शारदा सिन्हा: 'बिहार कोकिला' का 72 साल की उम्र में निधन
'बिहार की कोकिला' नाम से मशहूर गायिका शारदा सिन्हा नहीं रहीं.
72 साल की उम्र में शारदा सिन्हा ने दिल्ली के एम्स अस्पताल में आख़िरी सांस ली.
पद्मभूषण और पद्मश्री से सम्मानित सिन्हा पिछले कई दिनों से एम्स अस्पताल में भर्ती थीं.
शारदा सिन्हा के बेटे अंशुमान सिन्हा ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म , "आप सब की प्रार्थना और प्यार हमेशा मां के साथ रहेंगे. मां को छठी मईया ने अपने पास बुला लिया है. मां अब शारीरिक रूप में हम सब के बीच नहीं रहीं."
मुश्किल से डेढ़ महीने पहले ही 22 सितंबर को शारदा सिन्हा के पति बृजकिशोर सिन्हा का निधन ब्रेन हेमरेज के कारण हो गया था.
कहा जा रहा है कि अपने पति के निधन के बाद से ही शारदा सिन्हा सदमे में थीं.
मंगलवार को ही शारदा सिन्हा के बेटे अंशुमान सिन्हा ने अपने यूट्यूब चैनल पर अपनी माँ की सेहत से जुड़े अपडेट साझा किए थे.
अंशुमान ने शारदा सिन्हा के लाखों प्रशंसकों को संबोधित करते हुए कहा था, ''माँ वेंटिलेटर पर हैं. बहुत बड़ी लड़ाई में जा चुकी हैं. इस बार काफ़ी मुश्किल है."
"अभी मैंने कन्सेंट साइन किया है. बस आप लोग प्रार्थना कीजिए कि वो लड़कर बाहर आ सकें. अभी उनसे मिलकर आया हूँ. छठी माँ कृपा करें. डॉक्टरों ने बताया कि अचानक उनकी स्थिति बिगड़ गई है.''
Getty Images साल 2018 में शारदा सिन्हा को पद्मभूषण सम्मान से सम्मानित किया गया थाअंशुमान सिन्हा यह जानकारी देते हुए भावुक भी हुए.
समाचार एजेंसी एएनआई से बात करते हुए उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने उनसे बात की थी और हर तरह की मदद का आश्वासन दिया था. संयोग है कि जिस छठ महापर्व के गीतों के लिए शारदा सिन्हा ज़्यादा जानी जाती हैं, उसी पर्व के दौरान उनका देहांत हुआ.
निधन पर शोक जताते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने एक्स पोस्ट में लिखा है, ''सुप्रसिद्ध लोक गायिका शारदा सिन्हा जी के निधन से अत्यंत दुख हुआ है. उनके गाए मैथिली और भोजपुरी के लोकगीत पिछले कई दशकों से बेहद लोकप्रिय रहे हैं. आस्था के महापर्व छठ से जुड़े उनके सुमधुर गीतों की गूंज भी सदैव बनी रहेगी. उनका जाना संगीत जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है. शोक की इस घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके परिजनों और प्रशंसकों के साथ हैं. ओम शांति!''
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शोक जताते हुए कहा है, ''शारदा सिन्हा के छठ महापर्व पर सुरीली आवाज़ में गाए मधुर गाने बिहार और उत्तर प्रदेश समेत देश के सभी भागों में गूंजा करते हैं. उनके निधन से संगीत के क्षेत्र में अपूरणीय क्षति हुई है.''
आरजेडी के राष्ट्रीय लालू प्रसाद यादव, पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती राबड़ी देवी और तेजस्वी प्रसाद यादव ने निधन पर गहरी शोक जताया है.
लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने एक्स पर लिखा है, ''अपनी मधुर आवाज़ के लिए प्रसिद्ध लोक गायिका शारदा सिन्हा जी के निधन की ख़बर बेहद दुखद है. उनके शोकाकुल परिजनों एवं प्रशंसकों के प्रति अपनी गहरी संवेदनाएं व्यक्त करता हूं.''
हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, शारदा सिन्हा 2018 से मल्टिपल मायलोमा से जूझ रही थीं. यह एक तरह का ब्लड कैंसर है. इसमें बोन मैरो में प्लाज्मा सेल अनियंत्रित तरीक़े से बढ़ने लगते हैं. इससे हड्डियों में ट्यूमर्स बनने लगते हैं.
शारदा सिन्हा लोकगीतों के लिए ज़्यादा जानी जाती हैं लेकिन उनकी आवाज़ लोकप्रिय हिन्दी सिनेमा में भी गूंजती रही है.
उन्हें उत्तर भारत के सांस्कृतिक राजदूत के रूप में भी देखा जाता है. बिहार और पूर्वांचल में छठ पर्व के दौरान शारदा सिन्हा की आवाज़ लगभग सभी घरों में गूंजती है.
Getty Images शारदा सिन्हा के परिवार में गायकी की कोई पृष्ठभूमि नहीं थीशारदा सिन्हा की गायकी करियर की शुरुआत 1970 के दशक में हुई थी. सिन्हा ने भोजपुरी, मैथिली और हिन्दी में कई लोकगीत गाए हैं. उनकी गायकी में बिहार से पलायन और महिलाओं के संघर्ष को काफ़ी जगह मिली है.
फ़िल्म 'हम आपके हैं कौन' में बाबुल गाने को शारदा सिन्हा ने ही गाया था. यह गाना आज भी बेटियों की शादी के बाद विदाई के दौरान नियम की तरह बजाया जाता है.
2018 में शारदा सिन्हा को भारत के तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था.
शारदा सिन्हा के गाए गीत कई मौक़ों पर अनुष्ठानों में नियम की तरह शामिल होते हैं. वो चाहे जन्म का उत्सव हो या मृत्यु का शोक, चाहे त्योहार हो या मौसम का करवट लेना.
हालांकि शारदा सिन्हा के परिवार में गायकी की कोई पृष्ठभूमि नहीं थी, लेकिन उनके पिता ने भांप लिया था कि उनकी बेटी के भीतर संगीत की ज़मीन बहुत उर्वर है.
शारदा सिन्हा ने 2018 में द हिन्दू से बातचीत में कहा था, ''मेरे पिता हम भाई-बहनों को पूरी छूट देते थे कि जो पसंद है, वही काम करो. मेरे पिता शिक्षा विभाग में थे."
"उनका तबादला होता रहता था, लेकिन गर्मी की छुट्टियां हम गाँव में ही गुज़ारते थे. यह उनके लिए अनिवार्य था. गाँव में गुज़ारे दिन मेरी सबसे ज़िंदा यादों में से एक हैं. हालांकि वो बचपन के दिन थे. गाँव में ही मैंने लोकगीत सुने थे और वहीं से मेरी दिलचस्पी पैदा हुई.''
शारदा सिन्हा ने द हिन्दू से कहा था, ''मैं छठी क्लास में थी तभी पंडित रघु झा से संगीत सीखना शुरू कर दिया था. रघु झा 'पंच-गछिया' घराना के जाने-माने संगीतकार थे."
"शुरुआत में इन्होंने मुझे सरगम-पलटा और भजन गाना सिखाया था. ऐसे में मैं तकनीकी प्रशिक्षण को लेकर बोर नहीं हुई. मेरे दूसरे गुरु रामचंद्र झा थे और वो भी 'पंच-गछिया' घराने से ही थे."
@shardasinha गायकी में करियर बनाने में पिता का पूरा साथ मिला पिता और पति का साथशारदा सिन्हा का जन्म साल 1953 में बिहार के सुपौल के हुलास गाँव में हुआ था.
उनके पिता बिहार सरकार के शिक्षा विभाग में अधिकारी थे और उन्होंने उनमें गायकी के गुण देखने के बाद उसे सींचने का फैसला किया था.
पिता सुखदेव ठाकुर ने 55 साल पहले दूरदर्शिता दिखाते हुए उन्हें नृत्य और संगीत की शिक्षा दिलवानी शुरू कर दी थी और घर पर ही एक शिक्षक आकर शारदा सिन्हा को शास्त्रीय संगीत की शिक्षा देने लगे थे.
शारदा सिन्हा ने सुगम संगीत की हर विधा में गायन किया, इसमें गीत, भजन, गज़ल, सब शामिल थे लेकिन उन्हें लोक संगीत गाना काफी चुनौतीपूर्ण लगा और धीरे-धीरे वो इसमें विभिन्न प्रयोग करने लगीं.
शादी के बाद इनके ससुराल में इनके गायन को लेकर विरोध के स्वर भी उठे लेकिन शुरू में पति का साथ फिर बाद में सास की मदद से शारदा सिन्हा ने ठेठ गंवई शैली के गीतों को गाया.
शारदा सिन्हा के बाद भी कई लोकगायिकाएं आईं, लेकिन किसी को वो पहचान नहीं मिल सकी जो शारदा सिन्हा को मिली. इसकी एक वजह इनकी ख़ास तरह की आवाज़ है, जिसमें इतने सालों के बाद भी कोई बदलाव नहीं आया था.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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