झारखंड में बिहार के तीन युवकों की हत्या क्या मॉब लिंचिंग है? जानिए, पूरा मामला
ये अक्टूबर की 10 तारीख़ थी. दोपहर के एक बजे थे. वो लोग एंबुलेंस में दो लकड़ी के बक्से में बंद होकर अपने घर आए थे.
एंबुलेंस जैसे ही उनके गांव की पतली सी गली में घुसी, नथुनों को फाड़ने वाली दुर्गंध पहले से ही गमगीन माहौल में पसर गई.
घर की स्त्रियां उन बक्सों में बंद शवों की एक झलक देख लेना चाहती थी. लेकिन रोती बिलखती और चीखती स्त्रियों को वीभत्स तौर से क्षत विक्षत शवों को देखने का जोख़िम नहीं लिया गया.
एंबुलेंस से सिर्फ़ उन शवों के साथ आया उनका सामान उतारा गया. इसके बाद शवों को एंबुलेंस से अंतिम विदाई के लिए घर से तकरीबन एक किलोमीटर दूर स्थित श्मशान घाट ले जाया गया.
BBC बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिएघर में पीछे रह गई मां दहाड़ मार कर रोते रोते बेहोश हो जाती और अब तक सब्र बांधे पिता एक नन्हें बच्चे को सीने से चिपकाकर रो रहे हैं.
एंबुलेंस में रखे दो शव बिहार के शिवहर जिले के राकेश और रमेश के हैं. जिनकी हत्या बीते दिनों पड़ोसी राज्य झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम में हुई है.
बीते मंगलवार यानी आठ अक्टूबर को झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम ज़िले के गुदड़ी थाना क्षेत्र के जतरमा गांव में तीन युवकों के क्षत विक्षत शव पुलिस को मिले थे.
ये तीनों युवक मूल रूप से बिहार के रहने वाले थे. राकेश, रमेश और तुलसी साह.
राकेश और रमेश सगे भाई थे. ये लोग शिवहर जिले के पुरनहिया थानाक्षेत्र के कोल्हुआ गांव के रहने वाले थे. वहीं तुलसी साह पूर्वी चंपारण के पताही के रहने वाले थे.
ये तीनों कपड़ों की फेरी का काम करते थे.
राम कलेवर साह, राकेश और रमेश के पिता हैं. वो अपने घर में सात अक्टूबर से लगातार हो रहे रूदन से बेचैन हैं.
उनके चार लड़के हैं. राजेश, राकेश, सर्वेश और रमेश. इन चारों में सर्वेश को छोड़कर बाक़ी सभी फेरी का काम करते हैं.
राम कलेवर साह बताते हैं, "राकेश और रमेश बीते एक साल से फेरी का काम कर रहे हैं. ये लोग दस दिन पहले ही बंदगांव (झारखंड में एक जगह का नाम) में सात लोगों के साथ किराए पर कमरा लिए थे."
"रविवार (छह अक्टूबर) की सुबह जब रमेश की मां से बात हुई थी तो उसने कहा था कि वो शाम को ट्रेन पकड़कर दशहरा पूजा के लिए घर आएगा. लेकिन रविवार शाम से उसका फोन लगना बंद हो गया."
छह अक्टूबर की शाम से लेकर सात अक्टूबर की सुबह तक जब बात नहीं हुई तो परिवार को चिंता हुई. उन्होंने साथ रहने वाले फेरी वालों को फोन किया, लेकिन कुछ मालूम नहीं चला.
ऐसे में घर के सबसे बड़े लड़के यानी राजेश बंदगांव गए और स्थानीय थाने गुदड़ी में इसकी सूचना दी.
आठ अक्टूबर को झारखंड पुलिस के एक विशेष अभियान दल ने जतरमा गांव से लगभदृग 1.5 किलोमीटर दूर जंगल से इन तीनों युवकों के क्षत विक्षत शव बरामद किए, जो पोस्टमार्टम के बाद 10 अक्टूबर को अंतिम संस्कार के लिए अपने पैतृक स्थान पहुंचे.
बिहार के तीनों युवकों के शव बहुत बुरी अवस्था में मिले. इलाके के एक स्थानीय पत्रकार जिन्होंने शव देखे वो बताते हैं, "जहां घटना हुई है वो अति नक्सल प्रभावित जगह है. इसलिए वहां किसी पत्रकार का जाना संभव नहीं है."
"लेकिन शव जब पोस्टमार्टम के लिए ले जाए गए तो उनको देखकर उनके साथ हुई हैवानियत का पता चलता था."
उन्होंने बताया, "उन लोगों को सीढ़ीनुमा आकार की एक चीज से दोनों हाथ बांधकर लाठी डंडों से मारा गया था. शरीर का वो हाल था जिसके ब्यौरे लिखना भी मुश्किल है. ये मॉब लिंचिंग लग रही थी."
पश्चिमी सिंहभूम की स्थानीय मीडिया ने भी इस घटना को ‘पीट-पीट कर हत्या’ के तौर पर रिपोर्ट किया है. हालांकि पश्चिमी सिंहभूम के एसपी आशुतोष शेखर लिंचिंग से इनकार करते हैं.
वो बीबीसी से कहते हैं, "ये लिचिंग नहीं है. अभी इस मामले की जांच चल रही है और ये स्पष्टता नहीं है कि इस घटना में कितने लोग इन्वॉल्वड थे. अभी तक जो बातें सामने आई हैं, उसके मुताबिक स्क्रैच कार्ड को लेकर ये लोग ठग रहे थे जिसके चलते हत्या हुई है. इस मामले में अभी तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है."
इस मामले की जांच के लिए एसआईटी का गठन किया गया है.
पश्चिमी सिंहभूम नक्सल प्रभावित ज़िला है. भौगोलिक तौर पर देखें तो ये इलाक़ा घने जंगलों से घिरा हुआ है और दक्षिण में इसकी सीमा ओडिशा से मिलती है.
ऐसे में इन इलाकों में काम करना मुश्किल और जोखिम भरा है. लेकिन शिवहर के पुरनहिया ब्लॉक के युवक बड़ी संख्या में यहां फेरी का काम करने जाते हैं.
कोल्हुआ ठीकहा पंचायत के मुखिया आस नारायण साह बताते हैं, "पुरनहिया के कोल्हुआ, ठीकहा, बसंतपट्टी, हथसार, परौसनी, चमनपुर सहित कई गांव हैं जहां के नौजवान देश भर में फेरी वाले का काम करते हैं."
वो कहते हैं, "अकेले कोल्हुआ में 100 लड़के ये काम करते हैं. गांव में ही कोई थोड़ी पूंजी वाला आदमी दिल्ली-सूरत जैसी जगहों से साड़ी खरीद लाता है और फिर वो इन फेरी वालों को बेचने के लिए देता है. ऐसे ही यहां के लोगों की जिंदगी चलती है."
पुरनहिया थानाध्यक्ष ललन कुमार भी बताते हैं कि ये देश के लगभग हर हिस्से को अपनी मोटरसाइकिल से ही नाप लेते हैं.
लेकिन सिर्फ़ जगह जगह अपनी बाइक के सहारे जाकर कपड़े बेचना ही इनका काम नहीं है. ये साथ में लॉटरी (स्क्रैच कूपन) का भी काम करते हैं.
शिवहर के पूर्व जिला परिषद अरुण कुमार गुप्ता बताते हैं, "ये लोग साड़ी के साथ लॉटरी रखते हैं. 100-150 रुपये की साड़ी में ये लॉटरी रहता है. जिसके स्क्रैच करने पर 50 से 500 रुपये मिलने का भरोसा रहता है."
वो कहते हैं, "ज़्यादातर मौकों पर निकलता 50 ही रुपये है, लेकिन ये लोग 500 रुपये मिलने तक का लोभ देते हैं. पेट है तो उसके लिए रिस्क तो लेना ही पड़ेगा."
पुरनहिया ब्लॉक के स्थानीय रौशन कुमार बताते हैं, "ये लोग टीवी, फ्रिज, साइकिल, पैसा आदि जीतने का लोभ देते हैं. जिसमें ये कई तरह से ठगी करते हैं. सामान देना भी पड़े तो ये बहुत ख़राब क्वालिटी का लोकल सामान देते हैं."
वो बताते हैं, "लोगों में इसके चलते बहुत गुस्सा आता है और ये लोग बहुत बार बाहर से पिटाई खाकर आते हैं. कई लोगों ने तो यहां बहुत अच्छा पैसा कमा लिया."
यही वजह है कि ये लोग कुछ-कुछ दिन पर इलाका बदलते रहते हैं.
कोल्हुआ के ग्रामीण भी बताते हैं कि फेरी वाले सिर्फ़ 15 दिन के लिए कमरा किराए पर लेकर एक जगह रहते हैं और फिर किसी दूसरी जगह फेरी के लिए जाते हैं.
22 साल के सुनील साह की हत्या भी सात साल पहले झारखंड के गुमला में हो गई थी. उनका शव भी बहुत क्षत विक्षत हालत में मिला था.
कोल्हुआ से कुछ दूरी पर स्थित सुनौल सुल्तान गांव के रहने वाले सुनील अपने भाई प्रभु साह के साथ फेरी का काम करते थे.
प्रभु की पत्नी गीता देवी बताती हैं, "उसको मार दिया तो हमने अपने पति से फेरी का काम छुड़वा दिया. वो दिल्ली चले गए लेकिन सुरक्षित तो हैं. सुनील का तो 4 माह में ब्याह श्राध्द सब हो गया लेकिन हमारे चार बच्चे थे, हम कैसे पालते इनको."
सुनील ही नहीं, इलाके के उमेश यादव की हत्या भी फेरी का काम करते हुई थी.
यहां के स्थानीय लोग दावा करते हैं कि शिवहर के पुरनहिया ब्लॉक में चल रहे इस काम से सीतामढ़ी और पूर्वी चंपारण के लोग भी जुड़े हुए हैं.
पूर्वी चंपारण के पताही के भकुरहिया गांव के तुलसी साह का शव भी बीते आठ अक्टूबर को राकेश और रमेश के साथ मिला था.
दैनिक अख़बार 'दैनिक भास्कर' में छपी रिपोर्ट के मुताबिक़, तुलसी साह भी बीते पांच साल से लॉटरी के साथ फेरी का काम कर रहा थे. अख़बार लिखता है कि तुलसी के दो भाई धीरज और जीतू भी फेरी का ही काम करते थे.
इस तरह के मामलों में मुआवजे के प्रावधान को जानने के लिए बीबीसी ने बिहार सरकार के अधिकारी से बात की.
बिहार सरकार में लेबर एनफोर्समेंट ऑफिसर सुरेश कुमार बताते हैं, "फेरी वाले असंगठित मज़दूर हैं और इन्हें सरकार ‘शिल्पकार’ की कैटेगरी में रखती है."
वो बताते हैं, "इस तरह की मौत को एक्सीडेंटल डेथ की श्रेणी में रखा जाता है और बिहार राज्य प्रवासी मजदूर दुर्घटना अनुदान योजना के तहत मज़दूर के आश्रितों को दो लाख रुपये का मुआवजा दिया जाता है."
छह अक्टूबर 1994 को बिहार के सीतामढ़ी ज़िले से अलग होकर बना शिवहर बिहार का सबसे ग़रीब ज़िला है.
आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 के मुताबिक़ प्रति व्यक्ति आय के मामले में शिवहर सबसे फिसड्डी जिला है.
राज्य में पटना में प्रति व्यक्ति आय सबसे ज़्यादा यानी 1,14,541 रुपये है वहीं शिवहर की प्रति व्यक्ति आय सबसे कम सिर्फ़ 18,980 रुपये है.
रोज़गार के अवसरों के अभाव में राकेश और रमेश जैसे सैकड़ों नौजवान बड़े पैमाने में पलायन करते हैं.
25 साल के राकेश शादीशुदा थे और रमेश की शादी अभी नहीं हुई है. राकेश की पत्नी सुंदरवा देवी आठ माह के गर्भ से हैं और पहले से ही इस दंपत्ति की दो साल की बच्ची है.
घर के बुझे हुए चूल्हे में सुंदरवा का सिंदूरा (शादी में इस्तेमाल होने वाला सिंदूर का एक तरह का डिब्बा) और चूडियां एक पन्नी में बंधी रखी हैं.
बहु की इस हालत को देखकर राकेश के पिता राम कलेवर सवाल करते हैं. वो भर्राए गले से कहते हैं, “एक बच्चा है, और दूसरा देह में है. हम कैसे पालेंगे उनको. हमारे तो दो कमाने वाले चले गए.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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