शारदा सिन्हा जिन्हें छठ गीतों के लिए हमेशा याद किया जाएगा, कैसे बनीं 'बिहार कोकिला'

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@shardasinha शारदा सिन्हा (फ़ाइल फ़ोटो)

‘पग-पग लिये जाऊं तोहरी बलैयां’….जैसे गीत के भाव को अपने स्वर से हम सबके भीतर जीवित करने वाली शारदा सिन्हा चली गईं. उनके बिना कोई छठ पूरा नहीं होता, ना ही आगे हो सकेगा.

छठ के गीतों से फिल्मी-गीतों तक इस लोक-कंठ का सफर और यादें किसी मंज़र की तरह स्मृति-पटल पर उभर रही हैं. उनकी आवाज़ कानों में गूंज रही है- वो आत्मीय पल आंखों के सामने आ रहे हैं, जब उनका संग-साथ और आशीष हमें मिला था.

जीजी (मैं उन्हें ऐसे ही पुकारता था) और मुझे जो डोर जोड़ती थी—उसका एक रेशा संगीत था दूसरा था आकाशवाणी. जीजी भी आकाशवाणी परिवार का हिस्सा रहीं. बल्कि गायकी का उनका सफ़र पटना आकाशवाणी से ही शुरू होता है.

ये वो गौरवशाली आकाशवाणी केंद्र रहा है—जिसकी शुरुआत विंध्यवासिनी देवी के स्वर से होती है. 26 जनवरी 1948 को जब पटना केंद्र का उद्घाटन सरदार वल्लभभाई पटेल की मौजूदगी में हुआ तो वहां विंध्यवासिनी देवी ने गाया—‘भइले पटना में रेडियो के शोर/ तनिक खोला सुन सखिया’.

इसी आकाशवाणी केंद्र से शारदा सिन्हा ने भी अपने स्वर के उत्कर्ष का सफर शुरू किया. सन 1973 में शारदा सिन्हा ने जब गाना शुरू किया तो वो सुगम-संगीत से जुड़ी थीं. गीत-ग़ज़ल-भजन गाया करती थीं. उन्हीं दिनों आकाशवाणी पटना में ऑडिशन हुआ.

ऑडिशन के दौरान उन्होंने गीत और ग़ज़ल गाए, लेकिन उनका चुनाव नहीं हो सका. निराश होने की बजाए उन्होंने ये तय किया वो ज़ोरदार मेहनत करेंगी और ख़ुद को साबित करके दिखलायेंगी.

अगली बार शायद छह महीने बाद जब फिर से ऑडिशन हुआ तो बहुत जिद के साथ उन्होंने गाया और इस बार उन्हें चुन लिया गया. आकाशवाणी पटना के ज़रिए उन्हें अपनी शुरुआती लोकप्रियता मिली.

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जब भी वो मुंबई आतीं- तो ख़बर मिल जाती कि कहां उनका कार्यक्रम है और हमें पहुंचना होता था.

मुझे याद है कि 15 अक्तूबर 2022 को उनका मुंबई के चौहान सेंटर में कार्यक्रम था. पासबान-ए-अदब ने उनकी संगीत-संध्या को नाम दिया था अनुभूति. शारदा जीजी ने पहले ही सूचना दे दी थी अपने मुंबई आने की.

हम बाक़ायदा समय लेकर निकले, लेकिन मुंबई मेट्रो निर्माण की वजह से उस दिन कुछ ज़्यादा ही ट्रैफिक था. हमें पहुंचने में इतनी देर हो गयी कि मुझे डर था अब कार्यक्रम ख़त्म हो गया होगा.

वहां पहुंचे तो पता चला कार्यक्रम का शेड्यूल काफ़ी लेट है और अभी शारदा जी आई नहीं हैं. जब उन्हें आयोजन स्थल पर लाया गया तो लिफ़्ट के ठीक सामने हमें देखकर वो खुश हो गईं.

आधी रात बीत चुकी थी. शारदा जीजी और उनकी बेटी वंदना भारद्वाज ने उस दिन क्या समां बांधा. एक से बढ़कर एक गीत वो गाती चली जा रहीं थीं.

चूंकि मुंबई का भूगोल लंबोतरा है, इसलिए लोगों को अपने घर पहुंचने में वक़्त लगता है. समय इतना हो चुका था कि और कोई कलाकार होता तो शायद लोग लौट भी गये होते.

पर जीजी के नाम पर हॉल भरा था और लोग और और गाने की ज़िद किए जा रहे थे.

मुकेश के गानों की मुरीद shardasinha_official

उन्होंने इस मौक़े पर गाया—‘केलवा के पात पर उगेलन सुरूज मल झांके झूंके/हो करेलु छठ बरतिया से झांके झूंके’.

उन्होंने बताया कि ये गीत छठ के अगले दिन सूरज उगने पर गाया जाता है. मुंबई वो शहर है जो एक तरह से तमाम संस्कृतियों का संगम है. जो छठ पटना में गंगा तट पर होता है, वो मुंबई में अरब सागर के किनारे होता है.

उत्तर भारतीय लोग विकलता से शारदा जीजी को सुनते रहे. मानो उनका छठ हो गया उसी समय. कितने अद्भुत थे वो पल.

शारदा जी के साथ जुड़ी एक अनमोल याद ये है कि तकरीबन साल 2018 में एक ऐसा दिन आया जब वो हमारे घर आई थीं. ये वो दौर था जब वो कुछ समय के लिए मुंबई में रह रही थीं.

हमने उन्हें रेडियो स्टेशन पर बुलवाया था इंटरव्यू के लिए. इंटरव्यू मेरी पत्नी ममता कर रही थीं. और चूंकि जीजी की सेहत ठीक नहीं थी—ख़ासतौर पर उन्हें पीठ-दर्द की भीषण समस्या थी तो उन्होंने और अंशुमान (जीजी के पुत्र) ने कहा कि इंटरव्यू ज़्यादा लंबा ना हो और किसी तरह जीजी के लेटने की व्यवस्था की जाए.

इसके बाद ये तय हुआ कि जीजी दोपहर का भोजन हमारे घर पर ही करेंगी और इंटरव्यू के बाद आराम भी यहीं हो जायेगा. मैं कहूंगा कि साक्षात सरस्वती का हमारे घर आगमन हुआ था उस दिन. हम बहुत कहते रहे कि आप अंदर चलकर पलंग पर आराम कर लें—पर वो सोफ़े पर ही सहजता से लेट गयीं और बातें करती रहीं.

उस दिन मैंने उनसे कहा, ‘जीजी अपने मन का कुछ गाइए. जो केवल आप अपने लिए गायें.’ उन्होंने कहा कि मुझे मुकेश के गीत बड़े पसंद हैं और मैं अकेले में अकसर गुनगुनाती हूं.

मैंने जीजी से गाने की चिरौरी की. वे मान गयीं. हमारे घर फिल्मी-गानों की वो छोटी-छोटी पुस्तकें होती हैं. मैंने बड़ी खुशी-खुशी उनके हाथ में मुकेश के गीतों की पुस्तक पकड़ा दी. जिसकी उन्हें ज़रूरत ना थी. वो बस गाती रहीं.

अपनी संस्कृति, समाज का दामन थामे रहीं

फिर याद आता है कि जब कोरोना समय था, हमें ख़बर मिली कि जीजी को कोरोना हो गया है. अफ़वाहों का बाज़ार गरम था. ममता ने अंशुमान को फ़ोन किया. जीजी से बातें भी कीं. इस तरह उनके हाल-चाल मिलते रहे. बीच-बीच में उनसे ममता का संदेशों से आदान-प्रदान होता रहा.

बल्कि कुछ एक बार तो उन्होंने बीते दौर के अपने किसी पसंदीदा फिल्मी-गाने के ऑडियो भी गुनगुनाकर भेजे. हम प्रार्थना करते रहे कि वे जल्दी स्वस्थ होकर लौटें और ऐसा हुआ भी.

इसके बाद ‘महारानी’ के एक गाने के लिए वे मुंबई आईं, पर हमारी मुलाकात नहीं हो सकी. इस गाने के बोल थे—पियवा हमार होई गये निरमोहिया ऐ सजनी’. इसे युवा गीतकार डॉक्टर सागर ने लिखा था. इसे कंपोज़ किया था रोहित शर्मा ने.

बहरहाल...इसके बाद इंतज़ार रहता था कि कोई कार्यक्रम हो और जीजी आयें या हम पटना जाएं तो मुलाक़ात हो. पर ऐसा संयोग फिर बना नहीं.

शारदा जीजी के जीवन का सबसे बड़ा संदेश ये है कि अपने नाम के मुताबिक वे ज्ञान और संगीत दोनों को साथ लेकर चलीं.

बिहार के समाज की विसंगतियों के बावजूद उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा पूरी की. वे हमेशा कहती थीं कि इसमें उनके पिता सुखदेव ठाकुर और पति डॉ. बृजकिशोर सिन्हा दोनों का बड़ा अहम योगदान रहा. बृज किशोर जी ने हमेशा पहले उनके नृत्य और फिर उनके गायन को प्रोत्साहन दिया.

गायकी के रास्ते पर संघर्ष में बृजकिशोर जी का हौसला बड़ा काम आया. एक तरह से उन्होंने हाथ पकड़कर शारदा जी को संगीत की दुनिया में डटे रहना सिखाया और वे बन गयीं ‘बिहार कोकिला’.

बचपन में वे मणिपुरी नृत्य सीखती रहीं. मणिपुरी नृत्य तो शारदा जी ने इसलिए छोड़ा, क्योंकि शादी के बाद समाज में लोग टीका-टिप्पणी करने लगे थे. और ससुराल पर भी प्रश्न-चिन्ह लग रहे थे. शारदा जी ने संगीत में पीएचडी की थी. और वो समस्तीपुर ज़िले की वीमेंस कॉलेज में प्रोफ़ेसर रहीं.

मुझे याद है कि ममता ने जब उनसे पूछा था कि नौकरी, घर परिवार को संभालना और गायकी ये सब आपने कैसे निभा लिया तो उन्होंने कहा था कि उन्होंने अपनी हर ज़िम्मेदारी को पूरा किया. इसमें वो थकीं भी बहुत. नौकरी के अपने संघर्ष थे. परिवार की जिम्मेदारियां. पति पत्नी को अलग-अलग शहरों में भी रहना पड़ा. पर वो अपने कर्तव्य से डिगीं नहीं कभी.

उन्होंने समाज के सामने एक मिसाल पेश की कि अगर हम अपनी बच्चियों को आगे बढ़ने दें तो वो किस तरह सब कुछ निभाते हुए समाज का सितारा बन सकती हैं. शारदा जी ने गायकी की दुनिया में अपनी आसमान जितनी लोकप्रियता के बावजूद नौकरी नहीं छोड़ी. उन्होंने हमेशा अपनी संस्कृति, अपने समाज का दामन भी पकड़े रखा. जब भी मिलतीं या दिखतीं—माथे पर बड़ी-सी गोल लाल ठसकदार बिंदी, चमकदार साड़ी...कितनी गरिमा.

आकाशवाणी के ज़रिए मिला था मौका

दिलचस्प बात ये है कि तकरीबन 1973 में शारदा सिन्हा को गायकी का पहला मौक़ा आकाशवाणी के ज़रिए ही मिला. उन दिनों वो सुगम संगीत की गायिका थीं. पटना में ऑडिशन के दौरान उन्हें गीत और ग़ज़ल गाए, लेकिन उनका चुनाव नहीं हो सका.

उन्होंने ये तय किया वो ज़ोरदार मेहनत करेंगी और ख़ुद को साबित करके दिखलायेंगी. अगली बार जब फिर ऑडिशन हुआ तो बहुत जिद के साथ उन्होंने गाया और इस बार उनका चुनाव हो गया. आकाशवाणी पटना के ज़रिए उन्हें अपनी शुरूआती लोकप्रियता मिली.

ज़िंदगी का एक बड़ा मोड़ तब आया जब एच.एम.वी. ने लोक गीतों के लिए लखनऊ में ही अस्थायी स्टूडियो बनाकर ऑडिशन करने का फ़ैसला किया.

ऑडिशन में रिजेक्ट किए जाने का अनुभव @shardasinha

जीजी बताती थीं कि वो ट्रेन से ऑडिशन देने लखनऊ पहुंची. भीड़-भाड़ और अफ़रा-तफ़री में उन्हें ऑडिशन में बैठा दिया गया और रिजेक्ट भी कर दिया गया.

इस बात से उनका दिल इस क़दर टूटा कि उन्होंने अपने पति बृजकिशोर सिन्हा से कहा कि अब मुझे अपना गला बिगाड़ना है. और उन्होंने अमीनाबाद जाकर जमकर कुल्फ़ी खायी थी.

पर सिन्हा साहब ने हार नहीं मानी. अगले दिन उन्होंने एचएमवी के उस अस्थायी स्टूडियो जाकर वहां के अधिकारी से बात करने की इच्छा ज़ाहिर की.

पता चला कि मुंबई से मशहूर संगीतकार मुरली मनोहर स्वरूप आए हैं. (जो लोग मुरली मनोहर स्वरूप को नहीं जानते, उनके लिए बता दें कि वे एक बहुत कमाल के संगीतकार रहे और उनके संगीत निर्देशन में मन्ना डे, हेमंत कुमार, तलत महमूद और मुकेश ने कमाल के गैर फिल्मी गीत, ग़ज़ल और भजन गाये हैं. मुकेश ने जो रामचरित मानस गायी है—उसके संगीतकार मुरली जी ही थे).

सिन्हा साहब और मुरली जी दोनों पान के शौकीन. दोनों बातचीत करते हुए साथ पान खाने गये. जहां सिन्हा साहब ने ये निवेदन किया कि शारदा जी का दोबारा ऑडिशन ले लिया जाए. इस बार शारदा जी ने गाया—

‘द्वार के छेकाई लेगा पहिले चुकईयो ओ दुलरूआ भैया’.

ये एक ऐसा गीत था जो शारदा जी ने अपने परिवार में एक विवाह के मौक़े पर अपनी भाभी से सीखा था. और उसके गंवई रूप को थोड़ा-सा बदलकर एच एम वी के ऑडीशन में गाया. वहां एक ठसकदार महिला की आवाज़ ऑडिशन के पर्दे के पीछे से आई— 'और कुछ गाओ'.. शारदा जी ने कुछ और गीत सुनवाए और इस तरह उनका चुनाव हो गया.

यहां ये बताना ज़रूरी है कि परदे के पीछे से आई वो ठसकदार आवाज़ असल में बेगम अख़्तर की थी. जिन्होंने शारदा जी को ख़ूब-ख़ूब आशीर्वाद दिया. और इस तरह सन 1975 में आया शारदा सिन्हा का पहला रिकॉर्ड—'द्वार के छकाई'.

ये गीत आज भी उपलब्ध हैं. इसे सुनकर आप की लंबी संगीत यात्रा में उनके शुरूआती स्वर को सुन सकते हैं.

इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. मुझे याद है कि अभी कुछ महीने पहले उन्होंने फ़ेसबुक पर पचास बरस पहले के अपने गीत की रिकॉर्डिंग शेयर की थी.

पर अभिनय करती नज़र आ रही हैं. ये गीत है—‘इतनी इतनी महंगाई में नंदलाल कुंवर का जनम हुआ’. बड़ा प्यारा गीत है ये.

बॉलीवुड में जमाया सिक्का Getty Images शारदा सिन्हा का पहला छठ गीत था—'अंगना में पोखरी खनाएब हे छठी मैया'

शारदा सिन्हा का गाया ‘मैंने प्यार किया’ फ़िल्म का गाना बड़ा ही लोकप्रिय है.

असद भोपाली ने इसे लिखा और राम लक्ष्मण का संगीत. इस गाने के बोल थे—'कहे तोसे सजना'. इस गाने ने शारदा सिन्हा को सारी दुनिया में और भी ज़्यादा लोकप्रिय कर दिया था.

ये गाना मिलने की भी एक रोचक दास्तान है. उन दिनों शारदा जी का एक कैसेट आया था-'श्रद्धांजलि—ट्रिब्यूट टू मैथिल कोकिल विद्यापति'.

ये कैसेट इतना लोकप्रिय हुआ कि ताराचंद बड़जात्या जी के पास पहुंच गया. बड़जात्या जी ने उन्हें पत्र लिखा कि ये कैसेट सुन-सुनकर मेरा कैसेट घिस गया है. अगर आप दूसरा कैसेट पहुंचा सकें तो अच्छा होगा.

अगली मुंबई यात्रा में शारदा जी ताराचंद जी से मिलीं. और उन्हें अपना एक भोजपुरी गीत सुनाया. राजकुमार बड़जात्या को ये गाना बड़ा पसंद था, बोल थे—'कुछवो ना बोलब चाहे'. इस गाने के आधार पर 'कहे तोसे सजना' लिखा गया और इसे रिकॉर्ड किया गया.

इस गाने ने लोकप्रियता के तमाम रिकॉर्ड तोड़ दिये और फिल्म-जगत में भी शारदा सिन्हा की एक मुकम्मल पहचान बनी.

इसके बाद शारदा जी ने फ़िल्म 'हम आपके हैं कौन में' भी एक गीत गाया—'बाबुल जो तुमने सिखाया'. ये एक विदाई गीत था और ये भी बहुत लोकप्रिय हुआ. इसके अलावा शारदा जी ने अनुराग कश्यप की फ़िल्म 'गैंग्स ऑफ़ वासेपुर' में गाया—'इलेक्ट्रिक पिया, तार बिजली से पतले हमारे पिया.'

कम लोग जानते हैं कि शारदा सिन्हा ने बाक़ायदा पटना के भारतेंदु कला-मंदिर में मणिपुरी नृत्य की तालीम ली थी. शादी हुई तब भी नृत्य के प्रदर्शन किए. पर बाद में नृत्य छोड़ दिया और गीत-संगीत की दुनिया में आ गयीं.

अस्सी के दशक में शारदा जी ने छठ के गीत गाने शुरू किए थे. उनका पहला छठ गीत था—'अंगना में पोखरी खनाएब हे छठी मैया'. ये गाना उन लोगों के जज़्बात का बयान था जो किसी का

शारदा जीजी के बारे में एक और कम चर्चित तथ्य ये है कि उनका ग़ज़लों और गीतों का एक अलबम भी आ चुका है--जिसका नाम है—'किसी की याद'. इस अलबम में उन्होंने फिराक गोरखपुरी, ज़फ़र परवेज़, असद मोहम्मद ख़ान जैसे शायरों के साथ हिंदी के प्रसिद्ध कवि गोपाल सिंह नेपाली का एक गीत भी गाया है-

घूँघट घूँघट नैना नाचे, पनघट पनघट छैया रे,

लहर लहर हर नैया नाचे, नैया में खेवइया रे.

छठ गीतों को घर-घर पहुंचाया Getty Images अस्सी के दशक में शारदा सिन्हा ने छठ के गीत गाने शुरू किए थे.

शारदा जी का एक बहुत प्रसिद्ध भजन है—'जगदंबा घर में दियारा बार अईनी हे.' जाने कितनी पीढ़ियों की स्मृति का हिस्सा है ये गीत. ये उनके पहले ई पी रिकॉर्ड का हिस्सा था और तब से लेकर आज तक हमारे घर चौबारों, मंदिरों पर गूंज रहा है.

शारदा जी से कभी जब पूछा जाता कि आपने तो छठ का पूरा रूप ही बदल दिया. आपके गीत छठ का पर्याय बन चुके हैं तो वो हमेशा कहती थीं, '' मैंने कभी लोकप्रियता के बारे में सोचा नहीं. मैं ईश्वर की बहुत आभारी हूं कि मैं एक माध्यम बन सकी. बहुत प्यार मिला है मुझे. और मैं अपने समाज के प्रति, अपने चाहने वालों के प्रति एक जवाबदेही का अनुभव करती हूं''.

शारदा सिन्हा पद्मभूषण से सम्मानित थीं. पर अपने चाहने वालों की सदा कृतज्ञ रहीं. ये एक अच्छे और बड़े कलाकार की पहचान होती है.

वो हमेशा कहती थीं कि 'भोजपुरी संगीत में जो अश्लीलता की धारा बहने लगी है, मैं उसे साफ़ करना चाहती हूं. उन्होंने पूरे जीवन अपने संगीत और अपनी परंपरा की गरिमा को कायम रखा.'

संसार में जब तक छठ मनाया जाता रहेगा—शारदा सिन्हा की आवाज़ गूंजती रहेगी. मुझे उनकी वो भव्य और मासूम मुस्कान याद आ रही है और आंखों से आंसू ढुलक आए हैं. अलविदा जीजी.

शारदा सिन्हा के कुछ लोकप्रिय गीत @shardasinha

1.

केलवा के पात पर उगेलन सुरूज मल झांके झूंके हो करेलु छठ बरतिया से झांके झूंके

2. पटना के घाट पर हमहू अरघिया देबई हे छठी मईया

3. पहिले पहिल हम कइलीं, छठी मईया बरत तोहार

4. उगिहें सूरज गोसाईयां हो

5. अमवा महुअवा के झूमे डलिया

6. पिरितिया काहे ना लगवले, बेकल जिया रहलो ना जाए

7. कोयल बिन बगिया ना सोभे राजा

8. कलकतवा से आवेला झुमकवा री

9. पटना से बैदा बुलाई द, हो नजरा गईनी गुईयां

10.

कइली हम कौन कसूर नयन मोसे दूर कइल बलमू

11. पनिया के जहाज से पलटनिया बनी अईहा पिया ले ले अईहां हो, पिया सिंदुर बंगाल के

12. हे रामा भादो रैन अंधियारी बदरिया छाई रे रामा

13. सईयां भईले डुमरी के फुलवा

14. समा खेले गेलियई हो भैय्या

(लेखक विविध भारती में उद्घोषक हैं और फ़िल्म-संगीत पर लगातार लिखते रहे हैं.)

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