भेड़िए क़ुदरत के लिए कितने ज़रूरी हैं, क्या कहती हैं अलग-अलग रिपोर्टें?
उत्तर प्रदेश के बहराइच ज़िले में अभी भी भेड़ियों का डर बरक़रार है. ज़िले के क़रीब 35 गांवों में भेड़ियों ने खौफ़ फैलाकर रखा है.
वन विभाग की टीम ने अब तक चार भेड़ियों को पकड़ा है लेकिन अब भी दो भेड़ियों के लिए वन विभाग की कई टीमों की तलाश लगातार जारी है.
इस बीच रविवार को एक बार भेड़िए ने गांव वालों को निशाना बनाने की कोशिश की थी.
जुलाई से लेकर अब तक भेड़िए 6 से अधिक लोगों को मार चुके हैं जिनमें बच्चे भी शामिल हैं, जबकि 25 से ज़्यादा लोग घायल हैं.
सोमवार शाम को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बहराइच समेत कई ज़िलों के डीएम, पुलिस कप्तानों और वन अधिकारियों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए भेड़ियों और तेंदुए के हमलों से पैदा हुए हालात की समीक्षा की.
हाल ही में बीबीसी हिंदी ने बहराइच से इस पर विस्तृत रिपोर्ट की थी.
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हमलों के बीच ये भी सवाल पूछा जा रहा है कि अचानक से भेड़ियों का हमला क्यों बढ़ गया है? आमतौर पर भेड़िए को 'इंसानों का दुश्मन' माना जाता है. लेकिन यह सच के कितने क़रीब है?
बीबीसी अर्थ की एक रिपोर्ट में इस सवाल का जवाब देने की कोशिश की गई है.
इस रिपोर्ट में बताया गया है कि उत्तर अमेरिका में 150 साल पहले तक भारी तादाद में भेड़िए पाए जाते थे.
यहां कुछ लोग जब बसने के इरादे से पहुंचे तो उन्हें महसूस हुआ कि भेड़िए इंसानों के लिए ख़तरा हैं. साथ ही जंगल के उन संसाधनों (जैसे- शिकारी जानवर और मछलियों) के लिए भी ख़तरा हैं जिन पर इंसानों का जनजीवन निर्भर है.
इसी समय भेड़ियों के ख़िलाफ़ एक आक्रामक कैंपेन शुरू हुआ और इनमें ग्रे वुल्फ़ भी शामिल थे. शिकार के दौरान ग्रे वुल्फ़ को निशाना बनाया गया और आख़िरी ग्रे वुल्फ़ येलोस्टोन नेशनल पार्क में साल 1926 में मारा गया.
ANI यूपी वन विभाग की टीम ने चार भेड़ियों को पकड़ा हैदरअसल, लोककथाएं हों या फ़िल्में, भेड़िए को अक्सर एक क्रूर पशु या एक इंसानों के दुश्मन के रूप में लोगों के सामने पेश किया जाता है. हालांकि, सच्चाई इससे अलग है.
भेड़िए, मनुष्यों के प्रति बेहद कम आक्रामक रुख़ अपनाते हैं. जैसे- अमेरिका में ऐसा कोई मामला दर्ज नहीं हुआ है जिसमें एक भेड़िए ने इंसान की जान ली हो.
भेड़ियों का अध्ययन करने वाले जीव विज्ञानियों ने माना कि जंगल में रिसर्च के दौरान वे भेड़ियों की मांद तक आसानी से पहुंचने में सफल हुए. इसके बाद भेड़िए उस इलाक़े से चले गए और जीव विज्ञानियों के जाने के बाद ही भेड़िए लौटे.
उस वक़्त के आंकड़ों से क्या पता चला था?अमेरिका के मोंटाना राज्य में साल 2009-10 के दौरान सरकार ने कुछ आंकड़े जुटाए थे. इन आंकड़ों से पता चला था कि भेड़िया समेत दूसरे जंगली जानवरों (भालू, कायोटी और पहाड़ी शेर आदि) के कारण सिर्फ़ 0.23 फ़ीसद मवेशियों ने जान गंवाई थी.
इसमें मवेशियों की मौत के पांच बड़े कारण सामने आए. इसके मुताबिक़, 5 लाख से ज़्यादा पशु पाचन संबंधित कारणों से, 4 लाख 89 हज़ार पशु मौसम में बदलाव के कारण, 4 लाख 94 हज़ार पशु प्रजनन के दौरान जबकि अज्ञात कारणों से 4 लाख 35 हज़ार मवेशी मारे गए थे.
इस दौरान ये भी सामने आया कि भेड़ियों के अंधाधुंध शिकार से उस इलाके़ का प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र भी प्रभावित हुआ. इससे जानवरों की दूसरी प्रजातियों को भी मुश्किलों का सामना करना पड़ा.
भेड़ियों की संख्या ख़त्म होने के साथ एल्क (एक तरह का बारहसिंहा) जैसे जानवरों की संख्या में इज़ाफ़ा हुआ जबकि भेड़ियों के रहते हुए एल्क उनका शिकार हो सकते थे.
एल्क की आबादी बढ़ने के साथ उनकी खाने की ज़रूरत भी बढ़ी. इसको ध्यान में रखते हुए एल्क ने एक ख़ास तरह की लकड़ी खाना शुरू की जिस लकड़ी का इस्तेमाल बीवर (एक प्रकार का ऊदबिलाव) अपनी रक्षा के लिए डैमनुमा आकृति बनाने के लिए करते थे.
बांध की लकड़ी उपलब्ध न होने के कारण, विशेष रूप से सर्दियों में, बीवर की आबादी को नुक़सान हुआ.
येलोस्टोन में साल 1926 में भेड़ियों के आख़िरी समूह के शिकार के बाद आज तक पारिस्थितिकी तंत्र संघर्ष कर रहा है.
इस बीच, ग्रे वुल्फ़ की संख्या में इज़ाफ़ा करने की कोशिश की गई. इसमें अमेरिका की फ़िश एंड वाइल्ड लाइफ़ सर्विस, द यूएस पार्क सर्विस, पर्यावरण संगठन, चिड़ियाघर और नागरिकों की मदद से एक बार फिर से भेड़ियों की आबादी को पहले जैसे सामान्य स्तर पर लाने के प्रयास किए जा रहे हैं.
अमेरिका में जगह-जगह मौजूद नेशनल पार्क में भेड़ियों के दोबारा प्रजनन को बढ़ावा देने के लिए कोशिशें की जा रही हैं. ताकि ग्रे और रेड वुल्फ़ को उनके प्राकृतिक स्वरूप में लौटाया जा सके.
भेड़ियों के दोबारा प्रजनन के प्रयासों के चलते पारिस्थितिकी तंत्र में सकारात्मक बदलाव भी देखने को मिल रहे हैं. नेशनल पार्क में भेड़िये अपना खाना छोड़कर जाते हैं, जिससे छोटे जानवरों को खाना मिल जाता है. इस बीच, ऊदबिलाव की संख्या में भी इज़ाफ़ा देखने को मिला है.
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दुनिया भर में भेड़ियों के हमलों में एक महत्वपूर्ण बात निकल कर आई है. इन हमलों के पीछे रेबीज़ बड़ा कारण है.
नॉर्वे के प्रकृति अनुसंधान संस्थान की रिपोर्ट के हवाले से इंटरनेशनल वुल्फ़ सेंटर ने लिखा, "वर्ष 2002 से 2020 तक पूरी दुनिया में भेड़ियों के 489 हमले हुए हैं, जिसमें 78 फ़ीसदी यानी 380 रेबीज़ की वजह से हुए थे."
इसके अलावा 67 हमले शिकार के लिए किए गए थे. जबकि 42 हमले सुरक्षा या उकसावे की वजह से भेड़ियों ने किया था.
इंटरनेशनल वुल्फ़ सेंटर के मुताबिक़, तकरीबन 400 से लेकर 1100 भेड़िए हिमालय की तलहटी में रह रहे हैं. वहीं 4000 से लेकर 6000 भेड़िए उपमहाद्वीप में रह रहे हैं.
उत्तर प्रदेश में 1996-97 के दौरान भेड़ियों के हमलों पर सैन फ्रांसिस्को स्थित लाइव जर्नल ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की है.
इस रिपोर्ट में कहा गया है, "एक सितंबर 1996 तक उत्तर प्रदेश में भेड़ियों के हमलों में 33 बच्चे मारे गए थे. वहीं 20 बच्चे गंभीर रूप से घायल हो गए थे."
इस दौरान 10 भेड़िए भी मारे गए थे.
रिपोर्ट के मुताबिक, 1996-97 के दौरान भेड़ियों ने 74 लोगों को अपना निशाना बनाया था, इनमें से ज़्यादातर 10 साल से कम उम्र के बच्चे थे.
इस रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि साल 1878 में पूरी दुनिया में भेड़ियों के हमलों से सबसे ज़्यादा नुक़सान हुआ था, जब एक साल में 624 लोग भेड़िए का शिकार हुए थे.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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