रविचंद्रन अश्विन ने लिया अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास, शुरू से आख़िर तक यूं रहे वे ख़ास
“अरे जैसबॉल, ये है तेरे लिए फील्डिंग, अब हिट कर”
धर्मशाला में टेस्ट मैच से ठीक पहले रविचंद्रन अश्विन की ये बात आपके कानों तक पहुँचती है तो यक़ीन करना मुश्किल हो जाता है कि भारतीय क्रिकेट का ये दिग्गज अपने 100वें टेस्ट मैच से पहले एक युवा ओपनर के साथ उसी तरीक़े से पेश आ रहा है, जैसा कि वह अपने पहले टेस्ट में करता थे.
अश्विन के इस तंज़ को सुनकर यशस्वी जायसवाल ही क्या बल्कि अक्षर पटेल और कुलदीप यादव भी ठहाके लगाकर हँसने लगते हैं.
मैदान के अंदर अश्विन ने अब तक क्रिकेट करियर में कई तरह के बदलाव एक खिलाड़ी के तौर पर किए हैं लेकिन मैदान के बाहर भी उन्होंने अपनी शख्सियत में कई विशेषताएं जोड़ी हैं, जिससे वो हर उम्र और हर प्रदेश के खिलाड़ी के सामने बेहद सहज नज़र आते हैं.
तमिलनाडु से आने वाले खिलाड़ी पारंपारिक तौर पर हिंदी भाषा को लेकर संघर्ष करते हैं लेकिन अनौपचारिक तौर पर भारतीय ड्रेसिंग रूम की यही भाषा है.
अश्विन से प्रेस कॉन्फ़्रेंस में जब ये सवाल पूछा गया कि उनके लिए 100 टेस्ट क्लब में शामिल होने वाले तमिलानाडु से पहले खिलाड़ी होने के क्या मायने हैं तो उन्होंने बेहद चिर-परिचित अंदाज़ में एक दार्शनिक सा जवाब दिया.
अश्विन ने कहा, "एक कामयाब भारतीय क्रिकेटर होने के कई पहलू होते हैं और इस दौरान आपको सैकड़ों चुनौतियों से गुज़रना पड़ता है."
उन्होंने उम्मीद जताई कि आने वाले वक़्त में वो तमिलनाडु के युवा खिलाड़ियों के साथ अपने अनुभव साझा करेंगे और कोशिश करेंगे कि उनके राज्य से आने वाले खिलाड़ी और बेहतर करें.
अश्विन के असाधारण करियर की कहानी को सिर्फ़ एक तमिलनाडु के क्रिकेटर या फिर सिर्फ़ एक भारतीय क्रिकेटर के तौर पर देखना सही नहीं होगा.
अश्विन ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस तरीक़े से अपना लोहा मनवाया है. इंग्लैंड के पूर्व कप्तान माइकल वॉन ने उनकी तुलना शेन वॉर्न और मुथैया मुरलीधरन जैसे दिगग्जों से की है.
इंग्लैंड के पूर्व कप्तान और दिग्गज बल्लेबाज़ जो रूट ने हाल ही में इस बात का ज़िक्र किया कि कैसे इस दौर के एक और बेहद कामयाब ऑफ़ स्पिनर नेथन लॉयन और अश्विन में क्या फ़र्क़ है.
रूट का कहना था जहाँ लॉयन आपकी ग़लतियों का इतंज़ार करते हुए कभी नहीं थकते दिखते हैं, वहीं अश्विन हर पल नई विविधिता और नए सवालों के साथ किसी को भी चैन लेने का मौक़ा नहीं देते हैं.
'अश्विन शुरू में बल्लेबाज़ बनना चाहते थे' Getty Imagesभारतीय टीम के कप्तान रोहित शर्मा ने धर्मशाला टेस्ट से ठीक पहले अश्विन की जमकर तारीफ़ की.
उन्होंने कहा कि किस तरह से शुरुआती दौर में अश्विन बल्लेबाज़ बनना चाहते थे और गेंदबाज़ बने और वो ख़ुद गेंदबाज़ बनना चाहते थे और वो बल्लेबाज़ बने और ये ठीक ही हुआ क्योंकि इससे भारतीय क्रिकेट को फ़ायदा हुआ.
रोहित ने जो सबसे ख़ास बात अश्विन के बारे में कही वो ये थी कि कैसे एक सीनियर खिलाड़ी के तौर पर कप्तान का साथ देते हैं.
कैसे अश्विन अपने जोड़ीदार रविंद्र जडेजा के साथ मिलकर बल्ले और गेंद से ही नहीं बल्कि अपने सुझावों और सलाह से भी किसी कप्तान का भार काफ़ी हल्का करते हैं.
यूं तो अश्विन ने मैच से पहले प्रेस कॉन्फ़्रेंस के दौरान अपनी टेस्ट यात्रा को लेकर हर किसी का शुक्रिया अदा किया और काफ़ी ख़ुश नज़र आए.
हालांकि, एक बात अगर उनको कहीं कचोटती होगी तो वो ये कि उन्हें कभी भी टेस्ट कप्तानी के लिए गंभीर दावेदार नहीं माना गया.
अश्विन की तुलना गेंदबाज़ के तौर पर अक्सर महान अनिल कुंबले से होती है.
कुंबले की ही तरह अश्विन को भी अक्सर शुरुआती दौर में उन तानों से गुज़रना पड़ा, जिसमें ये कहा जाता रहा कि वो घर में शानदार लेकिन विदेशी पिचों पर उतने प्रभावशाली नहीं हैं.
लेकिन, कुंबले की ही तरह अपने शांत और निराले अंदाज़ में अश्विन ने भी हर आलोचना का जवाब अपने तरीक़े से दिया, जिससे भारत का ही नहीं बल्कि दुनिया के सर्वकालीन महान गेंदबाज़ों की सूची में उनकी महानता को लेकर किसी आलोचक को नाक-भौं नहीं तनेगी.
जहां कुंबले को अपने आख़िरी दौर में टेस्ट कप्तानी मिल गई थी शायद अश्विन अब उस दौड़ से बाहर हो चुके हैं.
पहले अंजिक्य रहाणे और फिर रोहित शर्मा जैसे बल्लेबाज़ों को भारतीय टेस्ट कप्तानी मिली लेकिन अश्विन ने कभी भी इस मायूसी को निराशा के तौर पर बयां नहीं किया और ये कोई मामूली बात नहीं है.
दरअसल, सही मायनों में देखा जाय तो अश्विन की कहानी बेहद प्रेरणादायी है.
50 टेस्ट से लेकर 500 टेस्ट विकेट के तक के सफर वाले रिकॉर्ड में वो हर भारतीय गेंदबाज़ से तेज़ रहे हैं.
मतलब ये कि किसी भी भारतीय गेंदबाज़ ने टेस्ट क्रिकेट में 50, 100, 150, 200, 250, 300, 350, 400, 450 और यहां तक कि 500 का आंकड़ा उनसे पहले पार नहीं किया है.
ये दिखाता है कि किस तरह की निरंतरता उन्होंने अपने खेल में एक दशक से ज़्यादा समय तक बनाए रखी है.
कभी हरभजन सिंह से तुलना के दौर से गुज़रने के बावजूद अश्विन की सबसे बड़ी उपलब्धि ये रही कि वो अपनी नैसर्गिक प्रतिभा के साथ पूरी तरह से न्याय करने में कामयाब हुए हैं.
जिस खिलाड़ी के बारे में अक्सर (ग़लत तरीक़े से) ये कहा जाता है कि वो टी20 क्रिकेट और आईपीएल के चलते टीम इंडिया के लिए खेले, उसने टेस्ट क्रिकेटर के तौर पर ख़ुद को एक चैंपियन साबित किया.
अश्विन की कामयाबी का अंदाज़ा 3,000 से ज़्यादा टेस्ट रन और 5 शतक भी हैं जो उन्होंने अपने करियर में अब तक बनाए हैं. ये ऐसा मुकाम है, जिसे कई बड़े बल्लेबाज़ों ने भी हासिल नहीं किया है.
अश्विन की कामयाबी इस बात में है किस तरह विदेशी पिचों (ख़ास तौर पर इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, साउथ अफ्रीका और न्यूज़ीलैंड में) हर कप्तान ने उन्हें प्लेइंग इलेवन में संतुलन के नाम पर उनकी महानता पर सवाल खड़े किए लेकिन उन्होंने उफ़्फ़ तक नहीं किया और अल्टीमेट टीम मैन बने रहे.
अल्टीमेट टीम मैन शायद ये एक ऐसा विशेषण है, जिस पर अश्विन अपना करियर ख़त्म होने के बाद सबसे ज़्यादा फ़ख़्र करेंगे न कि 100-150 टेस्ट मैच खेलने या फिर 500-600 टेस्ट विकेट लेने पर.
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