पंचपति का रोग
छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिले से आई नवनिर्वाचित महिला पंचों की जगह उनके पतियों द्वारा शपथ ग्रहण किए जाने की खबर चिंताजनक इस मायने में भी है कि यह किसी तरह का आश्चर्य या विस्मय नहीं पैदा करती। आम तौर पर इसे इस रूप में लिया जा रहा है कि यह तो होता ही है। मामला खास इसलिए बना क्योंकि इसका विडियो वायरल हो गया। अगर विडियो वायरल न हुआ होता तो शायद ही यह घटना सुर्खियों में आती और किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई भी शायद ही होती। धूमधाम से हुआ कार्यक्रम :
यह इस बात से भी स्पष्ट होता है कि 3 मार्च को कबीरधाम जिले के परसवारा गांव में हुए इस कार्यक्रम के दौरान किसी भी संबंधित व्यक्ति को इसमें कुछ भी गलत नहीं लगा। किसी ने कुछ छुपाने की जरूरत नहीं महसूस की। धूमधाम से गुलाल लगाए माला पहने इन पंच पतियों को शपथ दिलाई गई। पूरे कार्यक्रम का न केवल विडियो बनाया गया बल्कि उसे सोशल मीडिया पर भी डाल दिया गया। वह तो जब विडियो वायरल हुआ और मीडिया की पूछताछ शुरू हो गई, तब स्पष्टीकरण लिए-दिए जाने लगे। सामाजिक पिछड़ापन :
अगर इस गांव की सामाजिक और शैक्षिक स्थिति पर गौर करें तो यह सब अस्वाभाविक भी नहीं लगता। 2011 की जनगणना के मुताबिक 320 परिवारों और 1545 की जनसंख्या वाले इस गांव में महिलाओं और पुरुषों का अनुपात प्रति हजार पर 936 है, जो राज्य के लिंगानुपात (969) के मुकाबले काफी कम है। साक्षरता दर जहां पुरुषों में 82.86% है वहीं महिलाओं में यह महज 51.19% है। जुर्माने की सिफारिश : 50% आरक्षण के प्रावधान की बदौलत पंचायतों में महिलाओं को नुमाइंदगी तो मिल रही है। ताजा आंकड़ों के मुताबिक, देश में अभी पंचायत स्तर पर कुल 32.29 लाख निर्वाचित प्रतिनिधि हैं, जिनमें 15.03 लाख महिलाएं हैं। 46.6% के इस अनुपात को बुरा नहीं कहा जाएगा। लेकिन व्यवहार में पितृसत्ता का साया इसे निरर्थक बना देता है। इसी वजह से सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर पंचायतों में महिलाओं की जगह उनके पति या अन्य रिश्तेदारों की भूमिका समाप्त करने के लिए समिति भी गठित की गई थी। इस समिति की पिछले महीने आई रिपोर्ट में ऐसे मामलों में भारी जुर्माना लगाने की सिफारिश की गई। जागरूकता की जरूरत :
लेकिन यह मामला जटिल और संवेदनशील है। कड़ी सजा पर जोर का उलटा असर हो सकता है। विडियो वायरल होने की वजह से परसवारा भले सुर्खियों में आ गया हो, यह ऐसा इकलौता गांव नहीं है। अन्य इलाकों से भी इस तरह की खबरें जब-तब सामने आती रहती हैं। ऐसे में कड़ी से कड़ी सजा के बजाय जागरूकता फैलाने पर जोर होना चाहिए। पंचायतों के कामकाज में महिलाओं की भागीदारी और उनका आत्मविश्वास बढ़ाने में प्रशासन की रचनात्मक भूमिका महत्वपूर्ण साबित हो सकती है।
Next Story