एक देश एक चुनाव: विकास की रफ्तार और खर्चे में कटौती का समाधान?

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लगातार चुनावों के चलते देश में बार-बार आदर्श आचार संहिता लागू करनी पड़ती है, जिससे सरकार को ज़रूरी नीतिगत निर्णय लेने में दिक्कत होती है और योजनाओं को लागू करने में बाधाएँ आती हैं। इससे विकास कार्यों पर नकारात्मक असर पड़ता है। आदर्श आचार संहिता या मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट का उद्देश्य चुनावों की निष्पक्षता बनाए रखना है।

चुनाव अधिसूचना जारी होने के बाद सत्ताधारी दल किसी नई परियोजना की घोषणा, स्कीमों की शुरुआत या वित्तीय मंजूरी नहीं दे सकता। इसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सत्ताधारी पार्टी को चुनावों में कोई विशेष लाभ न मिल सके। ऐसे में, अगर पूरे देश में लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाएँ, तो आदर्श आचार संहिता केवल एक ही बार लागू होगी, जिससे विकास कार्य बिना रुकावट के पूरे हो सकेंगे।

इसके साथ ही, बार-बार चुनाव होने से सरकारी खजाने पर पड़ने वाला भारी आर्थिक बोझ कम होगा। चुनावों में खर्च लगातार बढ़ता जा रहा है, जो देश की आर्थिक सेहत के लिए ठीक नहीं है। इसके अलावा, एक साथ चुनाव होने से काले धन और भ्रष्टाचार पर भी रोक लगाने में मदद मिलेगी। यह सर्वविदित है कि चुनावों के दौरान राजनीतिक दल और उम्मीदवार काले धन का जमकर उपयोग करते हैं। हालांकि, उम्मीदवारों के चुनावी खर्च की सीमा तय है, लेकिन राजनीतिक दलों के खर्च पर कोई सख्त नियम नहीं है।

एक साथ चुनाव कराने से सरकारी कर्मचारियों और सुरक्षा बलों को बार-बार चुनावी ड्यूटी पर तैनात नहीं करना पड़ेगा, जिससे उनका समय बचेगा और वे अपने नियमित कर्तव्यों को सही ढंग से निभा सकेंगे। आमतौर पर, चुनावी प्रक्रिया में शिक्षकों और अन्य सरकारी कर्मचारियों की सेवाएँ ली जाती हैं, जिससे उनकी नियमित जिम्मेदारियों पर असर पड़ता है। साथ ही, सुरक्षा बलों की भारी तैनाती भी करनी पड़ती है।

अंततः, बार-बार होने वाले चुनावों से आम जनजीवन भी प्रभावित होता है। एक साथ चुनाव कराने से न केवल देश का विकास रफ्तार पकड़ेगा, बल्कि चुनावी प्रक्रिया भी सुगम होगी और जनता को बार-बार चुनावी माहौल का सामना नहीं करना पड़ेगा।