दिल्ली में कैसे की जाती है नकली दवाओं की सप्लाई, जल्दी क्यों नहीं दबोचे जाते आरोपी? पढ़िए पूरी रिपोर्ट

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शंकर सिंह, नई दिल्ली: नकली दवा के कारोबार में करोड़ों रुपये का मुनाफा होने से सिंडिकेट से जुड़े मेंबर्स दोबारा इसी धंधे को करने लग जाते हैं। दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने जिस रैकेट का सोमवार रात को भंडाफोड़ किया है, उसका सरगना पिछले साल भी नकली-अवैध दवा की बड़ी खेप के साथ अरेस्ट हो चुका था। वह, महज तीन महीने बाद जमानत पर छूट कर आ गया था। एक्सपर्ट्स बताते हैं कि पुलिस इंडियन पीनल कोड (IPC) या भारतीय न्याय संहिता (BNS) के तहत केस दर्ज करती है। इसके तहत अधिकतम सजा का प्रावधान 7 साल है। इसी का फायदा उठा कर आरोपी जमानत लेने में सफल रहते हैं।



ड्रग कंट्रोल डिपार्टमेंट को होना होगा एक्टिव

पुलिस अफसर बताते हैं कि केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के अपने ड्रग कंट्रोल डिपार्टमेंट होते हैं। इनके पास ड्रग इंस्पेक्टर होते हैं, जिनका काम नकली या अवैध दवाओं को धंधे पर निगरानी करना होता है। ये दवाइयों की फैक्ट्रियों से लेकर मेडिकल शॉप तक छापेमारी कर सकते हैं और सैंपल लेकर जांच के लिए भेज सकते हैं। ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट 1940 के तहत मुकदमा दर्ज करने का अधिकार इन्हीं के पास होता है। इसके तहत नकली दवा का काम करने वालों को उम्रकैद तक का प्रावधान है। अगर ड्रग डिपार्टमेंट और पुलिस मिलकर नकली दवा के खिलाफ अभियान चलाए तो ज्यादा कारगर रहेगा।



सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर क्या कहा है?

दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने अपने कई फैसलों में कहा है कि ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट 1940 के तहत मुकदमा दर्ज करने का अधिकार पुलिस के पास नहीं है। इसे सिर्फ ड्रग इंस्पेक्टर ही कर सकता है। लिहाजा केंद्र और राज्य ड्रग कंट्रोल डिपार्टमेंट को इसके लिए कारगर योजना बनाने की दरकार है। पुलिस अधिकारी बताते हैं कि इनकी जांच और केस करने की प्रक्रिया भी काफी लंबी है। ड्रग इंस्पेक्टर पहले नकली बताई जा रही दवा का सैंपल लेगा, जिसे लैब में भेजा जाएगा। इसकी रिपोर्ट आने में एक से डेढ़ साल तक लग जाता है। इस अवधि में नकली दवा के सिंडिकेट की तरफ से अहम सबूत नष्ट करने की आशंका रहती है।



पुलिस आईपीसी या बीएनएस के तहत ही मुकदमा दर्ज कर सकती है, जिनमें कड़े सजा का प्रावधान नहीं है। पुलिस अफसर बताते हैं कि नकली दवा के धंधे से जुड़े आरोपियों पर शिकंजा कसने के लिए पूरी चेन को पकड़ना जरूरी है, ताकि यह साबित हो सके कि ये सभी सोची-समझी साजिश के तहत धंधा कर रहे हैं। नकली दवा बनाने वाली फैक्ट्री, सप्लायर, ट्रेडर, रिटेलर और कंस्यूमर की पूरी चेन तक पहुंचना पड़ता है। आपस में मिलीभगत के साक्ष्य जुटाने पड़ते हैं। अगर यह कड़ी नहीं जुड़ पाई तो दुकानदार या ट्रेडर या दुकानदार यह कहने लगता है कि उसने दवा खरीदी है, जिसका नकली होने का उसे पता ही नहीं था।



ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के जरिए भी बेची जा रही नकली दवा

इस वजह से जान को जोखिम में डालने में जुटे 'जीवन भक्षक' दवा बाजार में उतारने वाले आसानी से कोर्ट से जमानत में लेने में सफल रहते हैं। इसके बाद फिर से नकली दवा को सिंडिकेट को जिंदा कर लेते हैं। सोशल मीडिया और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के जरिए इन नकली दवाओं को धड़ल्ले से बेचते हैं। आम पब्लिक बाजार से सस्ते रेट में मिलने से इन्हें खरीद लेती है। देश के कई नामी अस्पताल तक में नकली दवा सप्लाई होने का खुलासा हुआ है। पुलिस अफसर बताते हैं कि दिल्ली के एक नामी अस्पताल की जांच में खुलासा हुआ कि वहां तीन महीने में कैंसर के 7300 मरीज ओपीडी में आए थे, जिनमें से सिर्फ छह फीसदी ही जीवित थे।



विदेश से आती नकली दवा की खेप



दिल्ली पुलिस ने पिछले साल एक सीरियाई नागरिक को नकली दवा रैकेट से जुड़ होने के आरोप में गिरफ्तार किया था। जांच में पता चला कि ये कूरियर के जरिए उन देशों से दवा मंगवाने का दावा करता था, जहां ये सस्ती मिलती थी। इसकी आड़ में वो असली के बीच में नकली दवा या इंजेक्शन में डाल देता था। यानी अगर पांच बॉक्स असली दवा हैं तो पांच नकली भी डाल दी जाती थी। यह इस तरह से पैक होती थी, जिसे पकड़ना मुमकिन नहीं था। विदेश से सस्ती दवा के लालच में जरूरतमंद इनके झांसे में आ जाते हैं। पूरी चेन को पकड़ना और साबित करना मुश्किल होता है। इससे आरोपी जमानत लेने में सफल रहते हैं।



200 बिलियन डॉलर का कारोबार



वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) के मुताबिक, दुनिया में नकली दवा का कारोबार 200 बिलियन डॉलर यानी करीब 16,60,000 करोड़ रुपये का है। इनमें से 67 फीसदी जान के लिए खतरा होती हैं। बाकी खतरनाक ना हों, लेकिन इलाज वाला सॉल्ट उनमें नहीं होता है। इस वजह से मरीज ठीक नहीं होता है, जिसकी तबीयत बिगड़ती चली जाती है। आखिर में मौत के मुंह तक चला जाता है। नकली या घटिया दवाओं के एक्सपोर्ट और इंपोर्ट का भारत विश्व का चौथा सबसे बड़ा बाजार है। एसोचैम की स्टडी के मुताबिक, भारत में 25 फीसदी दवाएं नकली या घटिया हैं, जिनका देश में 352 करोड़ रुपये का कारोबार है।