धोखे से रूसी सेना के साथ जंग में धकेले गए भारतीयों की आपबीती

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BBC मोहम्मद सूफ़ीयान (बाएं) समीर अहमद (दाएं) ने आठ महीनों से अधिक वक्त तक रूसी सेना के लिए काम किया

"भारत लौट कर मुझे खुशी महसूस हो रही है. रूस में बिताए उन दिनों की बात सोचकर मुझे रोना आ जाता है."

ये कहना है मोहम्मद सूफ़ीयान का जो शुक्रवार, 13 सितंबर 2024 को हैदराबाद के राजीव गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पहुंचे. उनके आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे. रो-रोकर उनकी आंखें सूज गई हैं.

वो कहते हैं, "मैं ईश्वर का शुक्रगुज़ार हूं कि उन्होंने मुझे मौक़ा दिया कि मैं एक बार फिर अपने परिवार से मिल सका. मुझे लगता है ये मेरा दूसरा जन्म है."

मोहम्मद सूफ़ीयान तेलंगाना के नारायणपेट ज़िले में मुख्य शहर के रहने वाले हैं. वो कहते हैं कि नौकरी देने वाले एजेंट ने उन्हें झांसा दिया जिस कारण वो रूस-यूक्रेन जंग के मैदान तक पहुंच गए. उन्होंने यहां आठ महीने बिताए और जिसके बाद अब वो भारत वापिस आ गए हैं.

मोहम्मद सूफ़ीयान हवाई अड्डे पहुंचे पर अपने परिजनों को देखकर भावुक हो गए, ये लोग रूस से उनकी सुरक्षित वापसी पर उन्हें रिसीव करने के लिए वहां पहुंचे थे.

बीते दिनों छह भारतीय नागरिक रूस से वापस भारत लौटे हैं, इनमें सूफ़ीयान भी एक हैं. भारत वापस आए लोगों में तीन कर्नाटक के कलबुर्गी (पहले गुलबर्गा) से एक कश्मीर से और एक पंजाब से हैं.

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24 साल के सूफ़ीयान बीते साल दिसंबर में काम के लिए रूस पहुंचे थे. इससे पहले वे दुबई में एक कपड़े की दुकान में काम करते थे. दुबई में काम करते हुए उन्होंने यूट्यूब चैनल पर एक विज्ञापन देखा जिसमें रूस में 'हेल्पर' के काम के लिए लोगों से आवेदन करने की अपील की गई थी.

ये यूट्यूब चैनल फ़ैसल ख़ान नाम के एक व्यक्ति का था जो बतौर नौकरी देने वाले एजेंट काम करते थे. रूस में हेल्पर की नौकरी के लिए यूट्यूब वीडियो के ज़रिए उन्होंने कई युवाओं को आकर्षित किया था. अपने वीडियो में वो रूस में नौकरियों के लिए संपर्क करने के लिए मोबाइल फोन नंबर साझा करते थे.

ऐसे ही एक विज्ञापन को देखकर मोहम्मद सूफ़ीयान को रूस जाने की इच्छा हुई. वो काम से 15 दिनों की छुट्टी लेकर दुबई से भारत लौटे. भारत में फ़ैसल ख़ान के लिए काम करने वाले एजेंट युवाओं से वादा करते थे कि रूस में उन्हें सिक्योरिटी और हेल्पर के काम में लगाया जाएगा. भारत में काम करने वाले ये एजेंट मुंबई से काम रहे थे, वहीं कुछ एजेंट रूस से काम कर रहे थे.

इस तरह भारत, रूस और संयुक्त अरब अमीरात में कुल मिलाकर चार सब-एजेंट थे जिनके साथ मिलकर फ़ैसल ख़ान काम करता था. मोहम्मद सूफ़ीयान ने बीबीसी को बताया कि उन्होंने फ़ैसल ख़ान से उनके दिए नंबर पर संपर्क किया और कहा कि अभी के मुक़ाबले थोड़ा अधिक पैसा मिलने पर वो रूस में काम करने के लिए तैयार हैं.

उन्होने बताया, "उन्होंने मुझे बताया था कि रूस में सुरक्षा विभागों में नौकरियां उपलब्ध थीं. मुझे ये नहीं बताया गया था कि मुझे रूसी सेना के साथ काम करना है या फिर मुझे रूस-यूक्रेन जंग में फ्रंटलाइन पर भेज दिया जाएगा."

"इन एजेंटों ने मुझे बताया था कि पहले मुझे तीन महीनों की ट्रेनिंग दी जाएगी, ये नौकरी पर रहते हुए ट्रेनिंग होगी जिसके लिए मुझे भारतीय मुद्रा में 30 हज़ार रुपये हर महीने दिए जाएंगे. मुझे बताया गया था कि ट्रेनिंग के बाद मेरा वेतन बढ़ाया जाएगा."

एके 12, एके 74 बंदूकों और ग्रेनेड चलाने की ट्रेनिंग BBC रूस से भारत लौटे समीर अहमद

एजेंटों के ज़रिए नौकरी पर लगाए गए इन भारतीय युवकों को रूस पहुंचने के बाद रूसी आर्मी के साथ काम करने में लगाया गया. रूसी सेना के साथ एक-डेढ़ महीने की ट्रेनिंग के बाद इन्हें यूक्रेन से सटी रूस की सीमा के पास ले जाया गया, जहां युद्ध चल रहा था.

कलबुर्गी के अब्दुल नदीम ने रूसी सेना के साथ बिताए वक्त और अपने अनुभव बीबीसी के साथ साझा किए. उन्होंने बताया, "हमें ये जानकारी नहीं दी गई थी कि हमें रूसी सेना के साथ काम करना होगा. उन्होंने कहा था कि सिक्योरिटी विंग में हमें हेल्पर के तौर पर काम करना होगा. हमारे साथ धोखा हुआ."

"जब हमने फ़ैसल ख़ान से संपर्क किया तो उन्होंने ऐसा जताया जैसे कि वो अन्य एजेंटों के साथ संपर्क में हैं लेकिन असल में ऐसा नहीं था. हमारे साथ धोखा हुआ. सच ये है कि फ़ैसल ख़ान ने रूस भेजने के बदले हममें से हर किसी से तीन-तीन लाख रुपये लिए थे.

मोहम्मद सूफ़ीयान कहते हैं कि रूसी सेना में जाने के बाद मोबाइल फ़ोन तक उनकी पहुंच ख़त्म हो गई और इस कारण वो अपने दोस्तों या परिजनों से संपर्क नहीं कर सके.

वो कहते हैं, "बीते साल दिसंबर में मैं रूस पहुंचा. इसके लिए मैं दुबई से भारत लौटा, जहां मैं काम कर रहा था. भारत आने के बाद मैं हैदराबाद से चेन्नई गया और फिर यहां से शारजाह होते हुए रूस आया."

रूस और यूक्रेन के बीच जंग के मैदान के बारे में सूफ़ीयान बताते हैं, "हम एक जगह से दूसरी जगह जाते रहते थे और इस दौरान आर्मी के अधिकारी हमारे मोबाइल फ़ोन छीन लेते थे. किसी से बात कर पाना असंभव था."

'हर लम्हा ख़तरे में बीतता था...' BBC

फ़ैसल ख़ान ने इसी साल फरवरी में बीबीसी से बात की थी. उन्होंने कहा था कि रूसी सेना ने उन्हें पहले ही बताया था कि सेना में हेल्पर्स को मोबाइल फ़ोन रखने की इजाज़त नहीं है.

सेना के अनुसार युद्ध के दौरान यूक्रेनी सेना मोबाइल फ़ोन के सिग्नल के ज़रिए उनके ठिकाने का पता लगा सकती थी और उन पर ड्रोन हमला कर सकती थी.

सूफ़ीयान बताते हैं, "25 दिनों की ट्रेनिंग के बाद मुझे फ़ोन मिला जिसके बाद मैंने भारत में अपने परिवार से बात की. मेरे माता-पिता मुझे लेकर चिंतित थे, मैंने उन्हें वो सब बताया जो रूस में मेरे साथ हुआ. इसके बाद वो लोग मुझे वापस भारत लाने के लिए रास्ते खोजने में जुट गए."

रूस में बिताए अपने दिनों के बारे में सूफ़ीयान बताते हैं, "अपनी ट्रेनिंग के दौरान हमें एके 12, एके 74 बंदूकों और ग्रेनेड का इस्तेमाल सिखाया गया. अगर हम इस ट्रेनिंग को हलके में लेते या फिर खुद को अच्छे से ट्रेन नहीं करते तो दुश्मन का निशाना बनने का ख़तरा था. हमें जो काम दिया जाता था हम वो करने के लिए बाध्य होते थे."

इन भारतीय युवाओं का कहना है कि उन्हें रूस में उन्हें 15 घंटे की शिफ्ट में काम करना होता था जो सवेरे 6 बजे से शुरू होकर शाम के 9 बजे ख़त्म होती थी. सूफ़ीयान कहते हैं कि दिया गया काम न करने पर उन्हें सज़ा दी जाती थी.

हालांकि ये पूछे जाने पर कि उन्हें किस तरह की सज़ा दी गई थी को लेकर सूफ़ीयान ने कुछ नहीं कहा.

बीते दिनों गुजरात के हेमिल और हैदराबाद के नामपल्ली में रहने वाले अफ़सान की मौत रूसी सेना में काम करते हुए हुई.

रूस से लौटे भारतीय नागरिकों ने बताया था कि उन्होंने गुजरात के हेमिल नाम के एक युवा को अपनी आंखों के सामने मरते देखा था. वो एक ड्रोन हमले में मारे गए थे.

कलबुर्गी के मोहम्मद समीर अहमद ने बीबीसी को बताया, "रात हो या दिन, हर वक्त हमारी ज़िंदगी पर ख़तरा बना रहता था. हमारा दोस्त हेमिल हमारी आंखों के सामने मारा गया था. हम उसे बचा नहीं सके. हम हर रोज़ इस डर में बिताते थे कि हमारे साथ न जाने क्या होगा."

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डरावना माहौल BBC सैय्यद इलियास हुसैन कहते हैं कि उन्हें नहीं बताया गया था कि उन्हें रूसी सेना के साथ काम करना होगा.

कलबुर्गी के समीर अहमद भी उन लोगों में शामिल हैं जो फ़ैसल ख़ान के रूस में नौकरी के झांसे में आ गए थे.

रूस पहुंचने और वहां काम करने के अपने अनुभव के बारे में वो बताते हैं, "मैं 18 दिसंबर को चेन्नई पहुंचा. वहां से दुबई होते हुए हमें मॉस्को ले जाया गया. हम 21 तारीख को वहां पहुंचे."

"हमारी नियुक्ति सेना में कर दी गई. हमें वहां कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा. वहां पीने का पानी नहीं था. खाना मांगने पर वो हमें किसी बाज़ार में ले जाते थे. हमें गांव से काफी दूर ले जाया जाता था. ये जंगल में खाने-पीने और रहने की तरह था."

कर्नाटक के ही रहने वाले सैय्यद इलियास हुसैन ने बताया, "वहां जंग छिड़ी है. दिनभर बंदूकों और बमों के धमाके गूंजते थे. वो सब बेहद डरावना था. हमने अपने परिवारों से वादा किया था कि हम भारत लौट आएंगे. हमने बड़ी हिम्मत से वहां वो मुश्किल दिन गुज़ारे."

"रूसी सेना में नियुक्ति के बाद हमने पहले वहां हथियारों के साथ काम किया. उसके बाद हमें टनल खोदने का काम दिया गया."

सैय्यद इलियास हुसैन भी कहते हैं कि उन्हें रूस जाने से पहले ये नहीं बताया गया था कि उन्हें सेना के साथ काम करना होगा. वो कहते हैं कि जब तक उन्हें इस बात का अहसास हुआ, तब तक काफी देर हो चुकी थी.

45 युवाओं को छुड़ाया गया BBC 12 सितंबर को विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा था कि रूसी सेना में काम कर रहे भारतीय नागरिकों को भारत वापिस लाया जा रहा है.

रूस में काम करने गए भारतीय युवाओं के परिजनों का कहना है कि उन्हें वहां से छुड़ाने और भारत वापिस लाने के लिए भारत सरकार ने काफी मेहनत की है.12 सितंबर को विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने जानकारी दी कि रूस में फंसे 45 भारतीयों को वापिस भारत लाया जा रहा है.

उन्होंने बताया कि इसी साल जुलाई में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रूस दौरे के दौरान भारत ने रूस में फंसे भारतीय युवाओं का मुद्दा रूस से समक्ष उठाया था और उन्हें वापिस लाने की योजना पर चर्चा की थी. इसके बाद ही इन युवाओं वो भारत लाने की प्रक्रिया शुरू हुई थी.

सूफ़ीयान कहते हैं, "6 सितंबर को यूक्रेन से सटी रूस की सीमा के पास से हमें वापिस लाया गया. 36 घंटों के सफर तके बाद यहां से हम मॉस्को आए. यहां दस्तावेज़ों का काम पूरा करने के बाद 10 तारीख़ को हम भारत के लिए रवाना हुए. रूस में मौजूद भारतीय दूतावास ने इसमें हमारी बहुत मदद की."

वो कहते हैं कि एजेंटों ने उन्हें बीते चार-पांच महीनों की तनख़्वाह नहीं दी है.

सूफ़ियान के भाई ने कहा, "पिछले नौ महीने से हमने ऊपर वाले पर सब छोड़ दिया था. पिछले आठ-नौ महीने में उन्हें देश लाने की हमारी मेहनत सफल रही. भारत सरकार पहले ऐसा करती तो गुजरात के हेमिल और हैदराबाद के नामपल्ली में रहने वाले अफ़सान भी हमारे बीच होते."

भारत में रूसी दूतावास ने साफ किया था कि रूस की सेना में काम कर रहे कई भारतीयों के पास रूस में रहने के लिए उचित वीजा नहीं है.

दूतावास ने जुलाई में बयान जारी कर कहा था, "हमनें जानबूझकर भारतीयों को अपनी सेना में शामिल नहीं किया और उनकी इस युद्ध में कोई कोई भूमिका नहीं होगी. हम भारत सरकार के साथ खड़े है. उम्मीद है कि यह मुद्दा जल्द सुलझ जाएगा."

एजेंट फ़ैसल ख़ान ने क्या कहा? BBC एजेंट फ़ैसल ख़ान ने ये बातें फ़रबरी 2024 में बीबीसी को बताई थीं. युवाओं के लौटने के बाद उनसे संपर्क का प्रयास किया गया लेकिन बात नहीं हो सकी.

बीबीसी से एजेंट फ़ैसल ख़ान ने दुबई से जूम के जरिए बात करते हुए फरवरी में कहा था कि उन्होंने कहीं भी सिक्योरिटी और हेल्पर से जुड़े काम का जिक्र नहीं किया.

उन्होंने कहा, "मैंने कहा था सेना के हेल्पर. आप मेरा पहले का वीडियो देख सकते हैं. हमारी पास रूसी प्रशासन की ओर से हेल्पर के काम को लेकर जानकारी थी."

"मैं इस काम दिलाने के बिजनेस में पिछले 6 साल से हूं. अब तक करीब दो हजार लोगों को अलग-अलग जगहों पर प्लेसमेंट दे चुका हूं. इसके लिए मैं तीन लाख रुपये लेता था. मैंने जो भी पैसा लिए वो बैंक के माध्यम से आते हैं. काला धन नहीं."

रूसी सेना में काम करके युवाओं के भारत लौटने के बाद बीबीसी ने फ़ैसल ख़ान से संपर्क करने की फिर से कोशिश की, लेकिन ऐसा नहीं हो सका.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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