आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस से कर्मचारियों का काम घटने के बजाय बढ़ क्यों रहा है?
चैटजीपीटी 2022 में चर्चा में आया था तो एक पीआर एजेंसी के फ़ाउंडर अनुराग गर्ग उसे अपने ऑफ़िस के कामकाज में मदद के लिए शामिल करने के बारे में काफी उत्साहित थे.
वो चाहते थे कि इससे उन्हें अपने प्रतिद्वंद्वी कंपनियों से मुकाबला करने में मदद मिलेगी.
गर्ग ने अपने कर्मचारियों को एआई टूल्स के इस्तेमाल के लिए प्रोत्साहित किया. उन्होंने एजेंसी के कामकाज सभी कर्मचारियों से एआई लैंग्वेज टूल का इस्तेमाल करने को कहा.
एजेंसी में क्लाइंट्स के लिए स्टोरी आइडियाज़, मीडिया के लिए तैयार किए जाने वाले प्रस्ताव, इंटरव्यू के नोट्स और मीटिंग का पूरा विवरण शामिल थे.
BBC बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिएहाालंकि, इन टूल्स के कारण उनकी टीम का काम आसान होने के बजाए बढ़ गया और कर्मचारी परेशान होने लगे. उनका कहना था कि इसके इस्तेमाल में काफी समय जाता है.
टूल का इस्तेमाल करने के लिए पहले कर्मचारियों को चैटजीपीटी के लिए संक्षिप्त जानकारी तैयार करनी पड़ती है. इसके बाद मिली जानकारी को फिर जाँचना भी पड़ता था, और उसमें भी कई ग़लतियाँ होती थीं.
और इस बीच कई बार प्लेटफ़ॉर्म अपडेट होता था, तो कर्मचारियों को टूल्स से जुड़ीं इन बातों को फ़िर से सीखना पड़ता था, जिसमें अतिरिक्त समय लगता था.
ये भी पढ़ेंएआई टूल्स का इस्तेमाल करने पर अनुराग गर्ग कहते हैं, “इसमें बहुत सारे भटकाव थे. मुझे टीम ने बताया था कि इन टूल्स का इस्तेमाल करने के कारण काम में लगने वाला समय दोगुना हो गया है.”
उन्होंने कहा, “क्योंकि, हम उन लोगों से उम्मीद कर रहे थे कि वे सभी एआई टूल का इस्तेमाल करें.”
गर्ग ने कहा, “कंपनी में एआई टूल्स के उपयोग को बढ़ावा देने का मक़सद लोगों के काम को सरल बनाना था, लेकिन वास्तव में इसके कारण लोगों का काम बढ़ता जा रहा था.”
उनका कहना था कि मार्केट में एआई टूल्स की बाढ़ सी आई है लेकिन आप एक टूल की मदद से कई समस्याओं का समाधान नहीं कर सकते हैं. फिर गर्ग ने अपनी टीम से कह दिया था कि सभी कार्यों के लिए एआई टूल्स का इस्तेमाल न करें.
नतीजा ये कि अब उनकी टीम रिसर्च के लिए प्राथमिक स्रोत के तौर पर एआई टूल्स का उपयोग करती है. और अब हर कोई पहले से ज़्यादा ख़ुश है.
ये भी पढ़ेंवैसे गर्ग और उनकी टीम ने AI टूल्स को इस्तेमाल करने के दौरान जो तनाव महसूस किया, उसकी झलक हालिया रिसर्च में दिखती भी है.
एक फ्रीलांसर प्लेटफ़ार्म 'अपवर्क' ने 2500 कर्मचारियों के साथ एक सर्वे किया. ये कर्मचारी अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा के थे.
इनमें 96 फ़ीसदी का कहना था कि उन्हें उम्मीद है कि एआई टूल्स के इस्तेमाल से उनकी कंपनी की प्रोडक्टिविटी बढ़ेगी. इनमें से 81 फ़ीसदी ने ये माना कि उन्होंने अपने कर्मचारियों से एआई का इस्तेमाल करने की गुजारिश की.
हालांकि, सर्वे में शामिल 77 फ़ीसदी कर्मचारियों ने ये माना कि एआई टूल्स ने उनकी प्रोडक्टिविटी घटा दी और उनका काम बढ़ा दिया.
वहीं, 47 फ़ीसदी कर्मचारियों ने कहा कि उनको इस बात का कोई अंदाज़ा नहीं है कि एम्प्लॉयर्स की उम्मीदों के मुताबिक़ प्रोडक्टिविटी को कैसे और कितना बढ़ाया जा सकता है.
61 फ़ीसदी लोगों का मानना है कि काम के दौरान एआई टूल्स का इस्तेमाल उन संभावनाओं को बढ़ा देता है, जिनमें तनाव और खीझ बढ़ती है.
सीवी राइंटिंग कंपनी रेज्यूमे नाउ के सर्वे में 43 फ़ीसदी लोगों ने माना कि इससे वर्कलाइफ़ संतुलन प्रभावित होता है.
कार्य प्रबंधन प्लेटफ़ार्म असाना ने एक स्टडी की है. इसमें वर्क बेस्ड ऐप्स को लॉन्च करने के प्रभावों की बात की गई है.
इस सर्वे में 9,615 कर्मचारी शामिल हैं, जो ऑस्ट्रेलिया, फ़्रांस, जर्मनी, जापान, ब्रिटेन और अमेरिका से हैं. उन्होंने बताया कि वो वर्कप्लेस पर 6 से 15 ऐप्स का इस्तेमाल करते हैं.
इनमें 15 फ़ीसदी लोगों ने कहा कि इतने टूल्स के कारण वो कई बार मैसेज और नोटिफिकेशन देखना भूल जाते हैं.
ये भी पढ़ेंलॉस एंजिलस में यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया में मैनेजमेंट प्रोफ़ेसर केसी होम्स ने इस स्टडी को लेकर एक टिप्पणी की.
उन्होंने कहा, “एक से ज़्यादा ऐप का इस्तेमाल करने के लिए पहले उनको सीखना पड़ता है, जिसके लिए ज़्यादा समय की ज़रूरत होती है.”
प्रोफ़ेसर ने कहा, “और बीच-बीच में उनको बदलने में समय भी ख़र्च होता है, जो बहुत बुरी बात है. क्योंकि, हम बर्बाद हो चुके समय को लेकर ज़्यादा संवेदनशील हैं.”
लिआ स्टील अब वकील से एक कोच बन चुकी हैं. वे लीगल प्रोफ़ेशनल्स को मानसिक तनाव से निजात पाने में मदद करती हैं.
उनके पास मदद की उम्मीद में आने वाले कई लोगों की समस्या होती है कि एआई आधारित प्रोडक्टिविटी टूल्स के आने के बाद उनकी कंपनियां उनसे बहुत ज़्यादा प्रोडक्टिविटी की उम्मीद कर रही हैं.
ऐसे में उन पर काम का बोझ बढ़ता जा रहा है.
वह कहती हैं, “सबसे बड़ी बात यह है कि मैं देख रही हूं कि कम संसाधनों के साथ ज़्यादा काम करने की मांग लगातार की जा रही है, मगर कंपनियाँ इस बात को नज़रअंदाज़ कर रही हैं कि सिस्टम में वो जो तकनीक शामिल कर रही हैं, वो मददगार नहीं हैं.”
स्टील ने कहा, “सब कुछ बहुत तेज़ी से बढ़ रहा है. शीर्ष पर बने रहने की यह लड़ाई निरंतर जारी है. इसमें विशेषज्ञता हासिल करने की माँग बनी हुई है.”
वह कहती हैं कि वकील अब मानसिक तौर पर तनाव का अनुभव कर रहे हैं. लेकिन यह केवल तकनीक और एआई टूल्स के बढ़ने के कारण नहीं है, उसके प्रभाव के कारण भी है.
ये भी पढ़ेंद लॉ सोसायटी ऑफ इंग्लैंड और वेल्स ने यह बात स्वीकार की कि वकीलों को लॉ फ़र्म के शीर्ष लोगों से ज़्यादा सहयोग मिलना चाहिए ताकि वे AI जैसी नई तकनीक का इस्तेमाल अपने काम में ज़्यादा कर सकें.
उन्होंने कहा, “उन टूल्स को सीखने में समय लगता है और उन्हें अपने काम में शामिल करने में भी वक्त लगता है."
एटकिंसन ने कहा, “कई तकनीक मूल रूप से क़ानूनी क्षेत्र को लेकर डिज़ाइन नहीं की गई थी, ऐसे में यह बदलाव ज़्यादा चुनौतीपूर्ण हो सकता है.”
एलिसिया नवारो एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म 'फ्लॉन' की फाउंडर और चीफ़ एग्ज़ीक्यूटिव हैं.
यह प्लेटफॉर्म लोगों को “गहरे कार्य” पर ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है. ऐसे काम जिनमें निरंतर एकाग्रता बनाए रखने की ज़रूरत होती है.
वह इस बात को स्वीकार करती हैं कि एआई टूल्स की बाढ़ सी आ गई है लेकिन उसका इस्तेमाल सही से करने की ज़रूरत है.
उन्होंने कहा, “हमारी ज़िंदगी में ये एआई टूल्स बेहतर प्रोडक्टिविटी की वजह बन सकते हैं, लेकिन उससे पहले इन टूल्स का प्रशिक्षण और इनमें फिल्टिरिंग की ज़रूरत है”.
मगर, वह यह भी मानती हैं कि छोटी कंपनियां जिनके पास सीमित संसाधन हैं, उनके लिए एआई टूल्स बड़े मददगार साबित हो सकते हैं.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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