'जॉइंट थेरेपी' क्या है, जो आमिर ख़ान अपनी बेटी के साथ ले रहे हैं
'मेरी अपने पापा से बात नहीं होती, वो मेरी बात ही नहीं समझते हैं.'
'पहले भाई-बहन के साथ मेरे संबंध अच्छे थे, लेकिन अब ऐसा लगता है कि कुछ टूट सा गया है, उस रिश्ते में.'
दरअसल, दो लोगों का आपस में चाहे कैसा भी रिश्ता हो, दूरियां आ जाती हैं. संवाद टूट जाता है. नतीजा ये होता है कि दिन-ब-दिन ये रिश्ता ख़राब होता जाता है. इसका कोई समाधान भी है?
फ़ैमिली थेरेपी या जॉइंट थेरेपी इसका समाधान हो सकता है. आमिर खान ने नेटफ्लिक्स इंडिया पर विवेक मूर्ति को एक इंटरव्यू दिया. इसमें उन्होंने बताया कि वो और उनकी बेटी इरा ‘जॉइंट थेरेपी’ ले रहे हैं.
BBC बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिए ये भी पढ़ेंवैसे अब भी थेरेपी लेना या मनोचिकित्सक के पास जाने को खराब माना जाता है.
और अक्सर थेरेपी लेने की सलाह जोड़ों को तलाक जैसे मामलों में दी जाती है. ताकि वे संवाद के ज़रिए अपने रिश्ते को बेहतर कर सकें. क़ानूनी तौर पर भी पहले यही सलाह दी जाती है.
आमतौर पर कोई भी किसी को जीवन में अन्य रिश्तों को बेहतर बनाने, संवाद करने, मतभेदों को कम करने के लिए किसी तरह की थेरेपी का सुझाव नहीं देता है.
फैमिली थेरेपी, टॉक थेरेपी का एक हिस्सा है. इसमें विशेषज्ञ एक परिवार या परिवार के कुछ व्यक्तियों को एक-दूसरे को समझने और उनकी समस्याओं को हल करने में मदद करते हैं.
इस थेरेपी का उद्देश्य दो या दो से अधिक परिवार के सदस्यों के बीच संवाद में सुधार करना, उनके रिश्ते में सुधार करना और एक-दूसरे के प्रति उनके गुस्से या नफरत को कम करना है.
अक्सर इस थेरेपी का उपयोग तब किया जाता है, जब या तो कोई व्यक्ति अपने जीवन में होने वाली हर चीज के लिए परिवार या परिवार की कुछ चीजों को जिम्मेदार ठहराता है.
या फिर परिवार के कुछ सदस्यों का व्यवहार उस व्यक्ति को परेशान कर रहा होता है, या पूरा परिवार उस व्यक्ति के व्यवहार से परेशान होता है.
ऐसे में सभी को मिल-बैठकर समस्याओं का समाधान निकालना जरूरी है, लेकिन रिश्ते इतने तनावपूर्ण हो जाते हैं कि बात भी करें तो सार्थक संवाद कम और आरोप-प्रत्यारोप ज्यादा होते हैं.
इसलिए, आपको काउंसलर के पास जाकर यह थेरेपी लेने की ज़रूरत पड़ेगी.
ये भी पढ़ेंनिकिता मुले, मुंबई में क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट के रूप में काम करती हैं.
वह कहती हैं, “भारत जैसे देश में परिवार आधारित व्यवस्था और संस्कृति है, जिसका अर्थ है कि आप एक ही समय में कई लोगों से जुड़े हुए हैं.”
“उनके साथ भावनात्मक, वित्तीय और बहुत ही क़रीबी रिश्ता होता है. इसलिए, ऐसी फैमिली थेरेपी की हमारे देश में वास्तव में सबसे अधिक आवश्यकता है.”
वह कहती हैं, “क्योंकि हमारे पास भावनाओं को जाहिर करने और उन भावनाओं की कश्मकश की अभिव्यक्ति का कोई खास तरीका नहीं होता है.
हम घर में आमतौर पर खाना क्या बनेगा, टीवी पर क्या चल रहा है, रोजमर्रा की चीजों के बारे में बात करते हैं.
लेकिन अक्सर वो बातें पारिवारिक बातचीत का हिस्सा नहीं होती हैं, जिसे कोई दिल ही दिल में कोई महसूस कर रहा होता है, परेशान हो रहा होता है, वो इसे साझा नहीं कर पाते हैं.
चीजें बातचीत से सुलझ सकती हैं, लेकिन लोग इस तरह की बातचीत करने से अक्सर बचते हैं.
BBCफैमिली थेरेपी में परिवार के कई सदस्यों को एक साथ या समूहों में किसी विशेषज्ञ से बात करना शामिल हो सकता है.
जैसे- बच्चे और माता-पिता, भाई-बहन या यहाँ तक कि तीन पीढ़ियाँ भी अपने सवालों के जवाब ढूंढने के लिए एक साथ आ सकते हैं.
इस क्लीनिक वेबसाइट यह भी बताती है कि यह थेरेपी कुछ बातों में मदद कर सकती है:
- अगर घर में किसी की मृत्यु हो गई हो, तो उस अपराधबोध से कैसे निकलें, या अगर एक-दूसरे को दोषी ठहराया जाए, तो क्या करें.
- बुजुर्ग माता-पिता, उनके मध्यम आयु वर्ग के बच्चों और छोटे पोते-पोतियों के बीच संवाद कैसे बनाएं.
डॉ. ओंकार जोशी शिरडी में मनोचिकित्सक हैं. उनके पास आने वाले मरीज़ आमतौर पर ग्रामीण इलाकों से होते हैं. वे मरीज़ों और उनके परिजन के लिए ‘शुभार्थी’ और ‘शुभंकर’ जैसे दो शब्दों का प्रयोग करते हैं.
जैसे- जिस व्यक्ति को मानसिक बीमारी है, उसको वह ‘शुभार्थी’ कहकर संबोधित करते हैं. वहीं, जो उस व्यक्ति की देखभाल करता है, उसको वह ‘शुभंकर’ बताते हैं.
डॉक्टर जोशी, ऐसा इसलिए करते हैं ताकि मानसिक पीड़ा से गुज़र रहे मरीज़ को कोई हीन भावना से न देखे.
डॉ. जोशी कहते हैं, ''मान लीजिए कि घर में कोई अवसादग्रस्त सदस्य है या सिज़ोफ्रेनिया से पीड़ित कोई सदस्य है, जिसका व्यवहार बहुत अशांत है. तो ऐसे समय में वह अक्सर काउंसलिंग के लिए तैयार नहीं होता.''
''ऐसी स्थिति में फिर हम यह काम परिवार के साथ मिलकर करते हैं कि पीड़ित व्यक्ति को कैसे संभालना है. दरअसल, परिवार को अपनी बीमारी के बारे में बताना भी फैमिली थेरेपी का एक हिस्सा है.''
ये भी पढ़ेंक्या लोग इस बात से सहमत हैं कि हमारा रिश्ता टूट गया है और हमें इसे ठीक करने के लिए मदद की ज़रूरत है?
डॉक्टर जोशी कहते हैं, "लोग स्वीकार नहीं करते कि उन्हें इलाज की आवश्यकता है. अभी आठ दिन पहले एक मां-बेटी मेरे पास आईं. माँ सत्तर के पार और बेटी चालीस के पार. लड़की उच्च शिक्षित है, बड़े पद पर कार्यरत है. उनका तलाक हो गया और वह डिप्रेशन में चली गईं."
"मां ने कहा कि उसे दूसरी शादी कर लेनी चाहिए. इस बात को लेकर उनके बीच लगातार झगड़ा हो रहा था और बात इतनी बढ़ गई कि लड़की ने कहा कि अगर मेरी मां मर भी जाए तो मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता."
"उच्च शिक्षित लड़की ने स्वीकार नहीं किया कि उसे मदद की ज़रूरत है. उसने कहा, मां को क्या परेशानी है, उसका इलाज़ किया जाए. जबकि असल में लड़की के डिप्रेशन का इलाज करने की जरूरत थी."
"उसके बाद, वे फैमिली थेरेपी के माध्यम से संवाद कर सकते थे. लेकिन, समस्या यह है कि लोग स्वीकार नहीं करते कि उन्हें थेरेपी की ज़रूरत है, और परिवार के साथ थेरेपी तो बहुत दूर की बात है."
इसलिए, विशेषज्ञ उसी से शुरुआत करते हैं, जो पहले थेरेपी के लिए आता है.
सबसे पहले कुछ क्लिनिकल परीक्षण होते हैं, जिन्हें साइकोमेट्रिक परीक्षण भी कहा जाता है, जिसके बाद व्यक्ति की मानसिक स्थिति की पूरी तस्वीर प्राप्त की जाती है.
मतलब, यह पता लगा जाता है कि मरीज़ का इलाज़ करना कैसे है.
डॉ. जोशी कहते हैं, “यह सब व्यक्ति के स्वभाव, कई चीजों पर उसकी प्रतिक्रियाओं पर निर्भर करता है. फिर चाहे वह कम बोलने वालो हो या खुल कर बात करने वाला हो."
''इस परीक्षण को करने के बाद उस व्यक्ति के गुण-दोष सामने आ जाते हैं. और फिर इस तरह की थेरेपी में हम मरीज़ से पहले उसके आसपास रहने वालों को बताते-सिखाते हैं कि आपके क्या करने से, पीड़ित व्यक्ति को मदद मिल सकती है.''
मनोविज्ञान में पीढ़ीगत आघात की भी एक अवधारणा है. जैसे- सास अपनी बहू के साथ जैसा व्यवहार करती थी, वैसा ही व्यवहार वह सास बनने के बाद अपनी बहू के साथ करेगी
या फिर अगर पिता छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा करते थे और मारते थे तो बेटा भी पिता बनने पर ऐसा ही करेगा.
मतलब यह कि एक पीढ़ी को यदि आघात पहुंचाया जाता है, तो उसके जवाब खोजने के बजाए वही आघात दूसरी पीढ़ी तक पहुंच जाता है.
इस मामले में पुणे की साइकोलॉजिस्ट श्रुतकीर्ति फड़नवीस कहती हैं, “पीढ़ीगत आघात का एकमात्र जवाब फैमिली थेरेपी है. उस आघात को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचने से रोकने के लिए फैमिली थेरेपी अहम है, क्योंकि व्यवहार करने का तरीका, उसके पीछे के विचार हमारे पिछले अनुभवों से बनते हैं.”
“यदि पिता क्रोधित हो, तो बच्चा सोचता है कि पिता वैसा ही व्यवहार करता है. फिर वह अपने बच्चों के साथ भी वैसा ही व्यवहार करता है.”
“किसी को हमें यह बताने की जरूरत है कि हमारे सोचने का तरीका गलत है और सही प्रक्रिया क्या है.”
“इस थेरेपी के माध्यम से, हम सीखते हैं कि हम पीढ़ीगत आघात को कैसे ठीक करें और अगली पीढ़ी से कैसे जुड़ें.”
ये भी पढ़ेंएक बार विशेषज्ञ यह पता लगाने की कोशिश करते हैं कि किस वजह से पारिवारिक रिश्ते ख़राब हुए.
अक्सर ऐसा होता है कि कुछ हो गया हो तो, उसका गुस्सा सालों तक मन में जमा रहता है, लोग उसे भूल नहीं सकते.
साइकोलॉजिस्ट श्रुतकीर्ति कहती हैं, ''ऐसे मामलों में हम एक्सेप्टेंस एंड कमिटमेंट थेरेपी का उपयोग करते हैं. यानी जो हो गया, उसे स्वीकार करें और आगे से बेहतर करने का संकल्प लें.''
श्रुतकीर्ति कहती हैं, ''हम आपको बात को छोड़ना सिखाते हैं, और आगे बढ़ने के तरीके ढूंढने में भी आपकी मदद करते हैं.''
डॉ. जोशी एक और महत्वपूर्ण बात की ओर इशारा करते हैं. वो कहते हैं, “हम जो सहन कर सकते हैं, उसकी सीमा निर्धारित करें. जैसे- बच्चों के सामने कुछ होगा, तो मैं उसे सहन नहीं करूंगी.”
साइकोलॉजिस्ट श्रुतकीर्ति का भी यही मानना है. वो कहती हैं, "हमने सीमा निर्धारण नहीं किया है, या दूसरों के लिए अपनी सीमाएं निर्धारित नहीं की हैं."
"पहले तो ऐसा लगता है कि लोग स्वार्थी हैं, लेकिन बाद में रिश्ते सुधर जाते हैं, क्योंकि एक-दूसरे से उम्मीदें सीमित रहती हैं."
लेकिन, सभी विशेषज्ञ इस बात पर एकमत हैं कि फैमिली थेरेपी को लेकर समाज में जागरूकता उतनी नहीं है, जितनी होनी चाहिए.
निकिता मुले कहती हैं, ''हमें यह सोच किनारे रखनी होगी कि हम घरेलू मामलों के बारे में बाहरी दुनिया से क्यों बात करें. जिन लोगों के पास आप थेरेपी के लिए जाते हैं, वे विशेषज्ञ होते हैं."
"वे आपकी बातें सुनने के बाद, आपको लेकर कोई धारणा नहीं बनाते हैं, बल्कि वे आपको रास्ता ढूंढने में मदद करते हैं."
"लेकिन, अगर आप बिना किसी सहायता के अपने मन में घुसपैठ करते रहेंगे, तो बहस और झगड़े बढ़ जाते हैं और आपके पूरे जीवन पर हावी हो जाते हैं.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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