नवजात बच्चों पर नहीं हो रहा एंटीबायोटिक दवाओं का असर, एंटीबायोटिक रजिस्टेंस बनी बड़ी समस्या
एंटीबायोटिक रजिस्टेंस दुनियाभर के लिए एक गंभीर समस्या बनकर उभर रही है. एक रिपोर्ट के मुताबिक इसकी वजह से 2050 तक सालाना 10 मिलियन मौतें होने की आशंका है, लेकिन इस समस्या ने अभी से अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है. यही कारण है कि आज ब्लड इंफेक्शन के खिलाफ भी बच्चों की दी जाने वाली एंटीबायोटिक अपना असर नहीं दिखा पा रही है जिससे छोटे बच्चों की मौते हो रही है. बच्चों में सेप्सिस की बीमारी एक गंभीर चिकित्सीय स्थिति है. जिसमें ब्लड सर्कुलेशन में किसी बैक्टीरिया, वायरस या फंगल के कारण ब्लड इंफेक्शन होता है.
द नेचर जर्नल में छपी रिसर्च के मुताबिक, वैश्विक स्तर पर लगभग हर साल 3 से 4 मिलियन बच्चों को ये समस्या देखी जाती है जिसमें से 2 लाख बच्चे हर साल अपनी जान गंवा बैठते हैं. इस बीमारी से बचाव के लिए एंटीबायोटिक्स से इलाज किया जाता है. लेकिन नवजात बच्चों पर इस बीमारी के खिलाफ दी जाने वाली दवाएं असर नहीं कर रही है. दवाओं के शरीर पर असर न करने को एंटीबायोटिक रजिस्टेंस कहते हैं. सेप्सिस के खिलाफ दी जाने वाली दवाओं का असर नहीं हो रहा है. ऐसे में इस बीमारी से पीड़ित बच्चों की मौत हो रही है.
नवजात सेप्सिस विभिन्न प्रकार के वैक्टीरियाओं के कारण हो सता है इसके अलावा कई प्रकार के कवक और वायरस भी इसके लिए जिम्मेदार हो सकते हैं. नवजात सेप्सिस का कारण बनने वाले सबसे आम बैक्टीरिया ग्रुप बी स्ट्रेप्टोकोकस (जीबीएस), एस्चेरिचिया कोली (ई. कोली) और क्लेबसिएला हैं. ये ज्यादातर बैक्टीरिया संक्रमण मां से बच्चे को होते हैं.
नवजात सेप्सिस के लक्षणनवजात सेप्सिस के लक्षण बच्चे की उम्र के आधार पर भिन्न हो सकते हैं. लेकिन सामान्य तौर पर इसमें
– बुखार या शरीर का कम तापमान
– भूख की कमी
– सुस्ती या चिड़चिड़ापन
– तेजी से सांस लेना या सांस लेने में कठिनाई होना
– पीलिया
– त्वचा पर लाल चकत्ते या लालिमा
– और सूजन शामिल है.
नवजात सेप्सिस का इलाजइसका पता लगाने के लिए ब्लड टेस्ट किया जाता है. जिसके बाद प्राथमिक उपचार के तौर पर एंटीबायोटिक्स दवाएं दी जाती हैं.
एंटीबायोटिक रजिस्टेंस बनी बड़ी समस्याएंटीबायोटिक रजिस्टेंस उस स्थिति को कहते हैं जब किसी भी तरह के बैक्टीरिया पर इन एंटीबायोटिक दवाओं का कोई असर नहीं होता क्योंकि बैक्टीरिया इन दवाओं के प्रति इम्यूनिटी विकसित कर चुके होते हैं, जिससे दवा का असर उन पर समाप्त हो जाता है. ऐसे में मरीज का इलाज करना तक मु्श्किल हो जाता है. ये स्थिति एंटीबायोटिक दवाओं के ज्यादा और गलत इस्तेमाल के कारण उत्पन्न होती है. त
हाल ही में किए गए अध्ययनों के मुताबिक नवजात सेप्सिस छोटे बच्चों की मौत का सबसे बड़ा कारण बन गई है. 2018 से 2020 तक बांग्लादेश, ब्राजील, चीन, ग्रीस, भारत, इटली, केन्या, दक्षिण अफ्रीका, थाईलैंड, वियतनाम और युगांडा समेत कई देशों में इस पर रिसर्च की गई है. बच्चों में एंटीबायोटिक रजिस्टेंस की समस्या एक गंभीर समस्या है जिससे आने वाले समय में एंटीबायोटिक्स दवाओं से इलाज करना मुश्किल हो जाएगा. इसलिए इसकी रोकथाम के लिए एंटीबायोटिक दवाओं का ज्यादा और गलत इस्तेमाल करना रोकना अनिवार्य हो गया है.
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