पायल कपाड़ियाः गोल्डन ग्लोब में नॉमिनेट होने वाली पहली भारतीय कौन हैं?

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Getty Images पायल कपाड़िया को फ़िल्म 'ऑल वी इमेजिन एज़ लाइट' के लिए ग्लोबल ग्लोब अवॉर्ड में नामांकन मिला है

फ़िल्म निर्देशक पायल कपाड़िया को उनकी पहली फिक्शन फीचर फ़िल्म के लिए 82वें गोल्डन ग्लोब अवॉर्ड में नॉमिनेट किया गया है.

उन्हें 'ऑल वी इमेजिन एज़ लाइट' के लिए मोशन पिक्चर कैटेगरी में सर्वश्रेष्ठ निर्देशक कैटेगरी में नॉमिनेशन मिला है.

उनकी फ़िल्म को नॉन इंग्लिश लैंग्वेज कैटेगरी में बेस्ट मोशन पिक्चर के लिए भी है.

पायल कपाड़िया पहली भारतीय फिल्म निर्देशक हैं, जिन्हें बेस्ट डायरेक्टर अवॉर्ड के लिए नॉमिनेशन मिला है.

उन्होंने इस उपलब्धि के लिए हॉलीवुड फ़ॉरेन प्रेस एसोसिएशन (एचएफ़पीए) का आभार व्यक्त किया है.

पायल कपाड़िया ने एक बयान जारी कर कहा, "मैं इस नॉमिनेशन से सम्मानित महसूस कर रही हूँ और इसके लिए एचएफ़पीए की आभारी हूँ."

पायल ने कहा, "यह उन सभी लोगों का जश्न है जिन्होंने पूरी लगन से इस फ़िल्म के लिए काम किया."

बेस्ट डायरेक्टर के लिए मोशन पिक्चर कैटेगरी में पायल कपाड़िया के साथ जैक्स औडियार्ड, सीन बेकर, एडवर्ड बर्गर, ब्रैडी कॉर्बेट और कॉरली फारजेट को भी नॉमिनेशन मिला है.

वहीं, बेस्ट मोशन पिक्चर के लिए नॉन इंग्लिश लैंग्वेज कैटेगरी में 'ऑल वी इमेजिन एज़ लाइट' के साथ पाँच अन्य फिल्में भी नामांकित हुई हैं.

इनमें एमिलिया पेरेज़, द गर्ल विद द नीडल, आई एम स्टिल हियर, द सीड ऑफ़ द सेक्रेड फ़िग और विरमीलियो फ़िल्म शामिल हैं.

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इससे पहले, पायल कपाड़िया अपनी फ़िल्म ‘ऑल वी इमेजिन एज़ लाइट’ के लिए कान फ़िल्म समारोह में भी अवॉर्ड जीत चुकी हैं.

बीते तीन दशकों में यह भारत की पहली फ़िल्म थी, जो इस समारोह की मुख्य प्रतिद्वंद्वी श्रेणी में प्रदर्शित हुई और उसने अवॉर्ड जीता था.

इस फ़िल्म ने ना सिर्फ़ तारीफ़ बटोरी, बल्कि इस प्रतिष्ठित फ़िल्म फ़ेस्टिवल का दूसरा सबसे बड़ा अवॉर्ड भी जीता.

कान समारोह के हॉल में जब पायल कपाड़िया की फ़िल्म ख़त्म हुई तो दर्शक खड़े होकर करीब आठ मिनट तक तालियां बजाते रहे.

मुंबई में केरल से आकर रह रही नर्सों के जीवन पर आधारित इस फ़िल्म को द जूरी प्राइज़ या ग्रां प्री अवॉर्ड मिला था.

इस पुरस्कार के साथ ही 38 साल की पायल कपाड़िया फ्रांसिस फ़ोर्ड कोपोला जैसे निर्देशकों की क़तार में शामिल हो गई हैं.

तीन महिलाओं की दोस्ती की कहानी Getty Images पायल कपाड़िया को कान फ़िल्म समारोह में भी अवॉर्ड मिला था

कान फ़िल्म समारोह में अवॉर्ड मिलने के बाद पायल ने कहा था, “ये मेरे लिए अविश्वसनीय है और मैं अपने आप को चुटकी काट रही हूं. मैं बहुत आभारी हूं और यहां पहुंचकर बहुत ख़ास महसूस कर रही हूं.”

उन्होंने उस समय कहा था, “इस प्रतियोगिता के लिए चयनित होना ही सपने जैसा था और ये अवॉर्ड मेरी कल्पना से परे है. इस समारोह में पहुंचकर बहुत अच्छा लग रहा है. कृपया अगली भारतीय फ़िल्म के लिए तीस साल का इंतज़ार ना करें. ”

'ऑल वी इमेजिन एज़ लाइट' तीन अलग-अलग महिलाओं की दोस्ती की कहानी है और इस फ़िल्म में कई जगह ये महिला किरदार एक-दूसरे के सामने खड़ी नज़र आती हैं.

पायल कपाड़िया ने कहा, “ये फ़िल्म तीन बहुत अलग महिलाओं की दोस्ती की कहानी है और अक्सर महिलाएं एक-दूसरे के आमने-सामने खड़ी नज़र आती हैं. हमारे समाज को इसी तरह डिज़ाइन किया गया है, ये बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है, लेकिन मेरे लिए, दोस्ती एक बहुत अहम रिश्ता है. दोस्ती एक-दूसरे के प्रति मज़बूत एकजुटता, समावेशिता और सहानुभूति पैदा कर सकती है.”

कान फ़िल्म समारोह के दौरान पायल कपाड़िया ने फ़िल्म की अभिनेत्रियों को मंच पर बुलाते हुए कहा था, “मुझे नहीं लगता कि इनके बिना ये फ़िल्म बन पाती, इन तीन महिलाओं ने मुझे कितना कुछ दिया है, एक परिवार की तरह इन्होंने फ़िल्म को अपना बनाया.”

पायल का सफ़र BBC

मुंबई में पैदा हुई पायल कपाड़िया कलाकार नलिनी मलानी की बेटी हैं.

पायल ने आंध्र प्रदेश के ऋषि वैली स्कूल से पढ़ाई की और आगे चलकर मुंबई के सेंट ज़ेवियर कॉलेज से अर्थशास्त्र की डिग्री ली. उन्होंने सोफ़िया कॉलेज से एक साल की मास्टर्स डिग्री भी ली है.

फ़िल्मों में उनकी दिलचस्पी उन्हें पुणे के एफ़टीटीआई तक ले गई जहां उन्होंने फ़िल्म निर्माण की शिक्षा ली.

कपाड़िया की पहली डॉक्यूमेंट्री ‘ए नाइट ऑफ़ नोइंग नथिंग’ ने साल 2021 में कान फ़िल्म समारोह में गोल्डन आई अवॉर्ड जीता था. ये फ़िल्म पुणे के फ़िल्म संस्थान में साल 2015 में हुए छात्रों के प्रदर्शन पर आधारित थी.

इसके अलावा पायल कपाड़िया ने ‘ऑफ़्टरनून क्लाउड्स, द लास्ट मैंगो बिफ़ोर द मॉनसून’ और ‘वॉट इज़ द समर सेइंग’ जैसी फ़िल्में बनाई हैं.

2015 प्रदर्शनों का चेहरा थीं पायल कपाड़िया AFP 2015 में फ़िल्म एंड टेलीविज़न इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया में छात्रों ने संस्थान प्रबंधन के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किए थे

पायल कपाड़िया पुणे के फ़िल्म एंड टेलीविज़न इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया की छात्र रही हैं और 2022 में आई उनकी पहली डॉक्यूमेंट्री इस फ़िल्म संस्थान में हुए छात्रों के प्रदर्शन पर आधारित थी.

2015 में हुए इन प्रदर्शनों के दौरान पायल एफ़टीआईआई की छात्रा थीं और इस दौरान उन पर संस्थान ने अनुशासनात्मक कार्रवाई की थी.

चार महीने चले इन प्रदर्शनों में पायल कपाड़िया एक प्रमुख चेहरा थीं. बाद में संस्थान ने उन्हें मिलने वाली स्कॉलरशिप में भी कटौती कर दी थी.

पायल कपाड़िया ने तब इन प्रदर्शनों को लेकर कहा था, “आप हड़ताल के लिए छात्रों को ज़िम्मेदार नहीं ठहरा सकते हैं. हड़ताल मौज-मस्ती के लिए नहीं होती है. इसके लिए बहुत मेहनत और मज़बूत इच्छाशक्ति की ज़रूरत होती है."

"पिछली सरकारों ने भी एफ़टीआईआई को लेकर कई बड़ी ग़लतियां की हैं. उन्होंने शिक्षाविदों को इंस्टीट्यूट नहीं चलाने दिया बल्कि इसे ऐसे बाबुओं के हाथ में दे दिया जिन्हें सिनेमा की कोई जानकारी नहीं है.”

पायल कपाड़िया ने तब एफ़टीआईआई की छात्रा रहते हुए कहा था कि इस संस्थान के छात्र ऐसी फ़िल्में बनाते हैं जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कला में योगदान करती हैं.

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