भारत सीवेज सिस्टम ठीक करना बड़ी चुनौती, जानिए ये क्यों नहीं बन पाता चुनावी मुद्दा

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नई दिल्ली: अगर आप टूटे-बिखरे और बदहाल सीवेज सिस्टम को ठीक करने का वादा करते हैं तो इस मुल्क में आप चुनाव नहीं जीत सकते। वोट मिलते हैं जाति से, धर्म से, सरकारी वादों से और बिजली-सड़क-पानी के नारों से। अपने देश में सीवेज की समस्या से लोग हर दिन जूझते हैं, फिर ये चुनावी मुद्दा क्यों नहीं है? गंदगी देश की आर्थिक बुलंदी के लिए खतरा बन चुकी है।
कोई भी अमीर मुल्क गंभीर सीवेज समस्या से नहीं जूझ रहा है, ज्यादातर तीसरी दुनिया के मुल्कों में ही ये दिक्कत है।हर अमीर मुल्क में एक तीसरी दुनिया होती है और हर तीसरी दुनिया के मुल्क में उसके अमीर इलाके होते हैं। ये एक समस्या है, सीवेज को अहम मुद्दा बनाने की राह में। अमीर और मध्यवर्गीय लोग सोचते हैं कि ये हमारी समस्या नहीं है। गरीब सोचते हैं, हमें तो बस नौकरी चाहिए या हर महीने कोई सरकारी मदद। हकीकत ये है कि गंध मारता सीवेज किसी को नहीं दिखता। वह सबको बीमार करता है। गंधाते सीवेज के आंकड़े हमें चेता रहे हैं।
स्टैनफोर्ड सोशल इनोवेशन रिव्यू में छपे अनुराग चतुर्वेदी के पेपर के मुताबिक, भारत का 90% सीवेज अनट्रीटेड है, जो तालाबों, झीलों, नदियों में उड़ेला जा रहा है। ये डायरिया से लेकर पर्यावरणीय प्रदूषण तक की वजह बनता है। देश के ज्यादातर बड़े शहरों के सीवेज सिस्टम ठीक से काम नहीं करते। अधिकांश छोटे शहर एक अच्छे सीवेज सिस्टम के लिए तरस रहे हैं। ग्रामीण भारत? उसकी तो सोचिए भी मत। कौन बनेगा सीवेज मैन या वुमन?टॉइलट बनाना अच्छी बात है, लेकिन ये स्वच्छता का सिर्फ एक हिस्सा हैं। कचरा निपटान अहम है।
इस मामले में दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था यानी भारत कई आर्थिक रूप से पिछड़े देशों से भी बेहतर नहीं है। असली बदलाव तब आता है जब कोई समस्या राजनीतिक मुद्दा बने। जो मुद्दा बनाएगा, हो सकता है वह हंसी का पात्र बन जाए। उसे अकेले चलना होगा। देश के लोगों से सीधे बात करनी होगी। क्या कोई ऐसा शख्स है? ऐसे शख्स को मेट्रोमैन ई श्रीधरन जैसा होना होगा। भारत का सीवेज मैन/वुमन वही हो सकता है जिसके पास अच्छी राजनीति समझ हो और उसका व्यक्तित्व भी करिश्माई हो। 1.4 अरब लोगों की खातिर गंदगी साफ करना मुश्किल तो है, लेकिन ऐसा हो जाए तो बदलाव ऐतिहासिक होगा।