अमेरिका में टिके रहने की 'जंग' लड़ रहे हैं ये भारतीय, देश से निकाले जाने का डर- ग्राउंड रिपोर्ट
वॉशिंगटन डीसी में यूएस कैपिटल हिल बिल्डिंग के सामने हाथ में पोस्टर लेकर खड़े अकेले भारतीय– अनुज क्रिश्चियन.
अनुज ग्रीन कार्ड की क़तार में खड़े लाखों भारतीयों में से एक हैं. अंतर सिर्फ़ इतना कि अनुज इस परिस्थिति को बदलने के लिए कुछ कर रहे हैं.
अमेरिका में स्थायी तौर पर रहने और काम करने के लिए ज़रूरी ग्रीन कार्ड की अर्ज़ी लगाने वाले भारतीयों की तादाद पिछले सालों में तेज़ी से बढ़ी है, लेकिन ग्रीन कार्ड का कोटा सीमित है.
अमेरिकी इमिग्रेशन एजेंसी यूएससीआईएस के मुताबिक़ साल 2023 तक दस लाख से ज़्यादा भारतीय इस क़तार में थे.
अमेरिका में पढ़ाई कर करियर बनाने के लाखों भारतीयों के सपने के बीच ग्रीन कार्ड और वीज़ा के लिए सालों या दशकों का इंतज़ार बड़ा रोड़ा बनता जा रहा है.
हमने अनुज समेत कुछ ऐसे भारतीयों से मुलाक़ात की जो अमेरिकी नीतियों और क़ानून में बदलाव के ज़रिए भारतीयों में अलग-अलग वीज़ा के विकल्पों की जानकारी बढ़ाकर इस चुनौती से निपटने में उनकी मदद कर रहे हैं.
अनुज 15 साल पहले गुजरात से अमेरिका आए पर अब भी एच-1बी वीज़ा पर हैं. उनका आरोप है कि अमेरिका की इमिग्रेशन नीतियां भारतीयों के साथ भेदभाव करती हैं.
अनुज ने बीबीसी से कहा, “ज़्यादातर अमेरिकियों को पता नहीं है कि नौकरी से जुड़े इमिग्रेशन के आवेदकों का चुनाव करने में अमेरिका क़ाबिलियत की जगह इसको ज़्यादा अहमियत देता है कि आप कहाँ पैदा हुए हैं.”
इमिग्रेशन नियमों के मुताबिक हर साल जारी किए जाने वाले 1,40,000 ग्रीन कार्ड में हर देश की कैप या सीमा सात फ़ीसदी है.
ऐसे में भारतीय और चीनी पेशेवरों को नुक़सान होता है क्योंकि ग्रीन कार्ड के लिए आवेदन करने वालों में इन दो देशों के आवेदकों की संख्या बाक़ी देशों से आने वाले पेशेवर कामगारों से कहीं ज़्यादा है.
हमें ऐसे ही कई लोगों ने बताया कि वो दशकों से ग्रीन कार्ड मिलने का इंतज़ार कर रहे हैं. हमने यूएससीआईएस से जब इस पर सवाल करना चाहा तो उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया.
दरअसल समस्या विराट है पर उस पर बोलने वाले कम.
ये भी पढ़ें-अनुज के मुताबिक़, “जो लोग सीधे तौर पर इससे प्रभावित हैं वो डरे हुए हैं और ख़ुद वीज़ा पर हैं तो बहुत परेशान होने के बावजूद खुलकर बोलना नहीं चाहते.”
अनुज भी वीज़ा पर हैं लेकिन गाड़ी निकाली और अमेरिका के सभी पचास राज्यों की कैपिटल बिल्डिंग्स के सामने जाकर ऐसे ही प्रदर्शन किया.
अमेरिकियों से बात की और उन्हें इस मुद्दे के बारे में जागरूक किया. कई जगह उनके समर्थन में और भारतीय भी जुड़ने लगे और अपनी आपबीती बताने लगे.
अमेरिकियों और भारतीयों से मिले इस समर्थन के बल पर अब अनुज ने एक संगठन बनाया है, ‘फेयर अमेरिका’ जो ये मांग कर रहा है कि ग्रीन कार्ड देश के कोटा पर नहीं, आवेदक की काबिलियत पर दिया जाए.
अब इसी चुनौती का एक दूसरा पहलू देखिए, जिसकी लड़ाई लड़ रहे हैं शिकागो में रहने वाले दीप पटेल.
दीप नौ साल के थे, जब अपने मां-बाप के साथ अमेरिका आए. यहाँ के ही स्कूल-कॉलेज में पढ़े, अमेरिकी दोस्त बनाए.
लेकिन जब वो 21 साल के हुए और मां-बाप को तब भी ग्रीन कार्ड नहीं मिला था तो दीप अमेरिका में ग़ैर क़ानूनी हो गए.
इमिग्रेशन नियमों के मुताबिक़ कोई प्रवासी अगर अपने बच्चे के साथ अमेरिका आते हैं और बच्चे के 21 साल के होने तक अगर उनका ग्रीन कार्ड नहीं लगता है तो वो अपने मां-बाप के वीज़ा पर डिपेन्डेन्ट के तौर पर नहीं रह सकते और उसे अपने लिए अलग वीज़ा चाहिए होता है.
अमेरिका में ऐसे ढाई लाख युवा हैं. दीप ने बीबीसी से कहा, “जब मेरा कॉलेज में दाखिले का वक़्त आया तो मुझे एहसास हुआ कि अमेरिकी स्कूलों में पढ़ाई करने के बावजूद अब मुझे अंतरराष्ट्रीय स्टूडेंट माना जाएगा."
"करियर के चुनाव में भी मुझे देखना पड़ा कि किस विकल्प में मैं अमेरिका में रह सकता हूं या मुझे देश छोड़ना होगा. इस सब से बहुत तनाव होता है.”
कुछ लोगों के लिए ये तनाव बर्दाश्त नहीं होता है. भारत में पैदा हुईं अतुल्या राजाकुमार और उनका भाई भी दीप की तरह छोटी उम्र में अपनी मां के साथ अमेरिका आए.
इस मुद्दे को लेकर बनाई यूएस सीनेट ज्यूडिशियरी कमिटी को दिए बयान में अतुल्या ने बताया कि लगातार मानसिक परेशानियों से जूझ रहे उनके भाई ने कॉलेज शुरू करने से पहले ही अपनी जान ले ली.
अतुल्या ने कहा, “यूनिवर्सिटी ऑफ वॉशिंगटन में मेरे भाई की ओरिएंटेशन थी, लेकिन उससे एक दिन पहले आत्महत्या कर ली. अचानक हमारा परिवार बिखर गया. चौबीस घंटे में मैं स्कूल का पेपर लिखने की जगह शोक संदेश लिख रही थी.”
अब दीप वर्क वीज़ा पर और अतुल्या स्टूडेंट वीज़ा पर हैं.
आख़िरकार इनके संगठन, “इम्प्रूव द ड्रीम” की कोशिशों से यूएस कांग्रेस और सीनेट में अमेरिका चिल्ड्रन एक्ट 2023 बिल पेश हुआ ताकि क़ानून के ज़रिए लंबे समय से अमेरिका में वीज़ा पर रहे मां-बाप के बच्चों को ग्रीन कार्ड का हक़ दिया जाए लेकिन वो पारित नहीं हुआ.
जब हमने इसका समर्थन करने वाले डेमोक्रेट पार्टी के कांग्रेसमैन अमी बेरा से बात की तो उन्होंने अगली सरकार के कार्यकाल में इसके पारित होने की उम्मीद जताई.
अमी बेरा ने कहा, “इन युवाओं को हम डॉक्युमेंटेड ड्रीमर्स बुलाते हैं जो बच्चे अपने मां-बाप के साथ क़ानूनी तरीके से यहां आए. यह ही उनका देश है और बड़े होकर उन्हें डिपोर्ट करें ये बिल्कुल सही नहीं है. हमें उम्मीद है कि चाहे रिपब्लकिन हो या डेमोक्रेट जो सरकार भी अब बने वो इस क़ानून को पारित करे.”
कुछ लोगों को ग्रीन कार्ड तो दूर उसकी पहली सीढ़ी एच-1बी वीज़ा भी नहीं मिलता.
चिन्मय जोग पढ़ाई के लिए स्टूडेंट वीज़ा पर पुणे से कैलिफोर्निया आए. फिर जब नौकरी ढूंढी तो वर्क वीज़ा नहीं मिला.
चिन्मय ने बताया, “हर साल 85,000 एच-1बी वीज़ा जारी होते हैं पर आवेदकों की तादाद ज़्यादा है तो यूएससीएईएस ये चुनाव लॉटरी के ज़रिए करती है. पिछले साल करीब चार लाख से ज़्यादा आवेदक थे और वीज़ा बस 85,000 ही दिए गए.”
BBC चिन्मय जोगचिन्मय ने अधिकतम तीन बार एच-1बी वीज़ा के लिए आवेदन किया पर वीज़ा की लॉटरी में उनका नंबर नहीं लगा.
भारत लौटने के अलावा अब उनके पास कोई विकल्प नहीं बचा था. जब उनको एक दूसरे वर्क वीज़ा के बारे में सौंदर्य बालासुब्रहमणी की किताब, ‘अनशैकल्ड’ से पता चला.
ये था O1 वीज़ा. एच-1बी से अलग इस O1 वीज़ा में लॉटरी नहीं काबिलियत आंकी जाती है. एच-1बी के 85,000 के कोटे से अलग इसको लेकर कोई तय संख्या नहीं है. आवेदक सभी नियम पूरे करेगा तो वीज़ा दे दिया जाएगा.
BBC सौंदर्य को O1 वीज़ा के बारे में तब पता लगा जब वो अमेरिकी इमिग्रेशन सिस्टम की जटिलताओं से अपने लिए रास्ता ढूंढ रही थींसौंदर्य ने भी O1 वीज़ा के बारे में तब जाना जब वो अमेरिकी इमिग्रेशन सिस्टम की जटिलताओं से अपने लिए रास्ता ढूंढ रही थीं.
फिर ऐसे और वर्क वीज़ा पर किताब लिखी और नई कंपनी बनाई जिसके ज़रिए अब प्रोफेश्नल सर्विसेज़ देती हैं.
बीबीसी से बातचीत में सौंदर्य ने कहा, “वीज़ा मिलने के बाद कई लोगों ने मुझे बताया कि अब वो रोज़ सुबह इमिग्रेशन के बारे में सोचने की जगह जो करने आए हैं, उस पर ध्यान दे पा रहे हैं. ख़ासतौर पर नई कंपनियों के संस्थापक. संस्थापक तो कुछ नया गढ़ कर नौकरियां पैदा कर देश की मदद कर रहे हैं लेकिन अमेरिका का ध्यान ही नहीं है कि वो उन्हें इसी से रोक रहा है.”
अनुज, दीप, अतुल्य, चिन्मय और सौंदर्य के रास्ते अलग हैं पर मंज़िल एक. अमेरिका आना कुछ हद तक आसान है पर यहाँ रहकर करियर और ज़िंदगी बनाना मुश्किल.
लेकिन अमेरिकी सपने की चमक ऐसी है कि इन सबका हौसला और उम्मीद बरक़रार है.
अमेरिका की डेमोक्रेटिक पार्टी एक लिबरल (उदारवादी) राजनीतिक पार्टी है. इसका एजेंडा मुख्य रूप से नागरिक अधिकारों, सामाजिक सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को आगे बढ़ाना और इनके लिए उपायों को सुनिश्चित करना है.
यही वजह है कि कमला हैरिस का रुख़ इमिग्रेशन को लेकर नरम माना जाता है. रिपब्लिकन पार्टी अमेरिका की रूढ़िवादी पार्टी है. इसे जीओपी या ग्रैंड ओल्ड पार्टी के रूप में भी जाना जाता है. ये पार्टी अप्रवासन विरोध के लिए जानी जाती है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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