बेहतर भविष्य की ओर दुनिया... G20 की दो दिवसीय शिखर बैठक में भारत ने दिखाई दिशा

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नई दिल्ली: ब्राजील के रियो द जनेरियो में हुई G20 देशों की दो दिवसीय सालाना शिखर बैठक जिन कठिन हालात के बीच हो रही थी, उनके मद्देनजर यह कोई तात्कालिक उपलब्धि दिखा पाने में भले सफल नहीं हुई, लेकिन निरंतरता में देखा जाए तो इसने दुनिया के सामने मौजूद चुनौतियों से जूझने के संकल्प को कमजोर नहीं होने दिया है। बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वैश्विक चुनौतियों को भारत के नजरिये से जोड़ कर जिस तरह से उनके संभावित हल की दिशा स्पष्ट की, वह खास तौर पर ध्यान देने लायक रहा।
भुखमरी के खिलाफ एकजुटता बैठक का सबसे महत्वपूर्ण पहलू रहा मेजबान ब्राजील की ओर से शुरू किया गया ‘भुखमरी और गरीबी के खिलाफ एकजुटता’ का अभियान, जिसे 80 देशों का समर्थन पहले ही मिल चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस अभियान की खुली वकालत करते हुए इसे नई दिल्ली शिखर बैठक में फूड सिक्यॉरिटी के लिए अपनाए गए सिद्धांतों पर अमल का प्रयास बताया। ग्लोबल साउथ पर असर भुखमरी और गरीबी के ही संदर्भ में ग्लोबल साउथ का मसला उठाते हुए पीएम मोदी ने ध्यान दिलाया कि दुनिया में चल रहे युद्धों की वजह से खाद्य, तेल और उर्वरक संकटों का सबसे ज्यादा असर ग्लोबल साउथ के देशों पर पड़ा है।
ध्यान रहे, भारत वैश्विक मंचों पर ग्लोबल साउथ की आवाज सबसे प्रभावी अंदाज में उठाता रहा है। वैश्विक संस्थाओं में सुधार G20 जैसे महत्वपूर्ण मंचों पर औपचारिक अजेंडे में हो या न हो, ग्लोबल गवर्नेंस की स्थिति को बेहतर बनाने और वैश्विक संस्थाओं में सुधार सुनिश्चित करने के मुद्दे को उठाना जरूरी इसलिए है कि कई बड़े देश इन मसलों पर सार्थक चर्चा से बचने की कोशिश करते हैं। हालांकि दुनिया के सामने मौजूद चुनौतियों से बेहतर ढंग से निपटने के लिए जरूरी है कि इन वैश्विक संस्थाओं को बदले हालात के अनुरूप ढालने की जिम्मेदारी से आंखें न चुराई जाएं।
अच्छा है कि पीएम मोदी वैश्विक नेताओं को इस जिम्मेदारी की याद दिलाने से नहीं चूके। जलवायु पर उदासीनता कुछ ऐसे भी मसले रहे जिन पर बात आगे नहीं बढ़ सकी। खासकर क्लाइमेट चेंज पर शिखर बैठक की ओर से जारी साझा बयान में क्लाइमेट फाइनेंस को बिलियंस से ट्रिलियंस करने की बात जरूर कही गई, लेकिन यह पैसा कौन देगा, इस बारे में कोई संकेत तक नहीं किया गया। यूक्रेन युद्ध और गाजा-लेबनान युद्ध पर औपचारिकता निभाने से ज्यादा की तो G20 बैठक से उम्मीद भी नहीं की जा सकती थी। बहरहाल, ऐसे कठिन दौर में दुनिया की 85 फीसदी संपत्ति कवर करने वाले G20 देशों का वैश्विक चुनौतियों से आंखें मिलाते हुए उनसे निपटने की प्रतिबद्धता बनाए रखना एक ऐसी बात है जो बेहतर भविष्य की उम्मीदों को जिंदा रखती है।