वह दंपति, जिन्होंने गूगल से लड़ाई लड़ी और कंपनी पर लगा 2.4 अरब पाउंड का जुर्माना
“गूगल ने हमें इंटरनेट से गायब ही कर दिया था.” यह कहना है शिवौन राफ़ और उनके पति एडम राफ़ का.
इस दंपति ने साल 2006 में अच्छे-ख़ासे वेतन वाली नौकरी छोड़कर एक प्राइस कम्पेरिज़न वाली वेबसाइट फ़ाउंडेम की शुरुआत की थी.
लेकिन, फ़िर फ़ाउंडेम पर सर्च इंजन के एक ऑटोमैटिक स्पैम फिल्टर्स के कारण गूगल सर्च पेनल्टी लगाई गई, जिसका असर वेबसाइट के बिज़नेस पर पड़ा.
दरअसल, इस पेनल्टी के कारण इंटरनेट पर ‘प्राइस कम्पेरिज़न’ और ‘कम्पेरिज़न शॉपिंग’ जैसे सर्च रिज़ल्ट्स की लिस्ट में फ़ाउंडेम को बहुत पीछे कर दिया गया था.
BBC बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिएवैसे स्टार्टअप शुरू करने वाले संस्थापकों के लिए स्टार्टअप की शुरुआत का पहला दिन रोमांच और आशंकाओं से भरा होता है. लेकिन, शिवौन और एडम के लिए यह उससे भी ज़्यादा बुरा था.
क्योंकि, जब उन दोनों ने फ़ाउंडेम वेबसाइट की शुरुआत की थी, तब उनको अंदाज़ा नहीं था कि आने वाला समय उनके स्टार्टअप के लिए अच्छा नहीं रहने वाला है.
दरअसल, फाउंडेम पर गूगल सर्च पेनल्टी लगने के कारण राफ़ दंपति की वेबसाइट को पैसा कमाने में बहुत मुश्किल आ रही थी.
फ़ाउंडेम का रेवेन्यू मॉडल कुछ ऐसा था कि जब ग्राहक अन्य वेबसाइट के ज़रिए उनके उत्पादों की सूची पर क्लिक करता था, तो दंपति की वेबसाइट उनसे शुल्क लिया करती थी.
एडम कहते हैं, "हम अपने पेजों पर नज़र रख रहे थे कि आख़िर उनकी रैंकिंग कैसी है और फिर हमने देखा कि लगभग सभी तुरंत गिर गए थे."
फ़ाउंडेम के लिए पहला दिन योजना के मुताबिक नहीं रहा. इसने एक क़ानूनी लड़ाई को जन्म दिया, जो 15 साल तक चली.
और आख़िर में गूगल. इस मामले में ऐसा माना गया कि गूगल ने बाज़ार में उसके प्रभुत्व का दुरुपयोग किया है.
इस मामले को गूगल के ग्लोबल रेग्युलेशन में एक ऐतिहासिक क्षण के तौर पर देखा गया.
हालांकि, गूगल ने जून 2017 में जारी उस फ़ैसले के ख़िलाफ़ अदालत में सात साल लंबी लड़ाई लड़ी, मगर इस साल सितंबर में यूरोप की शीर्ष अदालत यूरोपियन कोर्ट ऑफ़ जस्टिस ने गूगल की अपील को ख़ारिज कर दिया.
इस फ़ैसले के बाद शिवौन और एडम ने में बताया कि पहले तो उन्हें लगा था कि उनकी वेबसाइट की लड़खड़ाती शुरुआत महज़ एक गलती थी.
55 वर्षीय शिवौन ने कहा, “शुरू में हमें लगा कि ग़लती से हमारी वेबसाइट को स्पैम के तौर पर समझ लिया गया है. हमें लगा था कि सही जगह पर शिकायत करने पर इस ग़लती को ठीक कर लिया जाएगा.”
इस मामले में 58 वर्षीय एडम ने कहा, “अगर आपको किसी तरह का ट्रैफिक नहीं मिलता है, तो आपका कोई बिज़नेस नहीं होता.”
दंपति ने गूगल से इस प्रतिबंध को हटाने के लिए कई बार अनुरोध किया. लेकिन, दो साल का समय बीत जाने के बाद भी इस स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया और न गूगल से कोई जवाब मिला.
शिवौन ने बताया कि उनकी वेबसाइट दूसरे सर्च इंजन पर पूरी तरह से सामान्य तौर पर रैंक कर रही थी, लेकिन इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा, क्योंकि अधिकतर लोग गूगल का इस्तेमाल कर रहे हैं.
हालांकि, दंपति को बाद में पता चला कि उनकी वेबसाइट अकेली नहीं थी, जिसको गूगल नुक़सान पहुँचा रही थी.
जब 2017 में गूगल को दोषी पाया गया और उस पर जुर्माना लगाया गया, तब मालूम पड़ा कि उनके अलावा केल्कू, ट्रिवागो और येल्पो समेत ऐसे 20 दावेदार थे.
एडम ने सुपरकंप्यूटिंग में अपना करियर बनाया था. वह बताते हैं कि उन्हें फ़ाउंडेम बनाने का ख़याल उनके पिछले कार्यालय के बाहर सिगरेट पीते हुए आया था.
यह वो समय था, जब प्राइस कम्पेरिज़न वाली वेबसाइट्स शुरुआती दौर में थी. उस समय हर वेबसाइट किसी एक ख़ास उत्पाद में विशेषज्ञता रखती थी.
मगर, फ़ाउंडेम इन सबसे अलग थी. यहां ग्राहकों के पास कपड़ों से लेकर फ्लाइट्स तक की क़ीमतों की तुलना करने का मौका था.
शिवौन खुद कई ग्लोबल ब्रांड्स के लिए बतौर सॉफ्टवेयर सलाहकार के रूप में काम कर चुकी हैं. वह मुस्कुराते हुए कहती हैं, "कोई दूसरा हमारी वेबसाइट के आस-पास भी नहीं था".
यूरोपीय आयोग ने 2017 के अपने फ़ैसले में कहा कि उन्होंने यह पाया है कि गूगल ने ग़ैर-क़ानूनी ढंग से सर्च रिजल्ट्स में खुद की कम्पेरिज़न शॉपिंग सर्विस को बढ़ावा दिया है और प्रतिस्पर्धी वेबसाइट्स को पीछे धकेल दिया है.
दस साल पहले, जब फ़ाउंडेम की स्थापना हुई थी, उस समय को याद करते हुए एडम कहते हैं कि तब उनके पास ऐसा मानने की कोई वजह नहीं थी कि गूगल ऑनलाइन शॉपिंग के मामले में जान-बूझकर प्रतिस्पर्धी विरोधी रवैया अपना रहा है और तब हम इस सेक्टर में गंभीर खिलाड़ी नहीं थे.
ये भी पढ़ेंसाल 2008 के आख़िर तक दंपति को कोई गड़बड़ी होने का शक़ होने लगा था. क्रिसमस से तीन सप्ताह पहले इस दंपति को एक संदेश मिला था.
इसमें यह चेतावनी दी गई थी कि उनकी वेबसाइट लोड होने में अचानक से धीमी पड़ गई है.
इस बारे में एडम हँसते हुए बताते हैं, "पहले तो उन्हें लगा कि यह एक साइबर हमला है, लेकिन वास्तव में ऐसा था कि हर किसी ने हमारी वेबसाइट पर आना शुरू कर दिया था."
चैनल 5 के द गैजेट शो में फ़ाउंडेम को लंदन की बेस्ट प्राइस कम्पेरिज़न वेबसाइट बताया गया था.
शिवौन बताती हैं, “वह वास्तव में ज़रूरी था. क्योंकि उसके बाद हमने गूगल से संपर्क किया और उनको कहा कि देखिए, हमारी वेबसाइट को ढूंढने के लिए गूगल के यूज़र्स को कोई फ़ायदा नहीं हो रहा है, क्योंकि आपने यूज़र्स के लिए हमको ढूंढ पाना असंभव बना दिया है.”
एडम कहते हैं, "फ़िर भी गूगल ने हमारी बात नहीं सुनी. यह वो पल था, जब हमें महसूस हुआ कि अब हमें लड़ना ही होगा."
दंपति ने प्रेस में जाकर अपनी बात रखी. मगर उनको सीमित सफलता मिली. इसके बाद उन्होंने अपने मामले को ब्रिटेन, अमेरिका और ब्रसेल्स के रेग्युलेटर्स के सामने रखा.
इसके बाद यूरोपीय आयोग के साथ यह मामला आगे बढ़ा. साल 2010 में एक जांच की शुरुआत की गई. फ़िर दंपति की रेग्युलेटर्स के साथ पहली बैठक ब्रसेल्स में एक कैबिन में हुई.
शिवौन उस समय को याद करते हुए बताती हैं, "रेग्युलेटर ने एक बात जो मुझसे कही थी, वो यह थी कि अगर यह सिस्टम की समस्या का मामला है, तो शिकायत करने वाले आप पहले क्यों हैं?".
उन्होंने बताया, “हमने कहा कि हम सौ फ़ीसदी तो आश्वस्त नहीं हैं, मगर हमें अंदेशा है कि लोग डरे हुए हैं, क्योंकि इंटरनेट पर सभी बिज़नेस अनिवार्य रूप से गूगल पर मिलने वाले ट्रैफ़िक पर निर्भर हैं.”
ये भी पढ़ेंयह दंपति ब्रसेल्स के एक होटल के कमरे में ठहरे थे, जो आयोग के भवन से सौ गज़ की दूरी पर स्थित है.
यह वो समय था, जब कॉम्पिटिशन कमिश्नर मार्गरेथ वेस्टेग़र ने आख़िरकार वह फ़ैसला सुनाया, जिसका इंतज़ार शिवौन और एडम के अलावा अन्य शॉपिंग वेबसाइट्स भी कर रहीं थीं.
फ़ैसला आने के बाद सभी का ध्यान जश्न मनाने के बजाए इस बात पर केंद्रित था कि यूरोपीय आयोग अपने फ़ैसले को जल्दी से लागू करवाए.
शिवौन कहती हैं, "यह गूगल के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है, जो उन्होंने हमारे साथ ऐसा किया".
उन्होंने कहा, "हम दोनों शायद ऐसे भ्रम में पले-बढ़े हैं, जहां हमें लगता था कि हम बदलाव ला सकते हैं और हमें वास्तव में धमकाने वाले पसंद नहीं हैं."
पिछले महीने गूगल को मिली हार के बावजूद इस दंपति की लड़ाई अभी ख़त्म नहीं हुई है.
उनका मानना है कि गूगल का रवैया अब भी प्रतिस्पर्धी विरोधी बना हुआ है और यूरोपीय आयोग इस मामले की जांच कर रहा है.
इस साल मार्च में, आयोग ने अपने नए डिजिटल मार्केट एक्ट के तहत गूगल की पेरेंट कंपनी, अल्फ़ाबेट के ख़िलाफ़ जाँच की शुरुआत की.
इसका मक़सद यह जानना था कि क्या गूगल अब भी सर्च रिजल्ट में अपनी खुद की सेवाओं को प्राथमिकता दे रहा है.
ये भी पढ़ेंगूगल के एक प्रवक्ता ने कहा, "यूरोपियन कोर्ट ऑफ़ जस्टिस का फ़ैसला केवल इस बात से संबंधित है कि हमने 2008 से 2017 के दौरान उत्पाद परिणाम कैसे दिखाए".
उन्होंने आगे कहा, "यूरोपीय आयोग के फ़ैसले का पालन करने के लिए हमने 2017 में जो बदलाव किए थे, उन्होंने 7 सालों से ज़्यादा समय तक अच्छे से काम किया है, और 800 से ज़्यादा कम्पेरिज़न शॉपिंग सर्विस वेबसाइट्स को इसके ज़रिए अरबों क्लिक्स मिले हैं."
उन्होंने कहा, "इस कारण, हम फाउंडेम के दावों का कड़ा विरोध करते रहेंगे और ऐसा तब भी करेंगे, जब अदालत इस मामले पर विचार करेगी".
राफ़ दंपति भी गूगल के ख़िलाफ़ दीवानी मुकदमा कर रहे हैं, जिसकी सुनवाई 2026 की पहली छमाही में होने वाली है.
मगर, यदि दंपति को यह आख़िरी जीत मिल भी जाती है, तो उनको इससे कोई ज़्यादा फ़ायदा नहीं होने वाला है, क्योंकि इसके चलते उनको साल 2016 में फाउंडेम बंद करना पड़ा था.
गूगल के ख़िलाफ़ यह लंबी लड़ाई दंपति के लिए भी मुश्किल रही है.
एडम कहते हैं, "मुझे लगता है कि अगर हमें पता होता कि यह लड़ाई इतने सालों तक चलेगी, तो शायद हम ऐसा करने का फ़ैसला करते ही नहीं".
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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