विराट कोहली के लिए सचिन तेंदुलकर की ये पारी बन सकती है नज़ीर?
36 साल के विराट कोहली महज़ एक बल्लेबाज़ ही नहीं बल्कि ज़हनी सुकून हैं.
एक ऐसे मुल्क में जहां हर दिन मुश्किलों से भरा होता है, उनकी बल्लेबाज़ी करोड़ों क्रिकेट प्रेमियों के लिए दवा का काम करती है. ऐसे में उनकी नाकामी दुखी करने वाली भी होती है.
मौजूदा गावस्कर-बॉर्डर ट्रॉफ़ी में लगातार चार स्लिप और एक गली की फ़ील्डिग के तनाव में आस्ट्रेलियाई गेंदबाज़ों की ऑफ़ स्टंप के बाहर की लाइन ने विराट के करियर को ख़तरे में डाल दिया है. सिरीज़ में अब तक विराट का स्कोर पांच, 100, सात, 11 और तीन रहा है. इस दौरे की पांच पारियों में विराट के महज़ 126 रन हैं जिसमें एक शतक भी शामिल है.
इस साल 17 पारियों में कोहली ने 25.06 की औसत से महज़ 376 रन ही बनाए हैं. उनकी रन बनाने की रफ़्तार में आई कमी के कारण उनका कुल औसत गिरकर 47.40 पर आ गया है जो कि पिछले आठ सालों में सबसे कम है.
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BBC पिच या फ़ुटवर्क में से बड़ी परेशानी क्या? Getty Images इस दौरे पर साफ़ दिखा है कि कोहली ने उन गेंदों को छेड़ने की कोशिश की जिसे उन्हें छोड़ देना चाहिए थाहालांकि उस शतक का रिप्ले देखने से पता लगता है कि पचास रन पार करने के बाद उनके बल्ले से कई इनसाइड-आउटसाइट एज विकेटों के क़रीब से निकले. बाक़ी पारियों में गेंद उनके बैट को टच करने के बाद स्लिप या विकेटकीपर के दस्तानों में जा रही है.
भारतीय टेस्ट क्रिकेटर चेतेश्वर पुजारा ने स्टार स्पोर्ट्स पर कहा, "कोहली नंबर चार पर बल्लेबाज़ी करते हैं. लेकिन इस सिरीज़ में उन्हें जल्दी नई गेंद का सामना करना पड़ा है क्योंकि ऊपर के तीन बल्लेबाज़ जल्दी आउट हो रहे हैं. जब भी उन्हें नई गेंद पर बल्लेबाज़ी करनी पड़ी है. उनका विकेट जल्दी गिरा है. पर्थ में जब वह बल्लेबाज़ी करने आए थे तो उस समय तक गेंद पुरानी हो चुकी थी और उन्होंने शतक बनाया था. मेरा मानना है कि उनकी बल्लेबाज़ी 10-15-20 ओवर के बाद आनी चाहिए."
दिनेश लाड मुंबई में क्रिकेट कोच हैं और उन्होंने भारतीय क्रिकेट को रोहित शर्मा जैसा क्रिकेटर दिया है. बतौर कोच उन्होंने विराट के करियर को काफ़ी क़रीब से परखा है. उनका मानना है कि विराट के फ़ुटवर्क में दिक़्क़त आ रही है.
बीबीसी हिन्दी से बातचीत में उन्होंने कहा, "मेरा मानना है कि विराट ऑस्ट्रेलियाई कंडिशंस में ख़ुद को पूरी तरह ढाल नहीं पाए हैं. मुझे लगता है कि इस दिक़्क़त का सबसे बड़ा कारण उनका फ़ुटवर्क है. साथ ही ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाज़ों ने उनके ख़िलाफ़ काफ़ी अच्छा होमवर्क किया है. यह भी समझना होगा कि टी-20 क्रिकेट के कारण भी यह खेल बदला है. अब बल्लेबाज़ ज़्यादा अटैकिंग होकर खेलने की कोशिश करते हैं. लेकिन आस्ट्रेलिया जैसी पिचों पर ऐसा खेलना आसान नहीं होता."
इस दौरे पर साफ़ दिखा है कि कोहली ने उन गेंदों को छेड़ने की कोशिश की जिसे उन्हें छोड़ देना चाहिए था. ऐसा लग रहा है कि वह गेंदबाज़ पर जल्द ही हावी होने की कोशिश कर रहे हैं. तो क्या उनका इस तरह से आउट होना अहम का मसला है!
इंग्लैंड के पूर्व कप्तान माइकल वॉन ने कंमेंट्री के दौरान इस तरफ़ इशारा भी किया. उन्होंने कहा, "विराट ऐसे बल्लेबाज़ हैं जो आते ही गेंदबाज़ पर हावी होने की कोशिश करते हैं. जब वह अपनी उम्दा फ़ॉर्म में होते है, ख़ासकर ऑस्ट्रेलिया या इंग्लैंड में जहां गेंद में मूवमेंट ज़्यादा रहती है, वह गेंद को जाने देते हैं. इस सिरीज़ में वह ज़्यादातर उस बॉल पर आउट हुए हैं जो उन्हें छोड़ देनी चाहिए थी."
कोहली की इस सिरीज़ में नाकामी को भारत में तैयार की जाने वाली पिचों से भी जोड़ कर देखे जाने की ज़रूरत है. हालांकि, यह सिर्फ़ विराट पर ही लागू नहीं होता. घर पर धीमी पिचों पर खेल कर रनों का अंबार लगाने वाले बल्लेबाज़ों के लिए ऑस्ट्रेलिया या इंग्लैंड की पिचों पर रन बनाने के लाले पड़ जाते हैं.
इस सिरीज़ में ऐसा बार-बार हुआ है जब कोहली ने गिरने के बाद सामने से उठ कर छाती की ऊंचाई पर आती हुई ऑफ़ स्टंप के बाहर की गेंद को फ्रंटफुट पर खेलने की कोशिश की.
ब्रिस्बेन में भी जोश हेज़लवुड ने ऐसी ही गेंद कोहली को डाली जो उनके बल्ले को टच करने के बाद विकेटकीपर एलेक्स कैरी के दस्तानों में थी. यह पहली बार नहीं हुआ है जब विराट ऑफ़ स्टंप के बाहर की गेंद को खेलने के कारण ख़राब फ़ॉर्म झेल रहे हैं.
साल 2011 से 2019 के बीच 27 टेस्ट शतक लगाने वाले विराट की मौजूदा फ़ॉर्म के बाद ज़ाहिर है कि सवाल उठेगा कि टीम इंडिया में वह कितने समय और बने रहेंगे.
असल में आस्ट्रेलियाई दौरा इससे पहले भी कई स्टार क्रिकेटरों को रिटायरमेंट लेने के लिए मजबूर कर चुका है. इनमें सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़, वीवीएस लक्ष्मण और वीरेंद्र सहवाग का नाम भी शामिल है.
अब ये भी सवाल लाज़िम है कि क्या विराट यहां से उबर पाएंगे या नहीं! या फिर उन्हें टीम के लिए रन जुटाने में और कितना समय लगेगा.
इन सब परिस्थितियों में दिनेश लाड का भरोसा विराट पर कम नहीं हुआ है.
वह कहते हैं, "इससे पहले भी विराट की ख़राब फ़ॉर्म चर्चा का कारण बनी थी लेकिन वह कमबैक करने में कामयाब रहे थे. यक़ीनी तौर पर उनकी आलोचना होगी लेकिन मेरा यह मानना है कि उन्हें किसी भी तरह का प्रेशर नहीं लेना चाहिए. बतौर कोच मुझे उनका इस तरह से आउट होना दुखी कर रहा है. लेकिन मेरा मानना है कि वह कमबैक करेंगे. यह भी समझना होगा कि टेस्ट चैंपियनशिप और वनडे पर पूरा ध्यान लगाने के लिए उन्होंने टी-20 से संन्यास लिया है. ज़ाहिर है कि वह अभी और टेस्ट क्रिकेट खेलना चाहते हैं."
ऐसा दिखने लगा है कि टीम में आए युवा बल्लेबाज़ों की मौजूदगी कोहली और रोहित शर्मा जैसे सीनियर बल्लेबाज़ों की विदाई का सबब बन सकती है.
'बीबीसी टेस्ट मैच स्पेशल' के लिए लंबे समय से कमेंट्री करने वाले प्रकाश वाकंकर का मानना है, "इन पिचों पर जल्दबाज़ी करना भारत के टॉप बल्लेबाज़ों को रास नहीं आ रहा है. आख़िरकार उन्हें पांच दिन तक का मैच ध्यान में रखना चाहिए, न कि हर गेंद को चेज़ करने की कोशिश करनी चाहिए. कोहली और रोहित अक्सर कुछ ऐसा ही करते दिखे हैं."
ऐसे में विराट कोहली के लिए बाक़ी पारियों में बड़ा स्कोर देना सिर्फ़ ज़रूरत ही नहीं बल्कि मजबूरी भी बन गई है. इसके लिए उन्हें एबी डिविलियर्स और सचिन तेंदुलकर से प्रेरणा लेनी चाहिए.
डिविलियर्स ने 2004 और 2005 में अपने करियर के पहले दो सालों में 50 की औसत से रन बना कर धमाका किया था. लेकिन अगले दो सालों में यह औसत कम होती गई.
इस दौरान 20 टेस्ट मैचों में उनका औसत महज़ 27 का ही था. लेकिन 2007 के अंत आते-आते उन्होंने वापसी की, वेस्टइंडीज़ के ख़िलाफ़ एक ही टेस्ट मैच में दो अर्धशतक मारने के बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और पूरे करियर में उनका औसत कभी 45 से नीचे नहीं आया.
विराट को सचिन तेंदुलकर की 2003-2004 की ऑस्ट्रेलियाई दौरे में सिडनी टेस्ट मैच की पारी से सबक़ लेना चाहिए.
उस समय सचिन बिलकुल ऐसे ही दौर से गुज़र रहे थे लेकिन सिडनी में वह 436 गेंदों पर 33 चौकों के साथ बिना कवर ड्राइव खेले 10 घंटे की बल्लेबाज़ी के बाद 241 रन की पारी खेल गए थे. ज़ाहिर है कि विराट ऐसे बल्लेबाज़ हैं, जो ऐसे करिश्मे दोहरा सकते हैं.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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