मणिपुर की हिंसा से निपटने को लेकर मोदी सरकार पर क्यों उठते हैं सवाल?
मणिपुर में पिछले साल से जारी हिंसा का दौर थम नहीं रहा है. पिछले कुछ दिनों से हिंसा में तेज़ी आई है और 12 दिनों के अंदर 19 लोगों की मौत हुई है.
इंफाल घाटी में स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है. जबकि जिरीबाम ज़िले में भी तोड़फोड़ और हिंसा जारी है.
क़ानून और व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति को देखते हुए कई ज़िलों में कर्फ़्यू जारी है और इंटरनेट भी बंद है.
मणिपुर में मैतेई समुदाय और कुकी जनजाति के बीच हिंसा पिछले 19 महीने से जारी है.
BBC बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिएइस हिंसा में अभी तक कम से कम 250 लोगों की मौत हुई है और 50 हज़ार से ज़्यादा लोग विस्थापित हुए हैं.
ऐसे में यह सवाल पूछा जा रहा है कि केंद्र और राज्य दोनों जगह बीजेपी की सरकार होने के बाद भी हिंसा पर अब तक क्यों नहीं काबू किया जा सका?
केंद्र की मोदी सरकार और राज्य की एन बीरेन सिंह की सरकार इस हिंसा से क्यों नहीं निपट पा रही है?
इस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ब्राज़ील के दौरे पर हैं, जहाँ जी-20 का शिखर सम्मेलन चल रहा है. इससे पहले नरेंद्र मोदी नाइजीरिया गए थे और आगे उन्हें गुयाना भी जाना है.
इन देशों के दौरे पर निकलने से पहले ही मणिपुर में हालात फिर बिगड़ रहे थे लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से कोई बयान नहीं आया है.
विपक्ष का आरोप है कि पीएम मोदी को अपने व्यस्त कार्यक्रम में मणिपुर पर बोलने का समय नहीं है, लेकिन वे एक फ़िल्म को लेकर पोस्ट कर रहे हैं.
पिछले दिनों पीएम नरेंद्र मोदी ने गोधरा कांड पर आई फ़िल्म ‘साबरमती रिपोर्ट’ पर एक पोस्ट किया था. इसके अलावा गृह मंत्री अमित शाह और अन्य मंत्रियों ने भी इस फ़िल्म को लेकर सोशल मीडिया एक्स पर ट्वीट किया था.
तृणमूल कांग्रेस की राज्यसभा सांसद सागरिका घोष ने सोशल मीडिया साइट एक्स पर अपने पोस्ट में लिखा है कि पीएम को एक 'प्रोपेगैंडा फ़िल्म' के बारे में लिखने का समय है, लेकिन उनके पास मणिपुर जाने का समय नहीं है.
सागरिका घोष ने ये भी पूछा कि मणिपुर के सीएम एन बीरेन सिंह में ऐसा क्या ख़ास है कि उन्हें हटाया नहीं जा रहा है.
मणिपुर की ताज़ा स्थिति को देखते हुए ये भी सवाल उठे कि केंद्र सरकार के कई मंत्रियों को चुनाव प्रचार के लिए समय है, लेकिन वे मणिपुर पर ध्यान नहीं दे रहे हैं.
इसके बाद गृह मंत्री अमित शाह ने महाराष्ट्र में अपनी कई चुनावी सभाओं को स्थगित कर मणिपुर की स्थिति पर आपात बैठक की.
अमित शाह ने लगातार दो दिन बैठक की और फिर केंद्र सरकार ने सुरक्षाबलों की 50 कंपनियाँ मणिपुर रवाना कीं.
ये भी पढ़ेंलेकिन विपक्ष केंद्र के इस फ़ैसले से ख़ुश नहीं है और उस पर सवाल उठा रहा है.
पूर्व वित्त मंत्री और कांग्रेस के राज्यसभा सांसद पी चिदंबरम ने कहा है कि और अधिक केंद्रीय सुरक्षाबलों को भेजना मणिपुर संकट का जवाब नहीं.
उन्होंने एक्स पर पोस्ट करते हुए लिखा है, "ये मान लेना चाहिए कि मुख्यमंत्री बीरेन सिंह इस संकट की वजह हैं और उन्हें तुरंत हटा देना चाहिए."
पी चिदंबरम ने ये भी मांग की कि पीएम नरेंद्र मोदी को मणिपुर जाना चाहिए और वहाँ के लोगों से बात करनी चाहिए.
लोकसभा में विपक्ष के नेता और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने भी कई बार इस मुद्दे को उठाया और ख़ुद वो मणिपुर दौरे पर भी गए और पीड़ित लोगों से मिले.
पहली बार पीएम नरेंद्र मोदी ने 20 जुलाई को संसद के बाहर मणिपुर मामले पर टिप्पणी की थी. उस दौरान मणिपुर में दो महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाने और उनके साथ दुर्व्यवहार करने का एक वीडियो सोशल मीडिया पर आया था.
पीएम ने अपने बयान में कहा था, "मणिपुर की घटना से मेरा हृदय पीड़ा से भरा है. यह किसी भी सभ्य समाज को शर्मसार करने वाली घटना है. मैं मुख्यमंत्रियों से अपील करता हूं कि वो अपने-अपने राज्यों में क़ानून व्यवस्था मज़बूत करें."
बाद में पीएम मोदी ने संसद में भी बयान दिया था और कहा था कि मणिपुर में स्थिति सामान्य करने के लिए सभी को राजनीति से ऊपर उठना चाहिए.
विपक्ष का आरोप है कि इन सबके बावजूद ऐसा हुआ नहीं और हिंसा के बावजूद सीएम बीरेन सिंह पर कोई कार्रवाई नहीं हुई.
हाल ही में राहुल गांधी ने एक बार फिर पीएम से मांग की कि वे मणिपुर का दौरा करें.
ये भी पढ़ेंराज्य के वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप फंजौबम कहते हैं, "सवाल उठने लाज़मी हैं. क्योंकि दोनों जगह बीजेपी की सरकार होने के बाद भी 19 महीनों से हिंसा हो रही है. मणिपुर के लोगों की नाराज़गी की यही प्रमुख वजह भी है. राज्य में आए दिन लोग मर रहे हैं, लेकिन सरकार का एक्शन नज़र नहीं आ रहा है."
उन्होंने कहा कि अगर केंद्र सरकार हिंसा शुरू होने के तीन-चार दिन के भीतर कोई प्रभावी क़दम उठाती तो इतनी तादाद में जान-माल का नुकसान नहीं होता.
सोमवार को राज्य के सीएम एन बीरेन सिंह ने बीजेपी विधायकों की एक बैठक बुलाई.
उन्होंने सोशल मीडिया साइट एक्स पर पोस्ट कर बताया कि इस बैठक में जिरीबाम में निर्दोष लोगों की हत्या की निंदा की गई.
बीरेन सिंह ने कहा कि दोषियों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई की जाएगी और इस मामले में ये सुनिश्चित किया जाएगा कि लोगों को न्याय मिले.
उन्होंने ये भी जानकारी दी कि आफ़्सपा और क़ानून व्यवस्था की स्थिति मज़बूत करने पर भी अहम फ़ैसले किए गए.
ऐसी रिपोर्टें हैं कि बीजेपी विधायकों ने प्रस्ताव पास कर मांग की है कि मौजूदा स्थिति के लिए कुकी चरपमंथियों को ज़िम्मेदार ठहराया जाए और इसे ग़ैर क़ानूनी संगठन घोषित किया जाए.
ये भी पढ़ेंपिछले साल तीन मई को हिंसा शुरू हुई थी, लेकिन गृह मंत्री अमित शाह 26 दिनों बाद 29 मई को मणिपुर के दौरे पर गए थे. उसके बाद दोबारा न तो अमित शाह ने मणिपुर का दौरा किया और पीएम मोदी तो मणिपुर गए ही नहीं.
मणिपुर के चार दिवसीय दौरे पर अमित शाह ने वरिष्ठ अधिकारियों, प्रमुख नेताओं और मैतेई-कुकी समुदाय की प्रमुख हस्तियों के साथ हालात पर बैठक की थी.
राज्य में शांति स्थापित करने के लिए एक शांति कमेटी भी बनाई गई थी.
केंद्र सरकार ने अमित शाह के दौरे के तुरंत बाद 1 जून 2023 को त्रिपुरा कैडर के आईपीएस अधिकारी राजीव सिंह को मणिपुर का नया पुलिस महानिदेशक नियुक्त किया था.
इसके अलावा 15 अक्तूबर को गृह मंत्रालय ने सत्ता पक्ष में बैठे दोनों समुदाय के नेताओं को बातचीत के लिए नई दिल्ली बुलाया था और उन सबको संकल्प दिया था कि मणिपुर में एक भी गोली आगे नहीं चलनी चाहिए. लेकिन राज्य में इसके उलट लगातार हिंसा जारी है.
अब केंद्र ने मणिपुर में तेज़ी से बदलते हालात को देखते हुए इंफ़ाल घाटी के कई इलाक़ों में आफस्पा (आर्म्ड फोर्सेज़ स्पेशल पावर्स एक्ट) को फिर से लागू कर दिया.
साथ ही केंद्रीय सुरक्षा बलों की अतिरिक्त टुकड़ियाँ भी मणिपुर भेजी जा रही हैं.
पूर्वोत्तर राज्यों में बीते तीन दशकों से पत्रकारिता कर रहे समीर के पुरकायस्थ कहते है, "मणिपुर में डेढ़ साल से जिस व्यापक स्तर पर हिंसा हो रही है उसका समाधान सैन्य उपस्थिति नहीं हो सकती. भारत सरकार को समझना होगा कि इस मसले का समाधान राजनीतिक निर्णय है या फिर सैन्य समाधान है.”
“केंद्र ने हिंसा के बाद वहाँ सुरक्षाबलों की तैनाती की है लेकिन हिंसा रुकी कहाँ है? वहाँ सेना भी है. केंद्रीय बलों की कंपनियां और भेजी जा रही हैं. अगर पूर्वोत्तर राज्यों में होने वाली हिंसा को सैन्य समाधान से सुलझाया जाता, तो बीते 70 साल से यहां उग्रवाद की समस्या कब की सुलझ गई होती."
पीएम मोदी के मणिपुर न जाने पर उन्होंने कहा, "केंद्र सरकार ने लड़ाई में उलझे दोनों समुदाय के बीच विश्वास बहाली के कोई उपाय नहीं किए हैं. सरकार का पहला क़दम ये होना चाहिए था कि वो लोगों तक पहुँचती.”
“पीएम मोदी अगर मणिपुर जाते, तो निश्चित तौर पर लोगों में एक भरोसा पैदा होता. पीएम ख़ुद जा नहीं रहे हैं और 19 महीनों से मणिपुर के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह कुकी बहुल इलाके में गए नहीं हैं क्योंकि कुकी उन्हें अब बतौर सीएम स्वीकार नहीं कर रहे हैं. अब तो मैतेई लोग भी सीएम और विधायकों का इस्तीफ़ा मांग रहे हैं तो ऐसी स्थिति में जवाबदेही पीएम मोदी की ही होगी."
ये भी पढ़ेंमणिपुर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष मेघा चंद्रा का आरोप है कि मणिपुर हिंसा को रोकने के लिए केंद्र सरकार ने अब तक ऐसा कोई प्रयास नहीं किया है, जिस पर बात की जा सके.
वो कहते हैं, "केंद्र सरकार राज्य में केंद्रीय सुरक्षा बलों की तैनाती करने की बात करती है, जबकि इतनी तादाद में सुरक्षाबलों के होते हुए आए दिन लोगों की हत्या की जा रही है. विधायकों-मंत्रियों के घरों को जलाया जा रहा है. फिर यह सुरक्षा किसके लिए है. निर्दोष महिलाओं का बलात्कार किया जा रहा है. उनकी हत्या की जा रही है."
उन्होंने कहा कि छोटे मासूम बच्चों की हत्या की जा रही है. क़ानून-व्यवस्था की ऐसी स्थिति के बाद भी सीएम अपनी कुर्सी पर बैठे हुए हैं.
मणिपुर प्रांत के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी एक बयान जारी कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि मणिपुर में पिछले साल शुरू हुई हिंसा अभी तक अनसुलझी है.
आरएसएस ने कहा, "इस हिंसा के कारण निर्दोष लोगों को बहुत नुक़सान उठाना पड़ा है. केंद्र और राज्य सरकार को जल्द से जल्द चल रहे संघर्ष को "ईमानदारी से" हल करना चाहिए."
पिछले दो साल से मणिपुर की बीरेन सिंह सरकार में शामिल रहे एनपीपी के एक विधायक के अनुसार इस हिंसा को रोकने के लिए केंद्र सरकार को राजनीतिक निर्णय लेने की ज़रूरत थी.
अपना नाम प्रकाशित नहीं करने की शर्त पर एनपीपी विधायक कहते हैं, "जब गृह मंत्री अमित शाह के मणिपुर आकर सबसे मुलाक़ात करने के बाद भी हिंसा नहीं रुकी, तो केंद्र को तत्काल राजनीतिक निर्णय लेकर मुख्यमंत्री को हटा देना चाहिए था. प्रदेश में महिलाओं और बच्चों का बेरहमी से क़त्ल किया जा रहा है और फिर भी सीएम अपनी कुर्सी पर बने हुए हैं. इससे यह समझा जा सकता है कि केंद्र को मणिपुर की कोई चिंता नहीं है."
एक सवाल का जवाब देते हुए विधायक कहते हैं, "अगर मुख्यमंत्री को हटा दिया जाता तो प्रदेश की क़ानून-व्यवस्था इतनी नहीं बिगड़ती. बीरेन सिंह ने केंद्र को गुमराह किया है और अपनी सीट बचाने के लिए कई सारे नए बखेड़े खड़े किए हैं.”
“हमारी पार्टी के विधायकों ने प्रधानमंत्री मोदी से दो बार मुलाक़ात की थी. पीएम जिस तरह हमें शांति स्थापित करने को लेकर आश्वासन दे रहे थे, उन उपायों को मुख्यमंत्री ने मणिपुर में लागू ही नहीं किया. पुलिस रिजर्व से हथियार लूटे गए. आम नागरिकों के हाथों में हथियार पहुँच गए, स्थिति बद से बदतर होती चली गई."
मणिपुर हिंसा में केंद्र सरकार की भूमिका और विपक्षी दलों के तमाम आरोपों को ख़ारिज करते हुए मणिपुर प्रदेश बीजेपी के एक प्रवक्ता ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बीबीसी से कहा, "केंद्र सरकार लगातार मणिपुर की मदद करती आ रही है. फिर बात चाहे सुरक्षाबलों की तैनाती की हो या फिर दोनों समुदाय के प्रतिनिधियों को दिल्ली बुलाकर एक साथ बैठकर बातचीत करने की हो. हमारी सरकार के प्रयास के कारण ही बीच में हिंसा रुक गई थी."
उन्होंने कहा कि बातचीत का माहौल बना था लेकिन बाहर से आए उग्रवादियों ने जिरीबाम में फिर हिंसा कर दी.
ये भी पढ़ेंमणिपुर पुलिस हेडक्वार्टर में तैनात एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम प्रकाशित नहीं करने की शर्त पर बताया, "सरकार ने स्थिति को संभालने के लिए सुरक्षा के नज़रिए से काफ़ी मज़बूत बंदोबस्त किए हैं. राज्य में हिंसा शुरू होने के बाद 40 हज़ार से अधिक केंद्रीय सुरक्षा बलों की अतिरिक्त तैनाती की गई. 42 हज़ार से अधिक राज्य पुलिस के जवान तैनात हैं. सेना के लोग हैं."
उन्होंने बताया कि स्थिति को काफ़ी नियंत्रण में रखने की कोशिश हुई है और सुरक्षाबलों के काम करने की एक प्रक्रिया होती है.
पुलिस अधिकारी ने कहा कि किसी भी स्थिति में गोली नहीं चलाई जा सकती और इस हिंसा का एक ही समाधान है और वो है दोनों पक्षों को एक साथ बैठाकर बात की जाए.
एक सवाल का जवाब देते हुए पुलिस अधिकारी ने कहा, "मणिपुर पहले से एक अशांत राज्य रहा है. यहाँ पहाड़ी इलाक़ों में कई जगह पुलिस व्यवस्था के नाम पर किसी तरह की बुनियादी सुविधाएँ नहीं थीं. हिंसा भड़कने के बाद वाहन से लेकर हथियार तक तमाम आवश्यक ज़रूरतों को ठीक किया गया."
पिछले साल मई महीने की शुरुआत से ही मणिपुर के मैतेई और कुकी समुदाय के बीच हिंसा का दौर शुरू हुआ था.
राज्य के प्रभावशाली मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की माँग को इस हिंसा की मुख्य वजह माना जाता है.
इसका विरोध मणिपुर के पहाड़ी इलाक़ों में रहने वाली जनजातियों के लोगों ने किया, जिनमें मुख्यतः कुकी जनजाति के लोग हैं.
इस हिंसा में कई लोगों की जान जा चुकी है और बड़ी संख्या में लोगों को राहत शिविरों में शरण भी लेनी पड़ी. हिंसा की वजह से राज्य में सार्वजनिक और निजी संपत्ति का भी बड़ा नुक़सान हुआ है.
मणिपुर में रहने वाले देशभर के कई राज्यों के छात्रों की पढ़ाई पर इसका असर पड़ा और हिंसा के बाद सैंकड़ों की संख्या में छात्रों को मणिपुर छोड़कर आना पड़ा था.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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