ऑल्ट न्यूज़ के मोहम्मद ज़ुबैर के ख़िलाफ़ केस में यूपी पुलिस ने जोड़ी नई धाराएं, क्या हैं मायने?
उत्तर प्रदेश की ग़ाज़ियाबाद पुलिस ने इलाहाबाद हाई कोर्ट को हलफ़नामे के ज़रिए बताया कि ऑल्ट न्यूज़ के मोहम्मद ज़ुबैर के ख़िलाफ़ पहले से दर्ज एफ़आईआर में भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 152 जोड़ी गई है.
इसके तहत ज़ुबैर पर भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने का आरोप है. अब कोर्ट ने 27 नवंबर ज़ुबैर के वकीलों से संशोधित हलफ़नामा दाखिल करने की इजाज़त दी है. मामले में अगली सुनवाई तीन दिसंबर को होगी.
ज़ुबैर ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में अपने ख़िलाफ़ अक्तूबर में हुई एफ़आईआर रद्द कराने के लिए अपील की थी, लेकिन पुलिस की ओर से इस एफ़आईआर में नई धारा जोड़ने से मामला पेचीदा हो गया है.
ग़ाज़ियाबाद पुलिस ने 8 अक्तूबर को एक एफ़आईआर दर्ज की थी. ये एफ़आईआर यति नरसिंहानंद ट्रस्ट की महासचिव उदिता त्यागी ने दर्ज करायी थी. त्यागी ने आरोप लगाया था कि ज़ुबैर ने 3 अक्तूबर को यति नरसिंहानंद के पुराने वीडियो क्लिप सोशल मीडिया पर साझा किए थे.
त्यागी ने आरोप लगाया कि इस पोस्ट की मंशा मुस्लिम समुदाय को नरसिंहानंद के ख़िलाफ़ भड़काना था. कोर्ट ने 25 नंवबर को जांच अधिकारी से रिपोर्ट मांगी थी.
इसके बाद 26 नंवबर को जांच अधिकारी ने कोर्ट को बताया कि बीएनएस की धारा 152 और आईटी एक्ट की धारा 66 को जोड़ा गया है.
हालांकि पहले की एफ़आईआर बीएनएस की धारा 196 (दो धार्मिक समुदाय में वैमनस्य फैलाना), धारा 228(झूठा सबूत), 299(गलत मंशा से भड़काना), 356(3)(मानहानि) और 351(2) के तहत दर्ज की गई थी.
ऑल्ट न्यूज़ ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक बयान में कहा है कि ऑल्ट न्यूज़ मोहम्मद ज़ुबैर के साथ है. साथ ही ये अपील भी की है कि जितने भी लोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्षधर वो साथ आएं.
, "प्रदेश की मशीनरी का इस्तेमाल डराने के लिए किया जा रहा है और हम फ़ेक या गलत जानकारी का पर्दाफ़ाश करते रहेंगे."
उत्तर प्रदेश पुलिस की नए हलफनामे के बाद राजनीतिक और पत्रकारिता जगत से अलग-अलग प्रतिक्रियाएं आ रही हैं.
प्रेस क्लब ऑफ इंडिया ने भी सरकार से एफआईआर वापस लेने की मांग की है. पीसीआई ने कहा कि इस धारा का इस्तेमाल स्वतंत्र आवाज़ को दबाने के लिए किया जा रहा है.
इलाहाबाद हाई कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता केके रॉय ने बीबीसी से कहा कि बीएनएस की धारा 152 बहुत संगीन धारा है.
बीएनएस 152 यानी मौखिक या लिखित शब्दों, संकेतों, दृश्य प्रतिनिधित्व, इलेक्ट्रॉनिक संचार, वित्तीय साधनों, या अन्य माध्यमों से भारत की संप्रभुता, एकता, या अखंडता को खतरे में डालना. इसके अंतर्गत आजीवन कारावास या सात साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है.
रॉय के मुताबिक़, ''इस धारा के तहत भावनात्मक सोच पर भी मुकदमा दर्ज किया जा सकता है. ये अभी तक आईपीसी में नही था. इसमें किसी व्यक्ति के ख़िलाफ़ पुलिस को असीमित अधिकार दिए गए हैं, जो अधिकार पहले मैजिस्ट्रेट के पास था. ये कानून सिर्फ विभिन्न तरह के आंदोलनों को दबाने के लिए लाया गया है.''
ये भी पढ़ें-ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष और हैदराबाद से लोकसभा सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, "हेट स्पीच के ख़िलाफ़ रिपोर्ट करना या बोलना उत्तर प्रदेश की पुलिस के लिए अपराध है. वहीं नरसंहार के हिमायती आज़ाद घूम रहे है. हम ज़ुबैर के साथ हैं."
समाजवादी पार्टी के सांसद और प्रवक्ता राजीव राय ने बीबीसी से कहा कि सरकार सच नहीं सुनना चाहती है. ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि ऐसे पत्रकारों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जा रही है जो सच दिखा रहे हैं.सरकार अपने बुरे कामों को दबाने के लिए इस तरह का हथकंडा अपना रही है.
बीबीसी से बात करते हुए बीजेपी के उत्तर प्रदेश अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष कुंवर बासित अली ने सरकार का बचाव किया है. बासित अली का कहना है कि जांच हो रही है और अगर दोषी होंगे तो कार्रवाई होगी. हालांकि अब मामला अदालत में है तो जो अदालत का निर्देश होगा सभी उसका पालन करेंगे.
वहीं कांग्रेस के संगठन महासचिव अनिल यादव ने कहा कि बीजेपी और संघ परिवार अफ़वाहों के ज़रिए अपनी राजनीति चलाते हैं.
उन्होंने कहा, "इन अफवाहों और भ्रामक ख़बरों के ख़िलाफ़ जो भी आवाज़ उठाएगा, सरकार अपना पूरा अमला लगाकर उसका दमन करेगी. मोहम्मद ज़ुबैर जाने माने पत्रकार हैं और उनको ‘सच बोलने’ की अफवाहों से लड़ने की क़ीमत चुकानी पड़ रही है."
अनिल यादव ने कहा कि यदि सरकार अफवाहों को रोकने में सचमुच संजीदगी दिखाती तो बीजेपी और संघ से जुड़े आईटी सेल के सभी लोग जेल में होते. मोहम्मद ज़ुबैर पर लगाए गए राजद्रोह जैसे औपनिवेशिक क़ानून असहनशील और निंदनीय है.
फैक्ट चेकर मोहम्मद ज़ुबैर पर कई राज्यों में मुक़दमें दर्ज किये गए हैं.
दिल्ली स्थित वरिष्ठ पत्रकार शकील अख्तर का कहना है कि क्योंकि वो सही चीज़ सामने लाते है इसलिए सरकार की ऑंख में किरकरी बने हुए हैं. ये कार्रवाई गलत है और इसे तुरंत वापस लिया जाना चाहिए.
शकील अख़्तर के मुताबिक, "फेक न्यूज़ के ख़िलाफ़ मोहम्मद ज़ुबैर लगातार काम कर रहे हैं. ये तो अच्छा काम है कि जनता फेक वीडियो देखकर गुमराह ना हो. हालांकि सरकारें इससे असहज महसूस करती हैं."
वहीं, वरिष्ठ पत्रकार हर्ष वर्धन त्रिपाठी का कहना कि प्रेस क्लब को तय करना होगा कि उसके लिए मानदंड क्या हैं और क्या वह सभी पत्रकारों के लिए ऐसा करते हैं.
प्रेस क्लब को यह भी तय करना होगा की ज़ुबैर पत्रकार हैं कि नहीं है. जो कार्रवाई ज़ुबैर पर हो रही है वो एफ़आईआर के बाद की जा रही है.
उन्होंने कहा, "ज़ुबैर पर ऐसा आरोप है कि वह अपने हिसाब से वीडियो को एडिट करके फिर सोशल मीडिया पर डालते हैं हालांकि फेक न्यूज़ का पर्दाफ़ाश करना बहुत ज़रूरी है लेकिन इस तरह नहीं कि दूसरे को टार्गेट किया जाए. ज़ुबैर के एडिटेड वीडियो की वजह से कई बार समाज में विभाजन की स्थिति बनी है."
हालांकि, ज़ुबैर कई बार बीजेपी के नेताओं के बारे में किए गए फ़ेक पोस्ट पर भी सही जानकारी देते रहे हैं.
ताज़ा उदाहरण देखें तो ज़ुबैर ने 22 नंवबर को बीजेपी के नेता बाबू लाल मंराडी के बारे में एक फेक पोस्ट को फैक्ट चेक करके गलत बताया था. पोस्ट में बताया गया कि बीजेपी के नेता मरांडी प्रधानमंत्री की आलोचना कर रहे हैं, लेकिन ज़ुबैर ने बताया कि ये वीडियो 2018 का है, जब मरांडी अपनी पार्टी बनाकर बीजेपी से अलग थे.
वरिष्ठ पत्रकार अनिल चमड़िया ने कहते हैं कि ऑल्ट न्यूज़ के मोहम्मद ज़ुबैर के ख़िलाफ़ उत्तर प्रदेश पुलिस की कार्रवाई हैरान करती है. कैसे अपने देश को प्यार करने और उसे मज़बूत करने वालों को देश की एकता और अखंडता जैसे आरोप लगाकर असुरक्षित महसूस कराया जा सकता है.
चमड़िया का कहना है, "भारतीय न्याय संहिता की धारा 152 का इस तरह इस्तेमाल भविष्य में इसके दुरुपयोग को लेकर चिंतित करता है. पत्रकारों के ख़िलाफ़ भारतीय न्याय संहिता के दुरुपयोग मामले न आएं, इसकी न्यायालय से हम पत्रकार बिरादरी अपेक्षा रखते हैं."
दिल्ली पुलिस ने मोहम्मद ज़ुबैर के ख़िलाफ़ 2018 में किए गए एक ट्वीट (अब एक्स) के आधार पर एफ़आईआर दर्ज की है. इस एफ़आईआर में पहले आईपीसी की धाराएं 153ए और 295 लगाई गई थी. इसके बाद आपराधिक साज़िश (120-बी), सबूत मिटाना (201) और विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम (एफसीआरए) की धारा 35 भी जोड़ी गई. दिल्ली पुलिस ने उन्हें बाद में गिरफ़्तार किया.
दिल्ली पुलिस ने अगस्त 2020 में मोहम्मद ज़ुबैर पर यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण के लिए बने पॉक्सो एक्ट के तहत भी एक केस दर्ज किया था.
ये मामला राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की प्रमुख प्रियंक कानूनगो की शिकायत पर दर्ज किया गया था.
दिल्ली हाई कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए सितंबर 2020 में मोहम्मद ज़ुबैर के ख़िलाफ़ सख़्त क़दम उठाने पर रोक लगा दी थी. दिल्ली हाई कोर्ट ने पुलिस से स्टेटस रिपोर्ट दायर करने को कहा. बाद में दिल्ली पुलिस ने अदालत को बताया था कि मोहम्मद ज़ुबैर का एक्स पोस्ट अपराध की श्रेणी में नहीं आता.
उत्तर प्रदेश के सीतापुर ज़िले में एक जून 2022 को मोहम्मद ज़ुबैर के ख़िलाफ़ 'हिंदू शेर सेना' के ज़िलाध्यक्ष भगवान शरण की शिकायत पर मामला दर्ज किया गया था.
शिकायतकर्ता ने कहा,"हिंदू शेर सेना के राष्ट्रीय संरक्षक पूजनीय प्रबंधक महंत बजरंग मुनि जी को 'हेट मोंगर्स' (नफरत फैलाने वाला) जैसे अपशब्द से संबोधित किया गया. उसी ट्वीट में मोहम्मद ज़ुबैर ने यति नरसिंहानंद सरस्वती और स्वामी आनंद स्वरूप को भी अपमानित किया."
सीतापुर मामले में मोहम्मद ज़ुबैर की तरफ़ से पेश हुए सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील कोलिन गोंज़ाल्विस ने बीबीसी हिंदी से तब कहा था, "ज़ुबैर के ख़िलाफ़ सारी एफ़आईआर रिपोर्ट्स को पढ़ा जाए तो किसी भी जगह अपराध का आरोप नहीं मिलता है. सवाल ये है कि क्या ज़ुबैर ने धर्म के ख़िलाफ़ कुछ कहा? जवाब है नहीं. धर्म के ख़िलाफ़ बयान देना ग़ैर-कानूनी है."
गोंजाल्विस कहते हैं, "ज़ुबैर ने नफ़रत फैलाने वालों के बारे में बात की है कि आप हेट स्पीच बंद करें, तो जो नफ़रती भाषण देने वाले लोग हैं वही शिकायतकर्ता बन गए और ज़ुबैर जो नफ़रती भाषणों के ख़िलाफ़ संघर्ष कर रहे हैं, वो जेल में हैं. ये इस केस की अजीब बात है."
मोहम्मद ज़ुबैर के ख़िलाफ़ लखीमपुर खीरी में 18 सितंबर 2021 को सुदर्शन टीवी न्यूज़ चैनल के स्थानीय पत्रकार आशीष कटियार ने रिपोर्ट (एफ़आईआर संख्या - 0511) दर्ज कराई, सुदर्शन टीवी के पत्रकार ने कहा कि मोहम्मद ज़ुबैर "देश विरोधी'ट्वीट करने में माहिर हैं जिस पर कार्रवाई किया जाना न्यायहित में आवश्यक है."
यह भी शिकायत की गई थी कि ज़ुबैर ने "पूरे विश्व के मुसलमानों से अपील की है कि एकजुट होकर अराजकता फैलाएँ और देश का माहौल ख़राब करते हुए न्यूज़ चैनल के विरोध में सांप्रदायिकता फैले ताकि देश के अंदर गृह युद्ध जैसी स्थिति उत्पन्न हो सके.
मुज़फ़्फ़रनगर के थाना चरथावल में 24 जुलाई 2021 को अंकुर राणा ने शिकायत (एफ़आईआर संख्या 0199) की थी कि "ज़ुबैर ने फ़ोन पर बातचीत के दौरान उन्हें जान से मारने की धमकी दी."
ये मामला भी सुदर्शन न्यूज़ की उस ख़बर से जुड़ा है जिसे आपत्तिजनक बताते हुए मोहम्मद ज़ुबैर ने कार्रवाई की मांग की थी.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़ रूम की ओर से प्रकाशित
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