शिव से प्रेरित 4 योगासन, जो तन और मन का रखते हैं ख्याल, रोजाना प्रैक्टिस के हैं अनगिनत लाभ
भगवान शिव अपनी सौम्य आकृति और रौद्ररूप दोनों के लिए जाने जाते हैं। उनके भोलेनाथ, महादेव, शंकर, शिव, आशुतोष, महेश, रूद्र आदि कई नाम हैं। इसके अलावा उन्हें आदियोगी भी कहा जाता है यानी पहला योगी। भगवान शिव को आदियोगी इसलिए कहा जाता है क्योंकि वे योग के पहले गुरु यानी आदिगुरु थे।
हिंदू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक, भगवान शिव ने ही योग की शुरुआत की थी और सबसे पहले सप्त ऋषियों को योग का ज्ञान दिया था। जिसके बाद इन्हीं ऋषियों ने योग का पूरी दुनिया में प्रचार-प्रसार किया। आज हम आपको शिव से प्रेरित कुछ योगासनों और मुद्राओं के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्हें करने के कई सारे लाभ शरीर को मिलते हैं।
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नटराजासन
नटराजासन,जिसे नर्तकी मुद्रा भी कहा जाता है,भगवान शिव का एक मुख्य आसान माना जाता है। शिव शंकर का एक और नाम नटराज भी है। इसलिए इसे नटराज आसान नाम दिया गया है। इस योग मुद्रा को करने से मांसपेशियां मजबूत बनती हैं,मानसिक एकाग्रता बढ़ती है,शरीर संतुलित होता है और शरीर का पोस्चर सुधरता है।
नटराजासन करने का तरीका
इसे करना बेहद आसान है। इसे करने के लिए सबसे पहले सीधे खड़े हो जाएं। फिर सामने किसी बिंदु पर ध्यान केंद्रित करें। दाएं पैर का घुटना मोड़ते हुए पैर को जितना हो सके,उतना ऊपर की ओर ले जाने की कोशिश करें और अपने दाएं हाथ से दाएं टखने को छूने की कोशिश करें। अपनी बाएं हाथ को सीधे अपने सामने की ओर बढ़ाएं और अपनी नजरें बाएं हाथ पर केंद्रित करें। सामान्य रूप से सांस लेते रहे और कम से कम 20 से 30 सेकंड इस पोज में बने रहें। फिर पहले वाली मुद्रा में वापस आ जाएं और थोड़ा आराम के बाद दूसरे पैर के साथ भी इस आसन को दोहराएं।
हनुमानासन

हनुमानासन को इंग्लिश में मंकी पोज भी कहते हैं। यह एक उन्नत आसन है,जिसका नियमित अभ्यास करने से कमर के आसपास की मांसपेशियां मजबूत होती हैं। पैर टोन होते हैं और कूल्हा लचीला बनता है। यही नहीं इस आसान से आप कमर और पेट की चर्बी को भी कम कर सकते हैं। इसके अलावा इस पोज के अन्य भी कई स्वास्थ्य लाभ हैं। जैसे कि यह दिमाग को शांत करता है और स्ट्रेस,डिप्रेशन,एंग्जाइटी से राहत दिला सकता है।
हनुमानासन करने का तरीका
इसे करने के लिए एक योगा मैट पर घुटनों के बल बैठ जाएं। इसके बाद गहरी सांस लें और अपने हाथों (सिर्फ उंगलियां व अंगूठे रखें) को घुटनों के आगे जमीन पर रखें। अप दाएं पैर को उठाते हुए दोनों हाथों के बीच रख लें। ऐसा करने पर आपका घुटना छाती के पास आ जाएगा। इसके बाद कूल्हों को नीचे दबाते हुए अपने बाएं पैर को धीरे-धीरे करके पीछे खिसकाएं और दाएं पैर को आगे की तरफ बढ़ाएं। जब बाएं पैर का घुटना और दाएं पैर की पिंडली मैट को छूने लगे तो अपने हाथों को सीधा ऊपर उठाकर नमस्ते की मुद्रा बना लें। इस स्थिति में गहरी सांस लें और 15-30 सेकंड तक रुकें।
लिंग मुद्रा
लिंग मुद्रा एक हस्त मुद्रा है,जिसका अभ्यास करने से शरीर में गर्मी पैदा होती है। यह मुद्रा शरीर में अग्नि तत्व को संतुलित करने के लिए जानी जाती है। इसका नियमित अभ्यास करके आप सर्दी-जुकाम,अस्थमा,ब्रोंकाइटिस और साइनस जैसी बीमारियों से दूर रह सकते हैं। इसे करना बेहद आसान है। इसमें दोनों हथेलियों को आपस में मिलाकर अंगुलियों को इंटरलॉक करना होता है।
लिंग मुद्रा करने का तरीका
इस मुद्रा की खास बात ये है कि आप बैठकर और खड़े होकर दोनों तरह कर सकते हैं। इसे करने के लिए दोनों हाथों को छाती के सामने लाकर हथेलियों को आपस में मिलाएं और उंगलियों को इंटरलॉक कर लें। फिर बाएं हाथ के अंगूठे को ऊपरी दिशा की ओर सीधा रखें,जबकि दाएं हाथ के अंगूठे को बंद रखें। इस पोज में 10-15 मिनट तक रहें और इस दौरान सामान्य रूप से सांस लेते रहें।
शांभवी मुद्रा
यह मुद्रा भी भोलेनाथ से प्रेरित मानी जाती है। मान्यताओं के मुताबिक, भगवान शिव ने देवी पार्वती को यह मुद्रा सिखाई थी, जोकि स्त्री शक्ति को सक्रिय करता है। साथ ही इसका नियमित अभ्यास करने से तनाव कम होता है, डिप्रेशन के लक्षणों से आराम मिलता है, एकाग्रता बढ़ती है, दिमाग और शरीर शांत होता है। साथ ही आंखों की मांसपेशियों को मजबूत करने में मदद मिलती है।शांभवी मुद्रा करने का तरीकाइसे करने के लिए सबसे पहले पैरों को क्रॉस करके और पीठ सीधी करके बैठ जाएं। घुटनों पर ज्ञान मुद्रा, चिंमुद्रा या योग मुद्रा बनाएं और अपनी जीभ को तालुका से लगाएं। इसके बाद अपनी दोनों आंखों से अपने आईब्रो यानी भौंहों के बीच ध्यान केंद्रित करें। 5-10 मिनट तक अपनी आईब्रो के बीच में ही देखते रहें। इसके बाद नजरों को सामान्य कर लें और जीभ को तालुका से हटा लें।
डिस्क्लेमर: यह लेख केवल सामान्य जानकारी के लिए है। यह किसी भी तरह से किसी दवा या इलाज का विकल्प नहीं हो सकता। ज्यादा जानकारी के लिए हमेशा अपने डॉक्टर से संपर्क करें। एनबीटी इसकी सत्यता, सटीकता और असर की जिम्मेदारी नहीं लेता है।