हरियाणा विधानसभा चुनाव: आंकड़ों से समझिए कैसे कांग्रेस से आगे निकली बीजेपी

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भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने हरियाणा विधानसभा चुनाव में सत्ता विरोधी लहर, किसान और पहलवान आंदोलन के बावजूद जीत हासिल की और लगातार तीसरी बार सत्ता में काबिज़ हुई.

बीजेपी ने लगभग सभी एग्जिट पोल्स को गलत साबित किया और बड़े आराम से बहुमत के आंकड़े को पार करते हुए 48 सीटों पर जीत दर्ज की.

इस बार के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 39.9 प्रतिशत वोट मिले, जो कि पिछले विधानसभा चुनाव (2019) की तुलना में 3.5 प्रतिशत ज़्यादा हैं. बीजेपी को पिछली बार से आठ सीटें ज़्यादा हासिल हुईं.

वहीं दूसरी ओर लगभग सभी एग्जिट पोल्स में कांग्रेस की जीत के अनुमान लगाए जा रहे थे.

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कांग्रेस को पिछली बार की तुलना में इस बार 11 प्रतिशत अधिक वोट मिले और उसने लगभग बीजेपी के बराबर ही वोट शेयर हासिल किया.

कांग्रेस को 39.09 प्रतिशत वोट मिले, फिर भी वह मात्र 37 सीट ही जीत सकी. हालांकि ये पिछले विधानसभा चुनावों से छह सीटें ज़्यादा है.

2019 के चुनाव में किंगमेकर की भूमिका निभाने वाली जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) को एक भी सीट नहीं मिली. पिछली बार जेजेपी को 10 सीटों पर जीत मिली थी.

वोट शेयर के हिसाब से इस बार जेजेपी सातवें स्थान पर रही.

जेजेपी को हुए नुक़सान का सबसे बड़ा फ़ायदा कांग्रेस को हुआ और वह वोट शेयर के मामले में बीजेपी के लगभग बराबरी पर आ गई.

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इस बार के चुनाव में बीजेपी को अपनी 40 में से 26 सीटों को सुरक्षित बचाने में कामयाबी मिली. वहीं पार्टी ने 22 नई सीटों पर भी जीत दर्ज की.

जबकि कांग्रेस अपनी 31 में से मात्र 15 सीटें ही बचा पाई और 22 नई सीटों पर जीत हासिल की.

बीजेपी को अपने वोट शेयर में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी खरखौदा (एससी) और दादरी में मिली, जहां 2019 के चुनाव में पार्टी तीसरे स्थान पर रही थी.

इस बार बीजेपी ने 51 प्रतिशत वोट शेयर के साथ खरखौदा सीट और 46 प्रतिशत वोट शेयर के साथ दादरी सीट पर जीत दर्ज की.

हरियाणा की करीब 11 सीटों पर कांग्रेस को सबसे बड़ा नुकसान निर्दलीय उम्मीदवारों ने पहुंचाया.

राज्य की 45 सीटों पर कांग्रेस दूसरे स्थान पर रही. इनमें से 11 सीटें ऐसी हैं, जिनमें निर्दलीय उम्मीदवारों ने हार के अंतर के बराबर वोट हासिल कर कांग्रेस का खेल बिगाड़ दिया.

नीचे दिए चार्ट में देख सकते हैं कि इन सीटों पर कांग्रेस और निर्दलीय उम्मीदवारों का वोट शेयर जोड़कर देखें तो वह बीजेपी से ज़्यादा है, जो कि जीत के लिए काफी है.

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इसके अलावा हरियाणा में ऐसी पांच सीटें रहीं जिनमें निर्दलीय उम्मीदवार दूसरे स्थान पर रहे और कांग्रेस तीसरे स्थान पर रही.

इनमें से चार सीटों पर कांग्रेस के बागी उम्मीदवार निर्दलीय के तौर पर चुनाव मैदान में उतरे थे और उन्होंने दूसरा स्थान हासिल किया.

उदाहरण के लिए, अंबाला कैंट सीट पर चित्रा सरवरा ने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा और 39.4 प्रतिशत वोट हासिल किए. उन्हें कांग्रेस ने टिकट नहीं दिया था.

इसकी वजह से कांग्रेस के उम्मीदवार परविंदर पाल परी को मात्र 10.9 प्रतिशत वोट हासिल हुए.

दलित वोटों को अपने पक्ष में करने की कांग्रेस की कोशिश भी काम नहीं आई. अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटें बीजेपी और कांग्रेस के बीच लगभग बराबर-बराबर बंट गईं.

बीजेपी को 8 सीटें मिलीं जबकि कांग्रेस को 9 सीटें मिलीं.

वहीं सामान्य सीटों में से 40 पर बीजेपी और 28 पर कांग्रेस को जीत मिली.

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वहीं जिन सीटों पर पार्टियों की स्थिति मजबूत है, जहां किसी पार्टी ने कम से कम लगातार तीन चुनाव जीते हों, उन सीटों की बात करें तो बीजेपी ने कांग्रेस की तीन सीटों पर सेंध मारी है.

ये सीटें खरखौदा, गोहाना और तोशाम हैं, जहां बीजेपी ने कांग्रेस को उसके गढ़ में हराया.

ऐसी ही एक और सीट पुंडरी है, जहां लगातार छह चुनावों से निर्दलीय उम्मीदवार जीतते आ रहे थे, लेकिन इस बार मतदाताओं ने बीजेपी उम्मीदवार सतपाल जांबा के सिर जीत का सेहरा पहनाया.

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