राज कपूर, दिलीप कुमार और देवानंद की दोस्ती की कहानी

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Mohan Churiwala बॉलीवुड में दिलीप कुमार, देवानंद और राज कपूर की दोस्ती बहुत चर्चित रही थी.

जैसे आज की पीढ़ी शाहरुख़, आमिर और सलमान को स्टार तिकड़ी के तौर पर जानती है, कुछ इसी तरह 50 और 60 के दशक में देवानंद, दिलीप कुमार और राज कपूर का जलवा था.

2022 में दिलीप कुमार के 100 साल पूरे हुए. 2023 को देवानंद के 100 साल पूरे हुए और दिसंबर 2024 में राज कपूर के 100 साल पूरे हुए हैं.

देवानंद, दिलीप कुमार और राज कपूर ने लभगभ एक साथ 40 के दशक में शुरुआत की, तीनों ने साथ-साथ सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ी और दोस्ती भी निभाई.

दौर एक था, लेकिन तीनों का स्टाइल जुदा-जुदा था. अपनी किताब 'खुल्लम खुल्ला' में ऋषि कपूर ने एक दिलचस्प वाकया लिखा था जो तीनों के रिश्ते और उनके बीच के फ़र्क को बयां करता है.

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BBC BBC राज कपूर की चुनिंदा फ़िल्में 13 से 15 दिसंबर के बीच 40 शहरों के 135 सिनेमाघरों में प्रदर्शित की जा रही हैं. RK Films and Studios अपने दो बेटों ऋषि कपूर और रणधीर कपूर (दाएं) के साथ राज कपूर

ऋषि कपूर लिखते हैं, "1999 में चिंपू (राजीव कपूर) की शादी थी. मेरी माँ ने कहा कि हम ख़ुद जाकर यूसुफ़ साब (दिलीप कुमार) और देवानंद को कार्ड देकर आएं. कितने अलग थे दोनों. हम युसूफ़ साब से मिले और उन्होंने हमें राज साब और अपने ढेरों किस्से सुनाए."

"हम दो घंटे बैठे रहे. बेहतरीन ख़ातिरदारी और मेहमान नवाज़ी के बाद निकले और युसूफ़ जी ने कहा कि वो शादी में आएंगे और बोले कि राज बहुत ख़ुश होगा कि उनका सबसे छोटा बेटा शादी कर रहा है."

"वहाँ से हम सीधे देव साब के कमरे में गए. युसूफ़ साब का घर तहज़ीब में डूबा हुआ था वहीं देव साब का कमरा हॉलीवुड पर किताबों से भरा था, सब कुछ अमरीकी."

"अचानक देवानंद अंदर आते हैं. पीली पैंट, संतरी शर्ट, हरा स्वेटर और एक मफ़लर पहने हुए. हमें देखकर बोले- हाई बॉयज़, हाउ आर यू. यू गाएज़ आर लुकिंग डैम गुड."

"जब उन्हें पता चला कि हम क्यों आए हैं तो बोले अच्छी बात है शादी करो, गर्लफ़्रेंड बनाओ. तुम लोगों की गर्लफ़्रेंड है या नहीं. वो इतने डैशिंग थे कि आप उनकी एनर्जी के बहाव में बहने से बच नहीं सकते थे. मैं और डब्बू हैरत में थे कि दोनों में कितना फ़र्क है."

अलग-अलग स्टाइल BBC

जब 1944 में दिलीप कुमार फ़िल्म 'ज्वारभाटा' से फ़िल्मों में क़दम रख रहे थे, उसी समय लाहौर से आए देवानंद हीरो बनने का सपना लिए बॉम्बे में संघर्ष कर रहे थे.

जल्द ही 1946 में उनकी फ़िल्म 'हम एक हैं' रिलीज़ हो गई और एक साल बाद 1947 में नीली आँखों वाले राज कपूर की फ़िल्म आई 'नीलकमल'.

देवानंद की बात करें तो उन्हें हिंदी सिनेमा का पहला अर्बन हीरो कहा जाता है. उनके बारे में सोचते ही एक स्टाइलिश, फ़ैशनेबल शहरी लड़के की छवि निकल कर आती है.

'इंसानियत' जैसी एक-आध फ़िल्म को छोड़ दें तो आपने शायद ही कभी देवानंद को गाँव के लड़के के अंदाज़ में देखा होगा. वे स्पॉनटेनियस स्टाइल के लिए जाने जाते थे.

वहीं दिलीप कुमार ट्रेजडी किंग के तौर पर जाने गए. कभी हारे हुए और ख़ुद को तबाह करने वाले प्रेमी के रूप में 'देवदास' बनकर तो कभी फ़िल्म 'मेला' (1948) में एक बिछड़े हुए प्रेमी के रोल में जो अंत में मौत को गले लगाता है.

हालांकि दिलीप कुमार की रेंज सिर्फ़ ट्रेजडी तक ही सीमित नहीं थी. उन्होंने 'कोहिनूर' जैसी फ़िल्में भी कीं जिसमें कॉमेडी थी.

मेथड एक्टिंग दिलीप कुमार की ख़ूबी थी लेकिन पर्दे पर वो बहुत सहज नज़र आते थे.

दिलीप कुमार की एक्टिंग और राज कपूर Getty Images उस दौर के सोवियत संघ में राज कपूर अपनी फ़िल्मों के कारण बहुत लोकप्रिय थे.

1960 में आई फ़िल्म 'कोहिनूर' का वो किस्सा मशहूर है जहाँ 'मधुबन में राधिका नाचे रे' में दिलीप कुमार को सितार बजाना सीखा.

इधर फ़िल्म की शूटिंग चलती रही उधर दिलीप साहब उस्ताद अब्दुल हलीम जाफ़र ख़ान से तालीम लेते रहे.

शायद इन दोनों के बीच कहीं थे राज कपूर, जिन्होंने ख़ुद को चार्ली चैपलिन वाले सीधे साधे हीरो के रूप में ढाला या कहें पब्लिक ने ढाल दिया.

राज कपूर वो स्टार थे जो 50 के दशक में ही हिंदी फिल्मों को ग्लोबल स्तर पर ले गए.

राज कपूर किस तरह का दर्जा दिलीप कुमार को देते थे जिसका ज़िक्र ख़ुद दिलीप कुमार ने अपनी आत्मकथा 'दिलीप कुमार- द सब्सटांस एंड द शैडो' में किया है.

दिलीप कुमार लिखते हैं, "बात 1980 के दशक की है जब फ़िल्म 'प्रेम रोग' की शूटिंग चल रही थी."

"निर्देशक राज कपूर अभिनेता ऋषि कपूर के चेहरे पर एक हारे हुए प्रेमी की मायूसी, उदासी और लाचारगी देखना चाहते थे. लेकिन बार-बार कोशिश करने पर भी राज कपूर को ऋषि कपूर के चेहरे पर वो भाव नहीं दिख रहे थे."

राज कपूर के सब्र का बाँध टूट गया और पूरी यूनिट के सामने वो ऋषि कपूर पर चिल्ला कर बोले, "मुझे यूसुफ़ चाहिए. चेहरे पर वही दर्द चाहिए जो ऐसा शॉट देते हुए यूसुफ़ की आँखों में होता...वही सच्चाई."

राज कपूर यूसुफ़ ख़ान यानी दिलीप कुमार की बात कर रहे थे.

दिलीप कुमार और देवानंद का राज

तीनों अभिनेताओं ने 50 और 60 के दशक में राज किया लेकिन तीनों को एक साथ देखने का मौक़ा फ़ैन्स को कभी नहीं मिला. हालांकि फ़िल्म 'अंदाज़' में दिलीप कुमार और राज कपूर दोनों थे.

ऋषि कपूर लिखते हैं कि दिलीप कुमार को 'संगम' का रोल ऑफ़र किया गया था लेकिन उन्होंने मना कर दिया था.

वहीं 1955 में देवानंद और दिलीप कुमार ने एक साथ काम किया. 'इंसानियत' एकमात्र ऐसी फ़िल्म थी जहाँ दोनों साथ दिखाई दिए थे.

और ये शायद इक्क-दुक्का फ़िल्मों में से होगी जहाँ आप देवानंद को गाँव के परिवेश में धोती कुर्ता में देख सकते हैं. दो बड़े सितारों वाली ये फ़िल्म कामयाब नहीं हो पाई थी.

राज कपूर और देवानंद दोनों ने 'श्रीमानजी' नाम की एक फ़िल्म में कैमियो किया था हालांकि दोनों के एक दूसरे के साथ कोई सीन नहीं थे.

देव, राज और दिलीप की दोस्ती Penguin Viking देवानंद ने अपनी आत्मकथा, 'रोमांसिंग विद लाइफ़' में लिखा कि राज कपूर के बारे में उन्हें रूस दौरे में जानने का मौक़ा मिला था

ज़ाहिर है तीनों सितारों में कॉम्पिटिशन था, लेकिन बेमिसाल दोस्ती भी थी और जहाँ दोस्ती हो वहाँ ग़लतफ़हमियों की गुंजाइश भी बन जाती है.

इसका संदर्भ देवानंद ने अपनी आत्मकथा 'रोमैंसिंग विद लाइफ़' में दिया जहाँ वो अपने ज़ीनत अमान और राज कपूर के रिश्ते की बात करते हैं.

देवानंद ने लिखा है, "ज़ीनत अमान को मैं फ़िल्मों में लेकर आया. एक समय मुझे लगने लगा कि मुझे उससे प्यार हो गया है. मैंने सोचा कि मैं उसे दिल की बात बताऊँगा. मैं उसे एक पार्टी से लेने गया. लेकिन वहाँ सबसे पहले राज कपूर ज़ीनत से मिले और उन्होंने अपनी बाहें उस पर डाल दीं."

"ऐसा लग रहा था कि ये शायद पहली बार नहीं है. जिस तरह ज़ीनत ने भी इसका जवाब दिया वो भी कुछ ख़ास लग रहा था. ज़ीनत ने राज के पैर छुए. राज ने मेरा हाथ कस के पकड़ लिया मानो किसी ग़लत काम के लिए भरपाई कर रहे हों. मुझे शक़ होने लगा."

"मेरा दिल टूट गया. मैंने एक रिश्ते को अलविदा कहने का फ़ैसला किया जिसमें दोनों ओर से कोई कमिटमेंट तो नहीं था पर वो ईमानदार था."

हालांकि ज़ीनत अमान ने इन सारी बातों का खंडन करते हुए 2023 में अपनी इंस्टाग्राम पोस्ट में लिखा था, "जब मैंने अपना करियर शुरू किया तो ये दिलीप कुमार, देव साब और राज कपूर के गोल्डन ट्रायो का दौर था. राज कपूर जी की फ़िल्म के लिए चुना जाना बड़ी बात थी लेकिन मुझे बिल्कुल पता नहीं था कि देव साब इन बातों को ग़लत समझ रहे हैं."

"जब देव साब की क़िताब आई तो मैं बहुत ग़ुस्से में थी जहाँ उन्होंने इशारा किया कि राज जी और मेरे बीच निर्देशक-हीरोइन के रिश्ते से बढ़कर कुछ था. लेकिन ये भी सच है कि देवानंद एक रेयर टैलेंट थे जिनके लिए मेरे दिल में सिर्फ़ आभार है. मैं देव साब के नाम के प्रति किसी अपमान को बर्दाश्त नहीं करूँगी."

हालांकि देवानंद ने ये बातें अपनी आत्मकथा में राज कपूर के गुज़र जाने के बहुत साल बाद लिखीं और कभी सार्वजनिक तौर पर कुछ नहीं कहा.

अपनी किताब में देवानंद राज कपूर के बारे में लिखते हैं, "हम साथ में सोवियत संघ गए थे. वहाँ राज कपूर हम सब में से लोकप्रिय हस्ती थे. हम जहाँ भी जाते थे, सबकी यही माँग होती थी कि राज कपूर 'आवरा हूँ' गाएँ. वो भी पूरे जोश के साथ पिआनो स्टूल पर बैठकर गाते थे और लोग उन्हें वोदका के गिलास देते थे".

"वो इतने मशहूर थे कि जब भारतीय लोग रूस जाते थे तो वहां पूछा जाता था, क्या आप 'आवारा' की सरज़मीं से हैं? जब जवाहरलाल नेहरू पहली बार सोवियत संघ गए तो वो भी राज कपूर की लोकप्रियता को लेकर कॉम्पलेक्स में आ गए थे."

"बाद में भारत में एक कार्यक्रम में पंडितजी ने हम तीनों यानी मुझे राज और दिलीप को बुलाया था और हमें बाहों में भर लिया था."

दिलीप कुमार ने भी अपनी आत्मकथा में देवानंद और राज कपूर से अपनी दोस्ती के कई किस्से बताए हैं.

इन तीनों सितारों का जन्म अविभाजित भारत के उन हिस्सों में हुआ जो अब पाकिस्तान में हैं.

देवानंद गुरदासपुर से थे तो राज कपूर और दिलीप कुमार पेशावर से.

दिलीप कुमार की किताब पढ़कर आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि इन तीनों के बीच अगर प्रतियोगिता रही होगी तो सम्मान और प्यार का भी नाता था.

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राज कपूर अकसर मीडिया इंटरव्यू में कहा करते थे कि अगर 'कभी दिलीप शादी करेंगे तो मैं घुटनों के बल उनके घर जाउंगा.'

जब असल में दिलीप कुमार का निकाह हुआ तो अपना वादा निभाते हुए राज कपूर वाकई घुटनों के बल दिलीप कुमार के घर गए थे.

जब राज कपूर अपनी आख़िरी साँसे ले रहे थे तो दिलीप कुमार उनसे मिलने गए थे.

दिलीप कुमार की आत्मकथा में ऋषि कपूर ने इसका ज़िक्र कुछ यूँ किया है, "राज साहब की हालत गंभीर थी. दिलीप अंकल राज साहब के कमरे में गए और बोलने लगे -देख राज मैं अभी-अभी पेशावर से आया हूँ... वहाँ के चपली कबाब की खुशबू तेरे लिए अपने साथ लाया हूँ."

"हम दोनों एक साथ पेशावर जाएँगे, गलियों में घूमेंगे, पुराने दिनों की तरह कबाब और रोटी का मज़ा लेंगे. राज तुम मुझे पेशावर वाले घर के आँगन में लेकर जाओगे."

लेकिन उस दिन राज कपूर ने जैसे अपने दोस्त की गुहार भी अनसुनी कर दी.

तीनों दोस्त अब शायद अपने-अपने अंदाज़ में ये सालगिरह मना भी रहे होंगे.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.

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