'दिलजीत ने उन लोगों की शर्मिंदगी दूर की जो पंजाबी होना शर्म समझते थे' - ब्लॉग
पाकिस्तान में पिछले साल जब जनगणना हुई तो पता चला कि पंजाब में क़रीब 25-30 लाख लोग, जो पहले पंजाबी भाषी हुआ करते थे, उन्होंने ख़ुद को उर्दू भाषी के रूप में पंजीकृत कराया.
पंजाबी प्रेमी परेशान हुए, उन्होंने कहा कि इन लोगों ने अपनी मातृभाषा को अपने घरों से ही बाहर कर दिया है. जो लोग समझदार थे, उन्होंने कहा कि पंजाब के जिन ज़िलों में तालीम पहुंची है, वहां उर्दू में वृद्धि हुई है.
पहले लोग अपने बच्चों से उर्दू बोलते थे और अब कहने लगे हैं कि हमारी मां भी उर्दू बोलती थीं. वैसे भी पंजाब में बच्चे को स्कूल भेजने का मक़सद एक यह भी है कि उसकी पंजाबी से जान छुड़ाई जाए.
अब एक तरफ़ पंजाबी ख़ुद को उर्दू भाषी कहकर इज़्ज़त कमा रहे हैं तो दूसरी तरफ़ जालंधर का एक लड़का दिलजीत दोसांझ यूरोप, अमेरिका के बड़े-बड़े कन्सर्ट हॉल और स्टेडियम में पंजाबी गाने गा रहा है और स्टेज पर जाने से पहले, गाना गाने से पहले वे एक ही नारा लगाता है, 'ओ आ गए पंजाबी'.
अमेरिका, ब्रिटेन, इटली, फ्रांस और जर्मनी में उनका दौरा कई महीनों से चल रहा है. वह जहां भी जाते हैं, स्टेडियम भर जाते हैं. कन्सर्ट के टिकट खुलने के कुछ ही मिनटों के भीतर बिक भी जाते हैं.
साथ ही वह सोशल मीडिया पर मीठी-मीठी बातें कर आए दिन वायरल भी होते रहते हैं. दिलजीत दोसांझ को सुनने वालों में से अधिकांश देसी हैं, लेकिन ज़ाहिर तौर पर सभी पंजाबी नहीं हैं या वे लोग हैं जो विदेश में पैदा हुए हैं, लेकिन उन्होंने कभी पंजाब नहीं देखा है.
पंजाबी भी थोड़ी-बहुत माता-पिता से ही सुनी होगी. वे भी महंगी टिकट ख़रीदकर तीन-चार घंटे के लिए पंजाबी बन जाते हैं .
अब, पंजाबी होने के लिए, आपको पंजाब में पैदा होने की ज़रूरत नहीं है, यह भाषा बोलने की भी ज़रूरत नहीं है. बस एक माहौल है कि टिकट ख़रीदो और इसमें शामिल हो जाओ.
पंजाब ने पहले भी बड़े-बड़े गायक पैदा किये हैं, अब भी हैं. उनके भी विदेशों में प्रशंसक हैं. लेकिन दिलजीत दोसांझ में कुछ ऐसा जादू है कि वह जहां भी जाते हैं वहां पंजाबियों का मेला लग जाता है.
मुझे लगता है कि बात सीधी है कि दिलजीत दोसांझ ने पंजाबी को कूल बना दिया है. वह बार-बार यह भी कहते हैं कि 'मुझे अंग्रेज़ी नहीं आती. मैं तो पेंडू (ग्रामीण) हूं, मैं तो पंजाबी हूँ , मैं दोसांझ का लड़का हूँ.'
लोग मुझसे कहते थे कि पंजाबी फैशन नहीं कर सकते, मैंने कहा कि 'मैं तो करूँगा,' लोग कहते थे कि पंजाबी स्टेडियम नहीं भर सकते, मैंने कहा, 'मैं तो भर दूंगा.'
जो लोग पंजाबी होना, ग्रामीण होना शर्म की बात समझते थे, दिलजीत ने उनकी शर्म दूर कर दी है. और वह अपने सीने पर हाथ मारकर जालंधरी लहजे में कहता है, 'आओ तुसीं वी, पंजाबी होवो ते पंजाबी होन दा आनंद लो.'
दिलजीत दोसांझ के शो किसी ग्लोबल स्टार से कम नहीं हैं. रोशनी को देखो, मंच को देखो, उनके पीछे नर्तकों और नर्तकियों को देखो.
कई बार तो यह भी याद नहीं रहता कि वह क्या गा रहा है. दिलजीत का संगीत तो बिकता ही है, लेकिन उनका पंजाबी माहौल ज़्यादा बिकता है.
वह यूरोप के एक शहर में भरे हॉल में गा रहा था, "जुत्ती कसूरी पैरीं न पूरी, हाए रब्बा वे साणु टुर्ना पिया'.
यह गाना इतना पुराना है कि हमारे बुजुर्गों ने भी इसे सुना है और हमने भी इसे सुना है और अब इसी गीत पर दिलजीत एक नई नसल को नचा रहे हैं.
बुजुर्ग कहते हैं कि सूफियों में और कोई गुण हो या न हो, लेकिन एक गुण अवश्य होता था, जिसे वे सलूक कहते थे.
बाबा फरीद और गुरु नानक के कलाम सुनकर लोग उनके मुरीद होते ही थे, लेकिन जिन्हें कलाम समझ में नहीं आते थे वे उनका सलूक देख कर ही मुरीद हो जाते थे .
दिलजीत दोसांझ का भी यही अंदाज़ है कि उनका स्टाइल एक रॉकस्टार जैसा है और उनका व्यवहार एक पंजाबी फकीर जैसा है.
जिन बच्चों के माता-पिता को पंजाबी कहलाने में शर्म आती है, उन्हें अपने माता-पिता को दिलजीत दोसांझ की 2-4 क्लिप दिखानी चाहिए और कहना चाहिए, "हम अपनी पंजाबी छिपा रहे हैं, लेकिन यह आदमी पूरी दुनिया में पंजाबी को घुमा रहा है. और दुनिया भी नाच रही है. हम भी थोड़ा पंजाबी होकर देख लें."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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