यूट्यूब क्यों और कैसे बन रहा है टीवी चैनलों के लिए बड़ा ख़तरा?
इस साल जुलाई का महीना यूट्यूब के लिए अच्छी ख़बर लेकर आया. पहली बार अमेरिका में लोगों ने टीवी या सिनेमा देखने से ज़्यादा समय यूट्यूब पर बिताया.
यूट्यूब ने डिज़्नी, पैरामाउंट, फॉक्स चैनल, नेटफ़्लिक्स और अमेज़न जैसे ओटीटी प्लेटफॉर्म्स को भी पीछे छोड़ दिया.
हालांकि आने वाले कुछ महीनों में यूट्यूब फिर डिज़्नी और डीसी प्लेटफ़ॉर्म से पिछड़ कर दूसरे नंबर पर खिसक गया.
दुनिया में यूट्यूब की लोकप्रियता बढ़ती जा रही है. यूके में 16 से 24 वर्ष के आयु वर्ग के 50 प्रतिशत लोग टेलीविजन पर कार्यक्रमों के बजाय यूट्यूब देखना अधिक पसंद करते हैं.
BBC बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिएइस हफ़्ते दुनिया जहान में हम यही जानने की कोशिश करेंगे कि क्या यूट्यूब ने टीवी चैनलों को पूरी तरह पछाड़ दिया है?
ये भी पढ़ें-ब्लूमबर्ग टेक्नॉलॉजी के पत्रकार और यूट्यूब के बारे में लिखी गई किताब ‘लाइक, कमेंट एंड सब्सक्राइब: यूट्यूब्स क्योटिक राइज़ टू वर्ल्ड डॉमिनेशन’ के लेखक मार्क बर्गेन कहते हैं, “यूट्यूब पर लोगों को तरह-तरह का कंटेंट मिलता है."
"दुनियाभर में हर महीने लगभग तीन अरब लोग यूट्यूब देखते हैं. इनमें से ज्यादातर 25 से 35 वर्ष के बीच के लोग हैं. यानी उनकी उम्र टीवी के मुख्य दर्शकों से कम है. यह अब ऐप्स, विडियो गेम कंसोल और स्मार्ट टीवी पर उपलब्ध है.”
उन्होंने कहा, “यह अब सबसे लोकप्रिय ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म बन चुका है और विज्ञापन कंपनियों के लोगों तक पहुंचने का एक सबसे बड़ा ज़रिया बन चुका है. यह वीडियो का सबसे बड़ा कैटलॉग है. लोग बहुत सी बातें यूट्यूब पर सर्च करके देख सकते हैं.”
ऑनलाइन वीडियो शेयरिंग प्लेटफ़ॉर्म यूट्यूब की शुरुआत 2005 में हुई थी और इस पर अपलोड किया गया पहला वीडियो महज 19 सेकंड का था, जो इसके सह संस्थापक ने कैलिफ़ॉर्निया के सैन डिएगो में प्राणी संग्रहालय के भीतर घूमते हुए रिकॉर्ड किया था .
एक साल बाद ही गूगल ने यूट्यूब को 1.65 अरब डॉलर में ख़रीद लिया. यूट्यूब सबसे अधिक भारत में देखा जाता है जहां लगभग 40 करोड़ लोग यूट्यूब देखते हैं. अब यूट्यूब सौ से अधिक देशों में उपलब्ध है.
मार्क बर्गेन के अनुसार ब्राज़ील, इंडोनेशिया सहित कई नए उभरते बाज़ारों में यूट्यूब ने ना सिर्फ़ टीवी चैनलों की जगह ले ली है, बल्कि वो वहां मनोरंजन और ख़बरों का मुख्य ज़रिया बन चुका है.
मार्क बर्गेन कहते हैं कि यूट्यूब तीन चरणों में विकसित हुआ.
वो कहते हैं, “यूट्यूब के एक पूर्व अधिकारी ने मुझे बताया था कि कंपनी का मंत्र था “चुनौती, मज़ाक या सच्चाई?” पहले मनोरंजन उद्योग और विज्ञापन कंपनियां यूट्यूब को गंभीरता से नहीं लेती थीं.
उसके बाद यूट्यूब का दूसरा चरण शुरू हुआ जिसमें वो हॉलीवुड, टीवी उद्योग, नेटफ़्लिक्स और अमेज़न के लिए ख़तरा बन गया. वो अपने ओरिजनल शो बनाने लगा और नेटफ़्लिक्स की तरह उपभोक्ताओं से सब्सक्रिप्शन शुल्क लेने लगा.”
बर्गेन कहते हैं कि 2016 में यूट्यूब ने ओरिजनल और महंगे कंटेंट बनाना शुरू किया. लेकिन वो नेटफ़्लिक्स जैसी कंपनियों के निवेश का मुकाबला नहीं कर पाया और उसने 2022 में अपने इस विभाग को बंद कर दिया. अब इस नए चरण में यूट्यूब ने अपनी जगह काफ़ी मज़बूत कर ली है.
मार्क बर्गेन का कहना है कि अब लोग यूट्यूब का इस्तेमाल यूटिलिटी प्लेटफ़ॉर्म की तरह इस्तेमाल करते है. मिसाल के तौर पर खाने की कोई चीज़ बनाने से लेकर किसी चीज़ की मरम्मत के वीडियो देखने के लिए यूट्यूब का इस्तेमाल होता है.
Getty Images यूट्यूबर मिस्टर बीस्ट यूट्यूब पर खासे लोकप्रिय हैं.यहां लोगों की ज़रूरत के अधिकांश वीडियो आसानी से मिल जाते हैं. यूट्यूब के अपने स्टार हैं जिनकी लोकप्रियता हॉलीवुड के सितारों से कम नहीं है.
26 वर्षीय एक कंटेंट क्रिएटर मिस्टर बीस्ट के यूट्यूब चैनल ने इस साल जून में भारतीय म्यूज़िक लेबल टी सिरीज़ के चैनल को भी पीछे छोड़ दिया.
उनके 32 करोड़ सब्सक्राइबर हैं. यूट्यूब और उसके जाने माने कंटेंट क्रिएटरों या सामग्री बनाने वालों को विज्ञापनों के ज़रिए भी आमदनी होती है. जब भी उनके चैनल पर विज्ञापन आता है, उन्हें पैसे मिलते हैं.
मार्क बर्गेन ने कहा, “जो पैसे विज्ञापन कंपनियां अपने विज्ञापन के प्रसारण के लिए देती हैं, उसका 45 प्रतिशत हिस्सा यूट्यूब कंपनी रख लेती है और शेष उन चैनलों या उसके कंटेंट क्रिएटरों को देती है."
"2007 में जब उन्होंने ये तरीका अपनाया तो वो काफ़ी नयी और जोखिम वाली सोच थी. लेकिन यही उसकी सफ़लता का एक बड़ा कारण साबित हुई.”
कुछ सेवाओं को छोड़ कर यूट्यूब की अधिकांश सेवाएं मुफ़्त हैं. यूट्यूब ने साबित कर दिया कि कोई भी व्यक्ति स्टार बन सकता है.
मार्क बर्गेन कहते हैं कि बड़ी संख्या में वीडियो अपलोड हो रहे हैं जिससे उन पर नियंत्रण भी एक मसला बन चुका है. अगर सरकारों को लगा कि यूट्यूब नियंत्रण से बाहर हो रहा है तो उसके लिए ख़तरा भी पैदा हो सकता है.
एक पत्रकार और ‘हाउ यूट्यूब शुक अप टीवी एंड क्रिएटेड ए न्यू जेनरेशंस ऑफ़ स्टार्स’ नामक किताब के लेखक क्रिस स्टोकेल वाकर बताते हैं कि यूट्यूब को कानून के उन दायरों से बाहर रखा गया है जिसके तहत कई देशों के टीवी प्रसारकों को काम करना पड़ता है.
यानी टीवी नेटवर्कों में जिस प्रकार के कड़े संपादकीय नियम लागू होते हैं, वैसे यूट्यूब के कंटेंट या सामग्री पर लागू नहीं होते.
इसे समझने के लिए इतिहास में झांकना पड़ेगा जब यूट्यूब के आने से कई साल पहले 1996 में अमेरिका के सूचना संचार विभाग ने टेक्नोलॉजी कंपनियों को बढावा देने के लिए डिसेंसी एक्ट या भद्रता संबंधी कानून में संशोधन करके उसमें सेक्शन 230 को जोड़ दिया.
इसका इरादा टेक्नोलॉजी कंपनियों को मुकदमों से बचाना था क्योंकि उनके पास उनके प्लेटफ़ॉर्म पर प्रसारित होने वाले कंटेंट की निगरानी करने के लिए पर्याप्त लोग या धन उपलब्ध नहीं था.
क्रिस स्टोकेल वाकर कहते हैं, “इस कानून का अर्थ यह था कि यह कंपनियां केवल यूज़र द्वारा बनाए गए कंटेंट प्रसारित करती हैं मगर वो उसके लिए ज़िम्मेदार नहीं हैं और ना ही उन पर हर कंटेंट को जांचने की ज़िम्मेदारी है.”
हालांकि, यूट्यूब पर आपत्तिजनक कंटेंट या सामग्री अपलोड करने वालों या आपत्तिजनक कमेंट करने वालों के ख़िलाफ़ मुकदमा दायर किया जा सकता है.
अब टेक्नोलॉज़ी कंपनियों की आय अरबों डॉलर में हो चुकी है और फिर भी उन्हें कानूनी सुरक्षा बरक़रार रखी गयी है.
क्रिस स्टोकेल वाकर का कहना है कि इन कंपनियों को बीस साल से यह छूट मिली हुई है और अब जाकर हम उसके परिणामों के बारे में सोचने लगे हैं. अब कॉपीराइट और अन्य मामलों में यूट्यूब जैसी कंपनियों की ज़िम्मेदारी तय करने के लिए कानून बनाए गए हैं.
Getty Images पारंपरिक टीवी की तुलना में यूट्यूब पर वीडियो और कार्यक्रम देखने में कई गुना उछाल आया है2019 में गूगल और यूट्यूब पर तेरह वर्ष से कम उम्र के बच्चों का डाटा उनके माता-पिता की अनुमति के बिना इकठ्ठा करने के आरोप में मुकदमा चला और समझौते के तहत इन कंपनियों ने रिकॉर्ड 17 करोड़ डॉलर चुकाए.
क्रिस स्टोकेल वाकर यह भी कहते हैं कि यह कंपनियां दुनियाभर में फैल चुकी हैं और किसी एक देश के अधिकार क्षेत्र में नहीं हैं जिसका वो फ़ायदा उठाती हैं. हालांकि कई जगहों पर वो सरकार के निशाने पर भी हैं.
क्रिस स्टोकेल वाकर ने कहा कि, “मिसाल के तौर पर मध्य पूर्व के कई देशों में या तो यूट्यूब पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, उसे लताड़ा गया है क्योंकि उसपर सेक्स, यौन हिंसा और ड्रग्स सेवन संबंधी ऐसे वीडियो मौजूद हैं जिस पर पश्चिम में इतनी आपत्ति नहीं उठायी जाती लेकिन वो मध्य पूर्व के देशों की संस्कृति के ख़िलाफ़ है.”
हाल में यूरोपीय संघ ने भी ऑनलाइन सुरक्षा सुनिश्चित करने और टेक्नोलॉजी कंपनियों के प्रतिस्पर्धा विरोधी व्यवहार पर नकेल कसने के लिए दो नए कानून लागू किए हैं. मगर उन क़ानूनों को लागू करने में समस्या है क्योंकि यूट्यूब पर बड़ी संख्या में सामग्री अपलोड होती रहती है.
क्रिस स्टोकेल वाकर का कहना है कि यूट्यूब पर हर मिनट पांच सौ घंटे का कंटेंट अपलोड होता है. इसकी निगरानी करने में कई मुश्किलें आती हैं.
किस प्रकार की सामग्री यूट्यूब पर अपलोड की जाए और कौन सी नहीं इस बारे में कंपनी के अपने नियम और निर्देश हैं. मिसाल के तौर पर नफ़रत फैलाने वाली सामग्री और टिप्पणियां करने की मनाही है, जो यूज़र इन नियमों का पालन नहीं करते हैं उन्हें चेतावनी दी जाती है या उन पर प्रतिबंध भी लगा दिया जाता है.
कई बार ऐसी सामग्री पर विज्ञापनों को रोक दिया जाता है जिससे उस कंटेंट क्रिएटर को पैसे नहीं मिलते. क्रिस स्टोकेल वाकर कहते हैं कि यूट्यूब जैसी टेक्नोलॉजी कंपनियों को नियंत्रित करने में अभी भी सरकारों के सामने कई चुनौतियां हैं जिसमें से एक तो प्रभावी कानून बनाने में हो रही देरी है.
अमेरिका की कार्नेगी मेलन यूनिवर्सिटी में सूचना तंत्र के प्रोफ़ेसर राहुल तेलंग कहते हैं कि पहले टीवी उद्योग को नहीं लगता था कि उन्हें यूट्यूब से कभी ख़तरा पैदा हो सकता है, लेकिन अब वह हॉलीवुड से लेकर नेटफ़्लिक्स और डिज़्नी जैसे कई चैनलों का प्रबल प्रतिस्पर्धी बन गया है.
वो कहते हैं, “यूट्यूब को एक सबसे बड़ा फ़ायदा यह है कि वह अपने यूज़रों द्वारा बनाया कंटेंट देता है जिन्हें यह नहीं सोचना पड़ता कि क्या ट्रैंड करेगा या लोकप्रिय होगा और क्या नहीं."
"जबकि टीवी कंपनियों और ओटीटी प्लैटफ़ार्मों को इस पर बहुत सोचना पड़ता है क्योंकि उन्हें अपने कंटेंट में काफ़ी पैसा भी लगाना होता है. इसमें समय लगता है और कई बार वह कंटेंट लोगों को पसंद नहीं आता. मगर यूट्यूब के सामने यह मसला बिल्कुल नहीं है. यानी यूट्यूब कोई जोखिम नहीं उठाता.”
दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि यूट्यूब भली भांति जानता है कि हम क्या देख रहे हैं.
Getty Imagesराहुल तेलंग कहते हैं कि नेटफ़्लिक्स या दूसरे पारंपरिक टेलीविजन चैनल केवल कंटेंट बना कर पेश कर देते हैं. लेकिन यूट्यूब जानता है कि हमने पिछले दिनों में क्या क्या देखा है और क्या पसंद किया है.
इसी जानकारी के आधार पर वह विज्ञापन भी देता है और नए वीडियो का सुझाव देता है. यानी अन्य स्ट्रीमिंग प्लेटफ़ॉर्म और पारंपरिक टीवी के मुकाबले वो दर्शकों के साथ काफ़ी जुड़ा रहता है.
मगर यूट्यूब की एक कमी यह है कि वो दूसरे चैनलों की तरह महंगे ड्रामे नहीं बना रहा है और ना ही बड़ी खेल प्रतियोगिताओं का प्रसारण करता है. वहीं टीवी और स्ट्रीमिंग प्लैटफ़ार्म यूट्यूब की पहुंच का फ़ायदा भी उठाना चाहते हैं.
राहुल तेलंग आगे कहते हैं कि जब भी टीवी चैनल और स्ट्रीमिंग प्लेटफ़ॉर्म नए शो लाते हैं तो उसे प्रमोट करने के लिए, लोगों में प्रचारित करने के लिए वो यूट्यूब का इस्तेमाल करते हैं.
यूट्यूब को पारंपरिक टीवी से तो ख़तरा नज़र नहीं आता लेकिन वो उसी की तरह यूज़र जनरेटेड कंटेंट पेश करने वाले वीडियो शेयरिंग एप टिकटॉक की बढ़ती लोकप्रियता पर पैनी नज़र रख रहा है जिससे उसे टक्कर मिल सकती है.
उन्होंने आगे कहा, “टिकटॉक ने भांप लिया है कि लोगों का मनोरंजन कैसे किया जा सकता है. मैंने अपने शोध में पाया है कि कुछ यूज़र छ: से सात घंटे तक भी टिकटॉक पर रील देखते हुए बिता देते हैं."
"अब सब लोग यूज़र का ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं. इस तरह के एप्स से यूट्यूब को चुनौती तो मिल सकती है लेकिन यूट्यूब पर इतनी विविधता और रोचक सामग्री है कि वो फ़िलहाल बाज़ार में सबसे आगे है और उसे उस जगह से हिलाना बहुत मुश्किल है.”
ब्रसेल्स की व्रिए यूनिवर्सिटी में यूरोपीय मीडिया मार्केट की प्रोफ़ेसर डॉक्टर मार्लिन कोमोरोवस्की का मानना है कि यूट्यूब दोबारा विज्ञापनों और कंटेंट क्रिएटरों पर अधिक ध्यान दे रहा है जो कि शुरुआत में उसका मूलमंत्र था.
अब वो यूट्यूब चैनलों पर अधिक विज्ञापन डालने लगा है. पिछले साल यूट्यूब ने विज्ञापनों के ज़रिए 31.5 अरब डॉलर कमाए यानी उसने अपनी पेरेंट कंपनी गूगल से भी दस प्रतिशत अधिक कमाई विज्ञापनों के ज़रिए की.
कोमोरोवस्की कहती हैं, “यूट्यूब ने बड़ी सफलता प्राप्त की है और दुनिया के कई बाज़ारों में पैर जमा लिए है. डिज़्नी चैनल कंटेंट बनाने में काफ़ी पैसे लगाता है, लेकिन यूट्यूब कंपनी भी कंटेंट बनाने में भारी निवेश कर रही है. यूट्यूब ने कंटेंट बनाने में दुनियाभर में 20 अरब ड़ॉलर खर्च किए हैं जो बड़ी रक़म है.”
यूट्यूब का मुख्य लक्ष्य यूज़र का ध्यान आकर्षित करना है और गूगल कंपनी का हिस्सा होने का कारण उसे अपने प्लेटफ़ॉर्म में नए फ़ीचर लाने में काफ़ी मदद मिलती है.
डॉक्टर मार्लिन कोमोरोवस्की बताती हैं कि गूगल की सहायता से वो अपने कंटेंट बनाने वालों के लिए उपयोगी फ़ीचर चैनल पर लाता है. वो उनके पूरे वीडियो का ऑटोमैटिक अनुवाद करता है और उनके वीडियो में सबटाइटल जोड़ता है. अपने कंटेंट बनाने वालों की सहायता के लिए वो आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस को विकसित करने की दिशा में भी कदम उठा रहा है.
टिकटॉक से स्पर्धा को देखते हुए यूट्यूब ने अपने प्लेटफ़ॉर्म पर ‘शॉर्ट्स’ या एक मिनट से छोटे वीडियो को शामिल कर लिया है.
डॉक्टर मार्लिन कोमोरोवस्की कहती हैं, “ टिकटॉक ने पहले इस छोटे वीडियो फ़ॉर्मेट को शुरू किया था. अब वो फ़ेसबुक और इंस्टाग्राम पर भी आ गया है और यूट्यूब ने भी उसे शामिल कर लिया है."
"यह फॉर्मेट काफ़ी सफल साबित हुआ है. यूट्यूब को हमेशा ध्यान रखना पड़ता है कि उसके प्रतिस्पर्धी क्या कर रहे हैं. यह सब डिजिटल मीडिया में प्रतिस्पर्धा कि दृष्टि से अच्छा है."
"एक समय लग रहा था कि फ़ेसबुक बहुत शक्तिशाली हो गया है लेकिन अब टिकट़ॉक भी बाज़ार में है. दरअसल अब फ़ेसबुक का इस्तेमाल करने वालों में युवाओं से ज़्यादा संख्या बड़ी उम्र के लोगों की है. यूट्यूब के साथ भी ऐसा हो सकता है.”
तो अब लौटते हैं अपने मुख्य प्रश्न की ओर, क्या यूट्यूब ने पूरी तरह टीवी चैनलों को पछाड़ दिया है? यूट्यूब ने अपने ओरिजिनल कंटेंट बनाने वाले विभाग को बंद कर दिया है मगर इसका यह मतलब नहीं है कि टीवी चैनलों को उससे ख़तरा कम हो गया है.
दरअसल यूट्यूब ने यूज़रों द्वारा बनाए जा रहे कंटेंट पर अधिक ध्यान देकर टीवी चैनलों के सामने बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है.
रोज़ाना यूट्यूब देखना करोड़ों लोग की आदत बन गया है. विज्ञापनों से यूट्यूब का आय बढ़ रही है और वो कंटेंट बनाने में निवेश बढ़ा रहा है. उसका कंटेंट हमेशा इंटरनेट पर उपलब्ध रहता है जिसके चलते लोग टीवी के बजाय यूट्यूब अधिक देखने लगे हैं.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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