चूहे के काटने से कैंसर पीड़ित बच्चे की मौत के दावे का क्या है पूरा मामला?
राजस्थान में जयपुर के स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट में कैंसर पीड़ित 10 साल के एक बच्चे की 13 दिसंबर को मौत हो गई.
बच्चे के पिता का आरोप है कि बच्चे की मौत चूहा काटने के बाद हुई ब्लीडिंग की वजह से हुई.
उनका आरोप है कि अस्पताल में बहुत चूहे हैं और. ये चूहे मरीजों के बेड पर चढ़ जाते हैं और उनके बेटे को भी चूहे ने काट लिया था.
लेकिन अस्पताल प्रशासन ने इससे इनकार किया है कि बच्चे की मौत चूहे के काटने से हुई है.
अस्पताल का कहना है कि बच्चा अंतिम स्टेज के कैंसर से पीड़ित था और उसकी मौत निमोनिया और हाइपरटेंशन की वजह से हुई है.
लेकिन इस मामले के तूल पकड़ने के बाद राज्य सरकार ने इसकी जाँच के आदेश दिए हैं.
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BBCये मामला जयपुर के प्रताप नगर में स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट का है, जहाँ राज्य के अलग-अलग हिस्सों से हर दिन सैंकड़ों मरीज़ आते हैं.
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के रहने वाले यशवेंद्र सिंह बीते तीन साल से राजस्थान में भरतपुर ज़िले के डीग में रहते हैं. अंश उनका एकलौता बेटा था.
उन्होंने बीबीसी के साथ बातचीत में कहा, "हमने चार दिसंबर को अंश को अस्पताल में भर्ती कराया था. पीडियाट्रिक वार्ड में टूटी हुई सीलिंग और एसी के बगल से बहुत से चूहे निकलते थे. कई बार शिकायत भी की, लेकिन अस्पताल प्रशासन ने कोई ध्यान नहीं दिया."
उन्होंने आगे बताया, "11 तारीख़ की सुबह क़रीब पाँच बजे चूहे ने अंश के पैर के अंगूठे और उंगली के बीच काट लिया. हलचल होने पर मेरी पत्नी ने कंबल हटाया तो चूहा भाग गया, लेकिन अंगूठे के बगल से ख़ून निकल रहा था. बच्चे की ड्रेसिंग भी हमने ही की. इसके बाद उसकी तबीयत बिगड़ी और 12 तारीख़ को उसे आईसीयू में भर्ती किया गया, लेकिन 13 तारीख़ को उसकी मौत हो गई."
अस्पताल प्रशासन ने परिवार के आरोपों का खंडन किया है
दूसरी ओर अस्पताल प्रशासन का कहना है कि बच्चा अंतिम स्टेज के कैंसर से पीड़ित था और उसकी मौत निमोनिया और हाइपरटेंशन के कारण हुई.
स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट के मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉक्टर संदीप जसूजा ने बीबीसी को बताया, "अंश का कई साल से यहाँ इलाज चल रहा था. वह बीच में ठीक हो गया था. लेकिन फिर से बीमार हो गया. अंश का कैंसर अंतिम स्टेज पर था. ऐसे मामलों में मरीज़ के बचने की संभावना बेहद कम होती है."
चूहे के काटने के आरोप पर वे कहते हैं, "परिजनों को आशंका है कि चूहे ने काटा है. लेकिन बच्चे के पैर पर ड्रेसिंग हो रही थी. चूहे के काटने जैसा कुछ नहीं हुआ. सरकार ने जाँच कमेटी गठित की है. कमेटी जांच करेगी कि क्या सच है. परिजन पोस्टमार्टम नहीं कराना चाहते थे, हमें मालूम होता कि इस तरह मामला बढ़ेगा तो हम पोस्टमार्टम करवाते."
इस मामले में अब तक पुलिस में शिकायत दर्ज नहीं हुई है. इस सवाल पर अंश के पिता यशवेंद्र सिंह कहते हैं, "बच्चे में कुछ नहीं बचा था. क्या पोस्टमार्टम कराते. मैं अभी परिवार को संभाल रहा हूँ. कुछ दिन में जयपुर जाऊँगा, तब शिकायत करूँगा."
परिजनों का कहना है कि चूहे के काटने के बाद ख़ून निकला था. जबकि डॉक्टर संदीप जसूजा कहते हैं कि अंश की बीमारी की वजह से कई जगह घाव बन गए थे और इस कारण उसकी हर दिन ड्रेसिंग भी की जाती थी.
डॉ. संदीप ने कहा, "अंश के प्लेटलेट्स 12 हज़ार के क़रीब थे. जिस कारण घाव से ब्लीडिंग हुई होगी."
लेकिन अंश के पिता यशवेंद्र सिंह इस पर आपत्ति जताते हुए कहते हैं, "अगर प्लेटलेट्स कम होने से ब्लीडिंग हुई है तो पैरों से ही क्यों होगी. नाक, मुँह या कान से क्यों नहीं हुई."
राज्य सरकार ने इस मामले की जाँच के लिए एक कमेटी गठित करने का आदेश दिया है.
चिकित्सा शिक्षा विभाग के सचिव अंबरीश कुमार ने फ़ोन पर बीबीसी को बताया, "हमने इस मामले में एक जाँच कमेटी गठित की है. कमेटी ने स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट जाकर जाँच की है और जल्द ही रिपोर्ट जमा करेगी."
अस्पताल प्रशासन के एक अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया, "यहाँ सफ़ाई टेंडर संभाल रही संस्था का समय पूरा हो गया है. कुछ सफ़ाई कर्मचारी हैं, जिनको कई महीनों से तनख्वाह नहीं मिली है तो वे हड़ताल पर थे."
इस इंस्टीट्यूट में अभी निर्माण का काम भी चल रहा है. अस्पताल परिसर में बदइंज़ामी के हालात नज़र आते हैं. शौचालयों में भी सफ़ाई नहीं है.
नाम नहीं छापने की शर्त पर इंस्टीट्यूट के ही एक डॉक्टर ने कहा, "नर्सिंग स्टाफ़ ने चूहों की समस्या को लेकर कई बार प्रशासन को लिखित में दिया है. लेकिन इस ओर ध्यान नहीं दिया गया."
इंस्टीट्यूट के मेडिकल सुपरिंटेंडेंट डॉक्टर संदीप जसूजा कहते हैं, "सफ़ाई का टेंडर संभाल रही कंपनी को हमने ब्लैक लिस्ट कर दिया है. लेकिन हम सफ़ाई करवा रहे हैं."
इंस्टीट्यूट के बेसमेंट में बने पीडियाट्रिक वार्ड में इस घटना के बाद से लोगों की चिंताएँ बढ़ गई हैं.
यहाँ इलाज कराने आए बच्चे के परिवार कहते हैं कि वो अपने स्तर पर ही टूटी सीलिंग और एसी के आसपास कागज़ लगा रहे हैं, जिससे चूहे बाहर न निकल सकें.
यहाँ जयपुर के कालवाड़ की किरण का ढाई साल का बेटा सिद्धार्थ भर्ती है.
वो बीबीसी से कहती हैं, "बीती रात चूहे सीलिंग पर कूद रहे थे, बाहर वार्ड में निकल आते हैं. हम पूरी रात नहीं सो सके."
अलवर ज़िले के प्रकाश मालदिया का चार साल का बेटा भी यहाँ भर्ती है. बीते छह दिन से वे भी चूहों से परेशान हैं.
वो बताते हैं, "कभी बेड पर चूहे आ जाते हैं, तो कभी दीवार पर लगे पाइप पर चलने लगते हैं. हमने टेप और गत्ते लगा कर छेद बंद किए हैं, लेकिन फिर भी चूहे आ जाते हैं."
वार्ड में ही पाँच साल के मोहम्मद ज़ैद भर्ती हैं. उनको ब्लड कैंसर है. ज़ैद के पिता फ़िरोज़ भीलवाड़ा से इलाज के लिए स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट आए हैं.
फ़िरोज़ फ़ोन में चूहों का वीडियो दिखाते हुए कहते हैं, "कल रात तीन बजे मेरी पत्नी ने वीडियो बनाए हैं. बहुत सारे चूहे निकलते हैं जिनसे बच्चे को बचाने के लिए पूरी रात जाग कर निगरानी करनी पड़ती है."
फिरोज़ के वीडियो में दिखता है कि क़रीब आधा दर्जन चूहे टूटी सीलिंग से निकल रहे हैं. बेड पर मरीज़ों के ऊपर कूद रहे हैं और वार्ड में घूम रहे हैं.
इस बारे में राज्य के स्वास्थ्य मंत्री गजेंद्र सिंह से संपर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन ख़बर लिखे जाने तक उनकी प्रतिक्रिया नहीं आई थी.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.
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