यह कैसी कूटनीति

वाइट हाउस में अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप और यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की के बीच शुक्रवार को जिस तरह की तीखी नोकझोंक देखने को मिली, उसे कूटनीति के इतिहास में अभूतपूर्व कहा जा सकता है। लाइव टीवी कवरेज के जरिए पूरी दुनिया ने पहली बार देखा कि दो राष्ट्राध्यक्ष अपनी टीम के साथ एक-दूसरे से तू-तू मैं-मैं कर रहे हैं। बात सही, तरीका गलत : वैसे, दोनों पक्षों के स्टैंड पर गौर करें तो उसमें ऐसी कोई बात नहीं दिखती जिसे सिरे से गलत कहा जाए। रूस-यूक्रेन युद्ध को तीन साल से ज्यादा हो चुके हैं। अमेरिका इस युद्ध में लगातार यूक्रेन के साथ खड़ा रहा है। अब अगर उसे लगता है कि अपने देश के करदाताओं का पैसा इस लड़ाई में नहीं झोंका जाना चाहिए, तो इसमें कुछ भी असंगत नहीं है। इस लिहाज से उसकी यह कोशिश जायज है कि यह लड़ाई जल्द से जल्द बंद हो। सुरक्षा गारंटी का सवाल :
दूसरी तरफ, यूक्रेन यह सुनिश्चित करना चाहता है कि युद्धविराम के बाद रूस फिर से हमला न कर बैठे। कारण चाहे जो भी हों, उसकी यह शिकायत तथ्यात्मक रूप से सही है कि रूस अलग-अलग बहानों से उस पर हमले करता रहा है, सहमतियां तोड़ता रहा है। ऐसे में जहां अमेरिका पहले समझौता और युद्धविराम पर जोर दे रहा था, वहीं यूक्रेन पहले सुरक्षा गारंटी चाहता था। गतिरोध अस्वाभाविक नहीं : दो देशों के बीच सहमति बनने से पहले इस तरह का गतिरोध आना कोई नई या अस्वाभाविक बात नहीं है। नई बात यह हुई कि इन मतभेदों पर चर्चा मीडिया के सामने शुरू हो गई। चूंकि बातचीत वाइट हाउस में हो रही थी, इसलिए स्वाभाविक ही इसकी जिम्मेदारी अमेरिका पर आ जाती है। राष्ट्रपति ट्रंप ने खुद भी उसी समय इस पूरी नोकझोंक को ‘ग्रेट टेलिविजन’ करार दिया। आगे क्या :
मकसद चाहे जो भी रहा हो, इस पूरे प्रकरण से दोनों में से कोई भी पक्ष फायदे में नहीं दिख रहा। अमेरिका जो समझौता यूक्रेन के साथ करना चाहता था, वह टल गया। यूक्रेन को भले ही यूरोप का साथ मिलता दिख रहा है, अमेरिकी समर्थन के बगैर उसका इस युद्ध में टिकना मुश्किल है। ऐसे में बहुत संभव है कि देर-सबेर दोनों फिर बातचीत की टेबल पर आएं। बेहतर होगा कि इंतजार में ज्यादा वक्त और जिंदगियां न बर्बाद की जाएं।
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