पिता की इस प्रॉपर्टी को बेचने से बेटा भी नहीं रोक सकता है, सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि परिवार के कर्ज चुकाने या कानूनी जरूरतों के लिए पिता द्वारा पैतृक प्रॉपर्टी की बिक्री को पुत्र या अन्य हिस्सेदार अदालत में चुनौती नहीं दे सकते। 54 साल पुराने एक विवाद पर यह निर्णय सुनाया गया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू कानून के अनुच्छेद 254 का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि पारिवारिक कर्ता द्वारा संपत्ति बेचने के विशेष अधिकारों को चुनौती देना संभव नहीं है।
यह मामला 1964 में शुरू हुआ था, जब एक पुत्र ने अपने पिता द्वारा प्रॉपर्टी बेचने के फैसले को कोर्ट में चुनौती दी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट तक मामला पहुंचते-पहुंचते पिता और पुत्र दोनों का निधन हो चुका था, लेकिन उनके उत्तराधिकारियों ने इसे जारी रखा। कोर्ट ने अपने फैसले में साफ किया कि अगर यह साबित हो जाता है कि संपत्ति पारिवारिक कर्ज चुकाने या अन्य कानूनी जरूरतों के लिए बेची गई है, तो इसे चुनौती देना असंभव है।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ, जिसमें जस्टिस एएम सप्रे और एसके कौल शामिल थे, ने कहा कि हिंदू कानून के अनुच्छेद 254 (2) में यह प्रावधान है कि परिवार का कर्ता, जो अक्सर पिता होता है, पैतृक संपत्ति बेच सकता है। इसके तहत, वह चल या अचल संपत्ति को कर्ज चुकाने के लिए बेच सकता है, बशर्ते वह कर्ज पैतृक हो और किसी अनैतिक या अवैध काम से उत्पन्न न हुआ हो।
इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पैतृक संपत्ति किन परिस्थितियों में बेची जा सकती है। कानूनी तौर पर निम्नलिखित परिस्थितियों में संपत्ति की बिक्री वैध मानी जाएगी:
- पारिवारिक कर्ज चुकाने के लिए।
- सरकारी देनदारी के भुगतान हेतु।
- परिवार के भरण-पोषण के लिए।
- पुत्र, पुत्रियों के विवाह और अंतिम संस्कार जैसी सामाजिक जिम्मेदारियों के लिए।
1. क्या पुत्र पैतृक संपत्ति बेचने के पिता के अधिकार को चुनौती दे सकता है?
नहीं, अगर यह साबित हो जाए कि संपत्ति पारिवारिक कर्ज या कानूनी जरूरतों के लिए बेची गई है, तो इसे कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती।
2. क्या प्रॉपर्टी किसी भी प्रकार के कर्ज के लिए बेची जा सकती है?
संपत्ति सिर्फ पैतृक कर्ज के लिए बेची जा सकती है। अनैतिक या अवैध कार्यों से जुड़े कर्ज के लिए संपत्ति बेचना अवैध है।
3. क्या यह प्रावधान केवल हिंदू परिवारों पर लागू होता है?
हां, यह प्रावधान हिंदू कानून के तहत है, और इसका अनुपालन हिंदू परिवारों के लिए किया जाता है।
4. संपत्ति बेचने की प्रक्रिया में अन्य हिस्सेदारों की सहमति आवश्यक है?
अगर कर्ता प्रॉपर्टी बेचने का वैध कारण साबित कर देता है, तो सहमति आवश्यक नहीं होती।
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय पारिवारिक प्रॉपर्टी के अधिकारों और जिम्मेदारियों को स्पष्ट करता है। यह न केवल कानूनी पेचीदगियों को सरल बनाता है, बल्कि परिवारों को विवादों से बचाने में भी सहायक है। इस फैसले से यह सिद्ध होता है कि पारिवारिक कर्तव्यों और कानूनी जरूरतों को पूरा करने के लिए संपत्ति की बिक्री को चुनौती नहीं दी जा सकती है।