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वो लड़कियां जिन्होंने शिक्षा के लिए अफ़ग़ानिस्तान से भागने का लिया था फ़ैसला

Urdd अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान के क़ब्ज़े के बाद माह ब्रिटेन आ गई थीं

ब्रिटेन में इस हफ़्ते कई लोगों के लिए स्कूल फिर से खुल गए हैं.

लेकिन दूसरी तरफ़ अफ़ग़ानिस्तान है, जहां तालिबान ने महिलाओं और बच्चियों के लिए स्कूल जाने पर प्रतिबंध लगा रखा है, अफ़ग़ानिस्तान की कई सार्वजनिक जगहों पर भी ऐसे प्रतिबंध हैं.

22 साल की 'माह' अगस्त 2021 में तब अपना देश छोड़कर भाग गई थीं, जब तालिबान ने राजधानी काबुल में घुसपैठ की थी.

अब वो ब्रिटेन में पढ़ रही हैं, माह ने इस हफ़्ते इंग्लिश में जीसीएसई (जनरल सर्टिफिकेट ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन) के लिए पढ़ाई शुरू की है और वो बीबीसी न्यूज़बीट से कहती हैं, ''मैं अपने लिए खुश हूं. मैं सुरक्षित हूं. मेरे पास आज़ादी है, मैं आज़ाद हूं.''

वो आगे कहती हैं, ''लेकिन इस वक़्त जो मेरे दोस्त अफ़ग़ानिस्तान में हैं वो कुछ नहीं कर सकते.''

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    अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान के नियंत्रण के क़रीब तीन साल हो गए हैं और इस दौरान महिलाओं की ज़िंदगी पर पाबंदियां बढ़ी हैं.

    महिलाओं और 12 साल की उम्र से अधिक की बच्चियों के स्कूल जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. उन्हें ज़्यादातर यूनिवर्सिटी के एंट्रेस एग़्जाम में बैठने से रोका जाता है.

    उनके काम करने पर रोक है, ब्यूटी सैलून बंद कर दिए गए हैं, वो पार्क, जिम और स्पोर्ट्स क्लब नहीं जा सकती हैं.

    माह कहती हैं, ''जब मैं ख़ुश होती हूं, दोस्तों के साथ बाहर जाती हूं या स्कूल जाती हूं तो मैं अपनी तस्वीरें (वॉट्सअप या इंस्टाग्राम पर) नहीं डालती. क्योंकि मैं नहीं चाहती कि मेरे दोस्तों को (जो अफ़ग़ानिस्तान में हैं) ऐसा महसूस हो कि 'अच्छा वो यूके में है, अब तो वो आज़ाद है.'''

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    माह, कार्डिफ़ में रहती हैं और उनको उम्मीद है कि इंग्लिश में जीसीएसई हासिल करने से वेल्स में मिडवाइफ़ बनना उनके लिए आसान हो जाएगा.

    वो कहती हैं, ''ये मेरे लिए मुश्किल है क्योंकि मैं यहां कॉलेज जा सकती हूं और काम पर जा सकती हूं. लेकिन इसी दौर में मेरे दोस्त जो घर पर हैं वो मेरी ही उम्र के हैं लेकिन अपने घरों से बाहर तक नहीं जा सकते.''

    तालिबान का कहना है कि उसका जो प्रतिबंध है वो धार्मिक मुद्दों के कारण है.

    तालिबान की तरफ़ से ये बार-बार वादा भी किया गया कि एक बार सभी मुद्दे सुलझ जाने के बाद महिलाओं को फिर से एडमिशन दिया जाएगा, वो ये भी कहते हैं कि पाठ्यक्रम ''इस्लामिक'' होगा.

    लेकिन तब से लेकर अब तक प्रतिबंध के मसले पर कोई प्रगति नहीं हुई है, साथ ही अफ़ग़ानिस्तान इकलौता ऐसा देश है जहां इस तरह की पाबंदियां लगाई गई हैं.

    Urdd अफ़ग़ानिस्तान से भागकर कार्डिफ़ में रह रही हैं माह आसान नहीं था माह का सफ़र

    अपने देश से निकलकर ब्रिटेन आना और फिर कार्डिफ़ में शिक्षा हासिल करने का माह का सफ़र इतना आसान नहीं था.

    तालिबान के क़ब्ज़े के वक्त वो पहले हेलमंद प्रांत गईं, वहां से कांधार पहुंचीं और फिर काबुल आईं.

    वहां पहुंचने के तीन दिन बाद उन्होंने देखा कि काबुल की गलियों पर तालिबान का क़ब्ज़ा है.

    वो कहती हैं, ''अगर मैं अफ़ग़ानिस्तान में होती, तो शायद वो लोग मुझे मार देते, या शायद मेरी शादी करा देते. मैंने अपनी मां को फोन किया और कहा, 'मां मैं जा रही हूं.' उन्होंने कहा, 'तुम कहां जा रही हो?' मैंने कहां, 'मुझे नहीं पता'.''

    माह आख़िरकार दूसरे शरणार्थियों के साथ ब्रिटेन पहुंचीं, जहां इनका स्वागत किया गया. वो कहती हैं, ''हम सब ख़ाली हाथ आए थे. मैंने अपनी मां को अच्छे से अलविदा तक नहीं बोला था. मैं उन्हें गले भी नहीं लगा सकी. ये सब मैं कभी नहीं भूलूंगी.''

    वो आगे कहती हैं, ''वो जगह अब सुरक्षित नहीं है, लेकिन अफ़ग़ानिस्तान वो जगह है जहां मैं पली-बढ़ी, स्कूल गई. मैं देश को भूल नहीं सकती, मैं वो सबकुछ बहुत याद करती हूं.''

    Getty Images बच्चियों के स्कूल जाने के अधिकार को लेकर प्रदर्शन करतीं अफ़ग़ान महिलाएं, सितंबर 2021

    कार्डिफ़ में ऐसे मामलों में मदद करने वाले सबसे बड़े युवा संगठनों में से एक 'उर्द' से माह को मदद मिली.

    उर्द की चीफ़ एग्ज़ीक्यूटिव शान लुईस का कहना है कि जो कुछ लोग भागकर वेल्स पहुंचे हैं और यहां उन्होंने पढ़ाई की, अब वो द्विभाषी हो चुके हैं.

    वो कहती हैं, ''शुरुआत में उनकी पढ़ाई लिखाई यहां उर्द में हुई और फिर उनमें से कई वेल्स के अलग-अलग हिस्सों में रहने चले गए. इससे उनके लिए कई दरवाजे़ खुले हैं.''

    जब माह ब्रिटेन पहुंची थीं, तो वो इंग्लिश नहीं बोल पाती थीं.

    वो कहती हैं, ''ये बहुत ही मुश्किल था, मैं किसी को नहीं जानती थी, हर चीज़ मेरे लिए नई थी.''

    लेकिन तीन साल बाद अब माह ने बीबीसी न्यूज़बीट को इंग्लिश में इंटरव्यू दिया है जो कि पूरे 20 मिनट चला है और अब वो वेल्श सीख रही हैं.

    वो कहती हैं, ''यहां के लोगों को हर रोज़ ऊपरवाले का शुक्रिया कहना चाहिए. यहां महिलाओं के पास अधिकार हैं, यहां पर लोगों को जो भी चाहिए सब उनके लिए खुला है, वो सुरक्षित हैं. इन्हें खुश होना चाहिए, ये कितने भाग्यशाली हैं.''

    अक़दास ने भी छोड़ा है अपना देश

    17 साल की अक़दास भी अफ़ग़ानिस्तान छोड़कर दूसरे देश आई हैं. अपने वतन से क़रीब 12 हज़ार मील दूर अक़दास, अमेरिका में रहती हैं.

    उन्हें न्यू मेक्सिको के एक कॉलेज से पूरी तरह से फंडेड स्कॉलरशिप मिली है.

    Aqdas अक़दास ने ऑनलाइन माध्यम से अपनी पढ़ाई जारी रखी थी

    तालिबान ने जिस दिन काबुल पर क़ब्ज़ा किया था, उस दिन को वो याद करते हुए कहती हैं, ''मुझे याद है कि कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं. क्या वो मेरा हक़ छीन लेंगे? क्या मेरी मां ने 20 साल पहले जैसी हिंसा झेली थी, वैसे ही मुझे हिंसा का सामना करना होगा.''

    वो आगे कहती हैं, ''मैंने देखा कि मेरी मां रो रही हैं, वो मेरे कंधे पर हाथ रखकर बताती हैं कि तालिबान की वजह से अब मैं आगे पढ़ाई जारी नहीं रख सकूंगी.''

    लेकिन अक़दास की मां ने उनसे ये भी कहा कि ''तालिबान या फिर किसी भी ऐसी दिक्कत को अपनी ज़िंदगी की कहानी नहीं लिखने देना चाहिए.''

    इसके बाद अक़दास ने हेरात ऑनलाइन स्कूल की मदद से चोरी-छिपे अपनी पढ़ाई ऑनलाइन माध्यम से जारी रखी.

    वो कहती हैं, ''मैंने कभी भी पढ़ाई नहीं छोड़ी. चाहे वो ऑनलाइन तरीके से हो या किसी दूसरे तरीके से.''

    ये अक़दास की ज़िंदगी के कुछ कठिन और अस्त व्यस्त कर देने वाले पल थे.

    जब उन्हें अमेरिका के लिए स्कॉलरशिप मिली तो उन्हें वीज़ा चाहिए था लेकिन अफ़ग़ानिस्तान में दूतावास बंद था.

    Aqdas न्यू मेक्सिको के एक कॉलेज में पढ़ती हैं अक़दास
    'सिर्फ़ लड़कियों की शिक्षा ही मुद्दा नहीं कई और दिक्कतें हैं'

    वो बताती हैं कि इसके बाद वो मेडिकल वीज़ा पर अपने पिता के साथ पाकिस्तान पहुंचीं, क्योंकि महिलाओं को अकेले देश छोड़ने की अनुमति नहीं थी.

    अक़दास ने अब अपनी क्लासेज़ शुरू कर दी हैं लेकिन वो कहती हैं कि अफ़ग़ानिस्तान में कई ऐसी भी चीज़ें हैं जिन्हें नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है.

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    वो कहती हैं, ''बहुत सारे लोग ये सोचते हैं कि अफ़ग़ानिस्तान में केवल लड़कियों की शिक्षा ही इकलौती दिक्कत है. वहां कई और समस्याएं हैं जैसे मेंटल हेल्थ.''

    अक़दास आगे कहती हैं, ''अफ़ग़ानिस्तान में लड़कियां हर रोज़ डिप्रेशन और एंग्ज़ाइटी से गुज़र रही हैं लेकिन कोई मदद नहीं है.''

    ब्रिटेन की सरकार ने बीबीसी न्यूज़बीट से कहा है कि यूनिवर्सिटी और स्कूलों मे महिलाओं पर प्रतिबंध की वो कड़ी निंदा करती है. साथ ही ब्रिटेन की सरकार का कहना है कि वो ''तालिबान से इन फ़ैसलों को वापस लेने और अफ़ग़ान लड़कियों के अधिकारों की सुरक्षा करने का आह्वान करती है.''

    महिलाओं और लड़कियों की शिक्षा पर प्रतिबंध को लेकर तालिबान सरकार की प्रतिक्रिया जानने के लिए न्यूज़बीट ने उनसे संपर्क किया था लेकिन कोई जवाब नहीं मिला.

    बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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