफ भी देखने को मिली.
भारतीय कोच हरेंद्र सिंह ने जापान के खिलाफ मुकाबले के बाद कहा था कि हमने पेनल्टी कॉर्नरों पर आठ वेरिएशन अपनाए, लेकिन गोलकीपर यू कुडो के बेहतरीन बचाव से सभी प्रयास विफल रहे.
फाइनल में भारत ने चीन के खिलाफ दूसरे क्वार्टर में पहले तीन पेनल्टी कॉर्नरों पर ड्रैग फ्लिक से गोल करने की कोशिश की. ये प्रयास दीपिका और नेहा ने किए. जब भारत को चौथा पेनल्टी कॉर्नर मिला, तो कोच हरेंद्र ने उदिता के कान में कुछ खास निर्देश देकर भेजा.
उन्होंने इस मौके पर गेंद को इंजेक्शन करने वाली खिलाड़ी को वापस पास किया. लेकिन गेंद पर सही नियंत्रण न होने की वजह से ये मौका भी बर्बाद हो गया. पूरे मैच में इस क्षेत्र में सफलता नहीं मिली.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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