रानी रामपाल ने कहा हॉकी को अलविदा, अभावों के बावजूद शीर्ष तक पहुँचने के जुनून की अनोखी मिसाल

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कोई 16 साल पहले 14 साल की एक लड़की ने 2008 के बीजिंग ओलंपिक क्वालिफ़ायर के ज़रिए हॉकी की दुनिया में दस्तक दी थी.

इस लड़की ने जब गुरुवार को हॉकी को अलविदा कहा तो नई दिल्ली के मेजर ध्यानचंद स्टेडियम में विदाई समारोह का आयोजन किया गया, ऐसे बड़े आयोजन के साथ संन्यास करने वाली भारत की पहली महिला हॉकी खिलाड़ी बन गईं हैं रानी रामपाल.

बीबीसी से फोन पर बात करते हुए रानी ने अपने संन्यास के बारे में कहा, "एक खिलाड़ी की इससे ज्यादा क्या मांग होगी कि वह अपने सबसे पंसदीदा जगह यानी हॉकी के मैदान पर खड़े होकर अपने संन्यास की घोषणा करे."

“मैं हॉकी इंडिया की आभारी हूं. मेरे अब तक के सफ़र में योगदान के लिए मैं हमेशा अपने माता-पिता, कोच बलदेव सर की ऋणी रहूंगी. इन सबके बिना मेरी हॉकी यात्रा कभी शुरू नहीं होती. अब मैं भविष्य के सितारों का मार्गदर्शन करने पर ध्यान केंद्रित करूंगी."

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क्या है भविष्य की योजना Getty Images

रानी रामपाल को जिंदल साउथ वेस्ट (जेएसडब्ल्यू) ने अपने सोरम हॉकी क्लब के लिए अनुबंधित किया है. यह क्लब आने वाले दिनों में होने वाली हॉकी लीग का हिस्सा होगा. यह पहली बार है कि भारत में महिला हॉकी लीग का आयोजन होने जा रहा है.

रानी ने अपनी भावनाएं व्यक्त करते हुए कहा, "एक खिलाड़ी के तौर पर हॉकी को अलविदा कहने को लेकर खुशी भी है, दुखी भी हूं. लेकिन यह तय है कि मेरी नई भूमिका में भी एसोसिएशन के साथ मेरा रिश्ता जारी रहेगा."

रानी रामपाल बतौर भारतीय महिला खिलाड़ी के तौर पर अपने करियर के सबसे सुनहरे दौर में 2020 के टोक्यो ओलंपिक खेल के दौरान पहुंची थीं, जब भारतीय महिला हॉकी टीम अपने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के साथ चौथे स्थान पर रही. रानी उस टीम की कप्तान थीं.

अपने अनुभवों के बारे में उन्होंने कहा, “एक खिलाड़ी के रूप में मैंने बहुत सारे उतार-चढ़ाव देखे हैं. इनमें से कुछ का आप आनंद लेते हैं और कुछ आपके लिए सबक हैं. टोक्यो ओलंपिक में पोडियम तक न पहुंच पाना एक ऐसा क्षण था जिसे जब भी मैं याद करूंगी तो निश्चित रूप से मेरी आंखों में आंसू आ जाएंगे."

2016 रियो और फिर 2020 टोक्यो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने के बाद, भारतीय महिला हॉकी टीम 2024 पेरिस ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने में असफल रही.

टीम के प्रदर्शन पर इस गिरावट पर पूर्व भारतीय महिला हॉकी कप्तान रानी रामपाल ने कहा, ''उतार-चढ़ाव खेल का हिस्सा हैं. टोक्यो में चौथे स्थान पर रहने के बाद सभी को उम्मीद थी कि भारतीय महिला हॉकी पेरिस ओलंपिक 2024 में अच्छा प्रदर्शन करेगी. लेकिन दुर्भाग्य से हमारी टीम क्वालिफाई नहीं कर सकी.”

रानी रामपाल को भविष्य को लेकर काफ़ी उम्मीदें भी हैं. उन्होंने कहा, ''मुझे पूरा भरोसा है कि हमारी टीम वापसी करेगी और हमारी नजरें लॉस एंजिल्स ओलंपिक 2028 पर टिकी हैं.''

शाहाबाद से स्टारडम तक

ठेला खींचने वाले एक आम आदमी की बेटी के तौर पर रानी ने शाहाबाद में अपनी खेल यात्रा शुरू की, हालांकि खुशकिस्मती ये रही कि उन्हें द्रोणाचार्य पुरस्कार विजेता कोच बलदेव सिंह के संरक्षण में खेल सीखने का मौका मिला.

अर्जुन पुरस्कार विजेता रानी ने याद किया, "जब मैं 2002 में शाहाबाद में हॉकी अकादमी में शामिल होने गई, तो बलदेव सर ने शुरू में मुझे लेने से इनकार कर दिया था."

इसके असर के बारे में रानी रामपाल बताती हैं, “मैंने सोचा था कि मैं कभी हॉकी नहीं सीखूंगी. मेरे लिए दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो गए. लेकिन यह एक ट्रिक था जो सर ने लगभग हर नवागंतुक के साथ किया."

रानी इस ट्रिक को स्पष्ट करते हुए कहती हैं, "वे यह देखना चाहते थे कि नया खिलाड़ी क्या वास्तव में हॉकी में रुचि रखता है और लंबे समय तक खेल जारी रखने का इच्छुक है या इसे शौकिया तौर पर देख रहा है."

रानी रामपाल का परिवार ग़रीबी में था, और इसके चलते उन्हें काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा था. रानी याद करती हैं, ''मुझे अब भी याद है कि जब मैं आख़िरकार हॉकी अकादमी में पहुंची तो सबसे बड़ी चिंता ग़रीबी ही थी.''

“एक ठेला खींचने वाली की बेटी होने के नाते, मेरे पास कोई संसाधन नहीं था. हॉकी स्टिक ख़रीदना या प्रोटीन डायट में निवेश करने के बारे में सोचना एक दूर का सपना था. लेकिन बलदेव सर मेरे लिए 'देवदूत' बनकर आए."

साल 2002 में जब रानी रामपाल शाहबाद सेंटर से जुड़ीं तो अगले दो साल तक वरिष्ठ हॉकी खिलाड़ियों की दी हुई पुरानी हॉकी से खेलती रहीं.

Getty Images अपने हुनर से हॉकी में रानी रामपाल ने एक ख़ास पहचान बनाई.

भारतीय खेल प्राधिकरण की स्टॉफ़ रानी रामपाल ने कहा, “फिर मेरे खेल से प्रभावित होकर सर ने मेरे लिए नई हॉकी स्टिक ख़रीदी. यह मेरे करियर का एक महत्वपूर्ण मोड़ था. इससे सफलता को लेकर मेरी भूख कई गुना बढ़ गई.”

सब-जूनियर से जूनियर और फिर सीनियर नेशनल टीम तक रानी रामपाल की यात्रा आसान थी लेकिन इसमें अनगिनत घंटों की कड़ी मेहनत और सबकुछ छोड़कर हॉकी के प्रति जुनून शामिल ता.

वह 2013 जूनियर विश्व चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीतने वाली भारतीय महिला हॉकी टीम के भी सदस्य थीं.

रानी कहती हैं, ''2008 में मैंने बीजिंग ओलंपिक क्वालीफ़ायर में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदार्पण किया. उस समय मुझे इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि एक खिलाड़ी के लिए ओलंपिक का क्या महत्व है.”

“जब हम क्वालिफ़ायर हार गए और मैंने अपने सीनियरों के निराश चेहरे देखे, तो मुझे एहसास हुआ कि हमने क्या खो दिया है. मैंने अपने अगले लक्ष्य के रूप में ओलंपिक में भाग लेने का फ़ैसला किया."

रानी को अपना ओलंपिक सपना पूरा करने में आठ साल और लग गए.

2016 के रियो ओलिंपिक के लिए क्वालिफ़ाई करने की अहमियत समझाते हुए वह कहती हैं, 'आख़िरी बार भारतीय महिला हॉकी टीम 1980 के मॉस्को ओलिंपिक में खेली थी.'

शाहबाद के कोच के रूप में प्रसिद्ध बलदेव सिंह ने कहा, “एक कोच अपने छात्रा की सफलता से बढ़कर और क्या कामना कर सकता है? रानी भारतीय हॉकी टीम की स्टार रही हैं और मुझे उम्मीद है कि वह मेंटॉर की अपनी नई भूमिका में सफल होंगी. अपनी कड़ी मेहनत और अनुशासन से रानी ने मैदान के अंदर और बाहर अपना नाम कमाया है.''

संघर्ष से सफलता तक का सफ़र Getty Images रानी रामपाल अब नई पीढ़ी की खिलाड़ियों के साथ अपने अनुभव साझा करना चाहती हैं

देश का सर्वोच्च खेल सम्मान खेल रत्न पाने वाली पहली महिला हॉकी खिलाड़ी रानी रामपाल का सफ़र किसी परी कथा से कम नहीं है. रानी आर्थिक रूप से एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखती हैं. जहां पूरे परिवार के लिए रोजी रोटी का इंतज़ाम करना एक संघर्ष था.

जिन परिस्थितियों में वह बड़ी हो रहीं थीं, उनमें अंतरराष्ट्रीय मंच पर हॉकी खेलने का सपना देखना भी असंभव था. हालांकि रानी ने परिवार की आर्थिक तंगी को कभी आड़े नहीं आने दिया.

रानी रामपाल अपने बचपन में माता-पिता के साथ एक झोपड़ी में रहती थीं. हॉकी में कामयाबी के बाद उन्होंने अपने माता-पिता को आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित दो मंजिला घर उपहार में दिया.

रानी अब महंगे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का इस्तेमाल करती हैं. आधुनिकतम स्मार्टवाच पहनती है, लेकिन उसने एक ऐसा दौर भी था जब वह सुबह प्रशिक्षण सत्र के लिए जागने के लिए आकाश में तारों को देखकर समय का अनुमान लगाती थीं.

प्रेरणा से कम नहीं है कहानी Getty Images रानी का मानना है कि उनके कठिन समय ने ही उनकी सफलता की नींव रखी.

अभाव के दिनों को याद करते हुए रानी रामपाल ने बताया, "उस समय मैं कुपोषित थी. मेरा वजन महज 36 किलोग्राम था. घर में कुछ था नहीं. एथलीट की ज़रूरतों के मुताबिक खान पान भी नहीं था. 2007 की बात है ये सब. तब पहली बार जूनियर नेशनल कैंप में चयन हुआ था. मुझे कैंप से वापस भेज दिया गया था. कोच ने सबके सामने मुझसे कहा था कि मैं ज़िंदगी में कभी भारत के लिए नहीं खेल पाऊंगी.''

“लेकिन कैंप से मेरा इस तरह वापस आना बाद में मेरे लिए वरदान साबित हुआ. उसके बाद, मैंने बहुत कड़ी मेहनत की और शाहाबाद सेंटर में हमारे कोच बलदेव सर के सहयोग से मैंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. इसके बाद मुझे एशिया इलेवन और वर्ल्ड इलेवन में शामिल होने का भी मौका मिला."

रानी रामपाल की उपलब्धियां Getty Images राष्ट्रीय खेल पुरस्कारों के दौरान रानी रामपाल

रानी रामपाल ने खेल करियर में कई उपलब्धियां हासिल कीं. उन्होंने भारत के लिए कुल 254 इंटरनेशनल हॉकी मैच खेले और इनमें 120 गोल दागे.

उन्होंने 2018 एशियाई खेलों में भारत को रजत पदक दिलाया. 2020 के टोक्यो ओलंपिक में भारत को प्रवेश दिलाने में उनका अहम योगदान रहा. ओडिशा में ओलंपिक क्वालीफायर में अमेरिका के ख़िलाफ़ आख़िरी मिनट में महत्वपूर्ण गोल रानी ने ही किया था.

हॉकी के मैदान में उनके प्रदर्शन के लिए ही उन्हें 2020 में भारत का सर्वोच्च खेल सम्मान, मेजर ध्यानचंद खेल रत्न से सम्मानित किया गया, इसी साल उन्हें पद्म श्री भी मिली.

रानी रामपाल की कामयाबी की कहानी दृढ़ इच्छाशक्ति और दृढ़ संकल्प की कहानी है.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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