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ईरान: आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई ने भारत में मुसलमानों के हाल पर की टिप्पणी, विदेश मंत्रालय ने दिया जवाब

Reuters ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई

भारत के मुसलमानों पर ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई की टिप्पणी पर भारतीय विदेश मंत्रालय ने सख़्त प्रतिक्रिया दी है.

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा है कि अल्पसंख्यकों पर बयानबाज़ी करने वाले देशों को दूसरे के बारे में राय ज़ाहिर करने से पहले अपना रिकॉर्ड देखना चाहिए.

ख़ामेनेई ने 16 सितंबर को ग़ज़ा और म्यांमार के साथ ही भारत को भी उस फ़ेहरिस्त में शामिल किया था, ''जहाँ मुसलमान ख़राब परिस्थितियों से जूझ रहे हैं.''

हालांकि, ये पहला मौक़ा नहीं है जब ईरान के सर्वोच्च नेता ने भारत के लिए कुछ इस तरह की बयानबाज़ी की है.

साल 2020 में जब भारत की राजधानी दिल्ली में दंगे भड़के थे, तब भी ख़ामेनेई ने भारत से ये मांग की थी कि वह ''मुसलमानों के संहार'' को रोके.

BBC बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें Getty Images भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ख़ामेनेई का बयान और भारत का जवाब

ईरान के सुप्रीम लीडर ख़ामेनेई ने सोमवार को पैगंबर मोहम्मद के जन्मदिन यानी मिलाद-उन नबी के मौके़ पर सुन्नी स्कॉलर्स से मुलाक़ात की.

देश की सरकारी समाचार एजेंसी ईरना की ख़बर के अनुसार- मुलाक़ात के दौरान भी ख़ामेनेई ने इस बात पर ज़ोर दिया कि मुसलमानों को ग़ज़ा समेत दुनिया के किसी भी हिस्से में अपने समुदाय के दूसरे लोगों की पीड़ा के प्रति उदासीन नहीं होना चाहिए क्योंकि ये इस्लामी शिक्षा के ख़िलाफ़ है.

उन्होंने ये भी कहा कि इस्लामी समुदाय की गरिमा सिर्फ़ एकजुटता से ही पाई जा सकती है.

उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि आज ग़ज़ा और फ़लस्तीन के उत्पीड़ित लोगों का समर्थन करना एक ज़रूरी कर्तव्य है. जो कोई भी इस कर्तव्य की अनदेखी करेगा, उसे ऊपरवाले के सामने जवाबदेह ठहराया जाएगा.

लेकिन जब ख़ामेनेई ने यही बात एक्स पर पोस्ट की तो उन्होंने म्यांमार, ग़ज़ा के साथ ही भारत का भी ज़िक्र किया.

उन्होंने लिखा, "इस्लाम के दुश्मनों ने हमेशा हमें एक इस्लामी समुदाय के रूप में हमारी साझा पहचान के प्रति उदासीन बनाने की कोशिश की है. हम ख़ुद को मुसलमान नहीं मान सकते अगर हम म्यांमार, ग़ज़ा, भारत या किसी भी दूसरी जगह पर मुसलमानों की झेली जा रही पीड़ा से बेख़बर हैं."

इसके बाद 16 सितंबर की देर रात भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने एक बयान जारी किया, जिसमें ईरान के सुप्रीम लीडर की टिप्पणी को अस्वीकार्य बताया गया.

इस बयान में कहा गया, "हम ईरान के सर्वोच्च नेता की ओर से भारत के अल्पसंख्यकों के बारे में की गई टिप्पणियों की कड़ी निंदा करते हैं. ये न केवल गलत जानकारियों पर आधारित है बल्कि अस्वीकार्य बयान भी है. अल्पसंख्यकों पर टिप्पणी देने वाले देशों के लिए ये सलाह है कि वे दूसरों के बारे में कोई भी बयान देने से पहले अपना रिकॉर्ड देख लें."

BBC Getty Images ख़ामेनेई पहले भी भारत के मुद्दों पर टिप्पणी करते रहे हैं ख़ामेनेई की भारत के मुसलमानों पर टिप्पणी

मार्च 2020 में उत्तर पूर्वी दिल्ली में दंगे भड़के थे. इस हिंसा में 53 से अधिक लोगों की मौत हुई थी.

इन दंगों के बीच ख़ामेनेई ने ट्वीट किया था, "भारत में मुसलमानों के जनसंहार से पूरी दुनिया के मुसलमानों का दिल दुखी है. भारत सरकार को कट्टरपंथी हिंदुओं और उनकी पार्टियों का सामना करना चाहिए और मुसलमानों के जनसंहार को रोकना चाहिए ताकि भारत को इस्लामी दुनिया से अलग-थलग होने से बचाया जा सके."

इससे कुछ महीने पहले ही जब भारत ने 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाला अनुच्छेद 370 निरस्त किया, तब भी ख़ामेनेई ने इस कदम की आलोचना की थी.

उन्होंने इस बारे में ट्वीट किया था, "हम कश्मीर में मुसलमानों की स्थिति पर चिंतित हैं. हमारे भारत से अच्छे संबंध हैं लेकिन हम उम्मीद करते हैं कि भारत सरकार कश्मीर के नेक लोगों के प्रति न्यायपूर्ण नीति अपनाएगी और इस क्षेत्र में मुसलमानों के उत्पीड़न को रोकेगी."

2022 में बीजेपी की नेता रहीं नूपुर शर्मा ने पैगंबर मोहम्मद पर अपमानजनक टिप्पणी की थी.

तब भी ईरान ने भारतीय राजदूत को तलब कर आपत्ति जताई थी. हालांकि, इसके कुछ समय बाद ही तत्कालीन ईरानी विदेश मंत्री हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियान दिल्ली आए थे.

इसी साल यानी 2024 में जब ईरान के तत्कालीन राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी अप्रैल में अपने पहले पाकिस्तान दौरे पर गए थे तो दोनों देशों के साझा बयान में कश्मीर का ज़िक्र था. इस पर भारत ने ईरान के सामने आपत्ति जताई थी.

पाकिस्तान और ईरान के संयुक्त बयान में कहा गया था कि दोनों देश इस बात पर सहमत हुए कि कश्मीर मुद्दे को क्षेत्र के लोगों की इच्छा के अनुसार शांतिपूर्ण तरीकों से हल किया जाना चाहिए.

जब भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा- ''हमने ये मुद्दा ईरानी अधिकारियों के समक्ष उठाया है.''

इब्राहिम रईसी और हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियान की इसी साल एक हवाई दुर्घटना में मौत हो गई थी.

BBC

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    भारत और ईरान के संबंध दोस्ती भरे रहे हैं.

    इसी साल 14-15 जनवरी को विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने ईरान का दौरा किया था.

    इतना ही नहीं जब इब्राहिम रईसी की मौत के मसूद पेज़ेश्कियान ने 30 जुलाई को ईरान के नए राष्ट्रपति के तौर पर शपथ ली, तो भारत की ओर से केंद्रीय सड़क परिवहन और राज्यमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ईरान पहुंचे थे.

    परमाणु कार्यक्रमों की वजह से ईरान पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध हैं लेकिन भारत उसके शीर्ष पाँच कारोबारी देशों की फ़ेहरिस्त में शामिल है.

    भारत मुख्य तौर पर ईरान को चावल, चाय, चीनी, फार्मास्यूटिकल्स उत्पाद, इलेक्ट्रिकल मशीनरी और आर्टिफ़िशियल ज्वेलरी जैसी चीज़ें निर्यात करता है. वहीं, ईरान से सूखे मेवे, इनॉर्गैनिक/ऑर्गैनिक केमिकल, ग्लासवेयर वगैराह भारत आयात करता है.

    इन सबसे ऊपर, इसी साल मई में भारत और ईरान के बीच एक अहम समझौता हुआ. इसके तहत भारत चाबहार स्थित शाहिद बेहेस्ती बंदरगाह का 10 साल तक संचालन करेगा.

    शाहिद बेहेस्ती ईरान का दूसरा सबसे अहम बंदरगाह है.

    ईरान के तटीय शहर चाबहार में बंदरगाह के विकास के लिए भारत और ईरान के बीच साल 2003 में सहमति बनी थी.

    साल 2016 में पीएम नरेंद्र मोदी ने ईरान का दौरा किया था. 15 साल में किसी भारतीय पीएम का ये पहला ईरानी दौरा था. उसी साल इस समझौते को मंज़ूरी मिली.

    साल 2019 में पहली बार इस पोर्ट का इस्तेमाल करते हुए अफ़ग़ानिस्तान से माल पाकिस्तान को दरकिनार करते हुए भारत आया था.

    हालांकि साल 2020 में एक ऐसा वक़्त भी आया जब ईरान की ओर से भारत को एक प्रोजेक्ट से अलग करने की रिपोर्ट्स सामने आईं.

    चाबहार पोर्ट इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर यानी आईएनएसटीसी के लिए काफ़ी अहमियत रखता है.

    चाबहार पोर्ट चीन की अरब सागर में मौजूदगी को चुनौती देने के लिहाज से भी भारत के लिए मददगार साबित हो सकता है.

    चीन पाकिस्तान में ग्वादर पोर्ट को विकसित कर रहा है.

    यह पोर्ट चाबहार पोर्ट से सड़क के रास्ते केवल 400 किलोमीटर दूर है जबकि समुद्र के जरिए यह दूरी महज 100 किमी ही बैठती है.

    इस तरह से ग्वादर और चाबहार पोर्ट को लेकर भी भारत और चीन के बीच टक्कर है.

    रणनीतिक लिहाज से भी ग्वादर पोर्ट में चीनी मौजूदगी भारत के लिए दिक्कत पैदा कर सकती है. ऐसे में चाबहार पोर्ट में अपनी मौजूदगी होना भारत के हक़ में माना जाता है.

    पहले अफ़ग़ानिस्तान में खाद्यान्न पहुँचाने के लिए भारत को पाकिस्तान के सड़क मार्ग का इस्तेमाल करना पड़ता था. इससे भारत को तेल और गैस के एक बड़े बाज़ार तक पहुँच मिल जाएगी.

    बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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