भगवान होते हुए भी क्यों नहीं पूजे जाते परशुराम? विष्णु अवतार को इस वजह से पूजा स्थल पर भी नहीं मिलती जगह
Facts About Vishnu Awtaar: भगवान विष्णु के छठे अवतार के रूप में जाने जाने वाले परशुराम जी का स्थान भारतीय धर्मशास्त्रों में विशेष है। वह 8 चिरंजीवियों में से एक माने जाते हैं, और उनके बारे में कई महत्वपूर्ण और रोचक मान्यताएँ प्रचलित हैं। हालांकि, अन्य देवी-देवताओं की तरह उनकी पूजा नहीं की जाती। इस लेख में हम जानेंगे कि इसके पीछे क्या कारण हैं, जो न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से, बल्कि जीवन के व्यावहारिक पक्ष से भी जुड़े हुए हैं।
पहला और सबसे बड़ा कारण यह माना जाता है कि भगवान विष्णु के अन्य अवतारों के विपरीत परशुराम जी अभी भी पृथ्वी पर मौजूद हैं। जब भगवान विष्णु के बाकी अवतारों का समय समाप्त हो गया, तब परशुराम जी ने अपने अवतार को स्थायी रूप से बनाए रखा है। इसलिए उनकी पूजा के बजाय उन्हें आवाहन (आमंत्रण) किया जाता है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, परशुराम जी को योग और ध्यान के माध्यम से आह्वान किया जाता है। भक्त जब उनका ध्यान करते हैं, तो उन्हें पराक्रम, साहस और शक्ति प्राप्त होती है। परशुराम जी की पूजा नहीं करने का कारण यह भी है कि उनका अवतार न केवल देवत्व का प्रतीक है, बल्कि युद्ध कौशल, तपस्या और शक्ति का भी प्रतीक है। इस प्रकार, उनके आवाहन से साधक को अद्वितीय ऊर्जा और सामर्थ्य मिलती है, जो सामान्य व्यक्ति के लिए संभालना मुश्किल हो सकता है।
परशुराम जी का अवतार भगवान विष्णु के उग्र अवतार के रूप में माना जाता है। वह एक अत्यंत शक्तिशाली और उग्र देवता थे, जिनका मुख्य उद्देश्य अत्याचार और अधर्म के खिलाफ संघर्ष करना था। परशुराम जी ने कई बार पृथ्वी से अत्याचारियों और अहंकारी शक्तियों का नाश किया था।
कहते हैं कि यदि उनकी पूजा की जाती, तो यह बहुत अधिक ऊर्जा का संचार करती। यह ऊर्जा इतनी अधिक होती कि उसे एक सामान्य व्यक्ति के लिए नियंत्रित करना मुश्किल होता। इससे भक्त के अंदर अत्यधिक ऊर्जा और आक्रामकता उत्पन्न हो सकती है, जिसे सही दिशा में नहीं मोड़ा जा सकता। यही कारण है कि परशुराम जी की पूजा नहीं की जाती। इसके बजाय उनकी आराधना उन लोगों के लिए शुभ मानी जाती है जो साहसिक कार्यों से जुड़े होते हैं, जैसे युद्ध, संघर्ष या अन्य उच्चतम कार्यक्षेत्र।
परशुराम जी की आराधना से न केवल भौतिक शक्ति मिलती है, बल्कि साधक को पारलौकिक ज्ञान भी प्राप्त हो सकता है। पुराणों में वर्णन मिलता है कि परशुराम जी ने कई योद्धाओं को शिक्षा दी थी, जैसे भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य और कर्ण, जो महाभारत के महान योद्धा थे। परशुराम जी का ज्ञान न केवल युद्ध से संबंधित था, बल्कि यह जीवन के अनेक पहलुओं से जुड़ा हुआ था।
परशुराम जी का तपस्वी जीवनपरशुराम जी का जीवन तपस्या, साधना और संघर्ष से भरा हुआ था। उन्हें यह भी माना जाता है कि उन्होंने पृथ्वी पर 21 बार अत्याचारियों का नाश किया। उनका उग्र स्वभाव और संघर्षशील जीवन उनके धार्मिक महत्व को बढ़ाते हैं। यही कारण है कि उनकी पूजा आमतौर पर नहीं की जाती, बल्कि उन्हें उनके योग्य साधक ही आवाहन करते हैं।
परशुराम जी की पूजा न किए जाने के पीछे उनके उग्र अवतार और अत्यधिक ऊर्जा का कारण है। उनके आवाहन से एक साधक को अपार साहस और शक्ति मिलती है, जो जीवन की कठिन परिस्थितियों से जूझने के लिए आवश्यक होती है। उनका जीवन और उनकी शिक्षा हमें यह सिखाती है कि शक्ति का सही उपयोग ही वास्तविक धर्म है।