15 दिन में 57,000 करोड़ फुर्र... डोनाल्ड ट्रंप के आने से और बढ़ेगा यह सिलसिला! क्या करें इनवेस्टर्स?

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नई दिल्ली: सेंसेक्स में इस महीने करीब 2,300 अंक की गिरावट आई है जबकि निफ्टी 2.6% गिरा है। इस गिरावट में विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) की बिकवाली की अहम भूमिका रही है। उन्होंने इस महीने भारतीय बाजार से 50,000 करोड़ रुपये से अधिक की निकासी की है। आशंका जताई जा रही है कि डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिका का राष्ट्रपति बनने के बाद FII का आउटफ्लो बढ़ सकता है क्योंकि अमेरिका समर्थक नीतियों के कारण वॉल स्ट्रीट में लिक्विडिटी वापस आ सकती है।
साल 2025 के पहले 15 कारोबारी दिनों में FII ने 57,000 करोड़ रुपये से अधिक मूल्य के भारतीय शेयर बेचे हैं।कंपनियों के तीसरी तिमाही के इनकम के नतीजे बहुत ज्यादा उत्साहजनक नहीं हैं। इस कारण कई विदेशी कंपनियां अपना निवेश निकाल रही हैं। इनक्रेड इक्विटीज का अनुमान है कि 4% सेल्स ग्रोथ सालाना आधार पर फ्लैट रही है। TCS और रिलायंस इंडस्ट्रीज (RIL) जैसी दिग्गज कंपनियों के नतीजे सकारात्मक हैं लेकिन जोमैटो के आंकड़े खपत में सुस्ती दिखाते हैं। बोफा सिक्योरिटीज के एशिया में फंड मैनेजरों के बीच कराए गए एक सर्वे से पता चलता है कि भारत निवेशकों के रडार से बाहर है और अधिकांश एनालिस्ट्स को भारत के इक्विटी बाजारों में और गिरावट की आशंका है।
क्या करेंगे ट्रंपएनालिस्ट्स के मुताबिक निवेशकों को लगता है कि ट्रंप अपने वादों पर अमल करने के साथ-साथ अनावश्यक उथलपुथल से बचने की कोशिश करेंगे। लेकिन कोई भी अत्यधिक टैरिफ या सख्त आव्रजन नीति इकॉनमी के संतुलन को बिगाड़ सकती है। यदि ट्रंप की व्यापार नीतियों और व्यय योजनाओं से महंगाई बढ़ती है तो यह फेड के रेट कट साइकिल गति को चुनौती दे सकती हैं और बॉन्ड यील्ड को बढ़ा सकती हैं। अमेरिकी बाजार में कमोडिटी फ्यूचर्स ट्रेडिंग कमीशन फंड ने जनवरी 2016 के बाद से डॉलर पर अपनी सबसे बड़ी लॉन्ग पोजीशन बनाई है, जो एक मजबूत अमेरिकी अर्थव्यवस्था, लंबे समय तक उच्च ब्याज दरों और ट्रंप की नीतियों पर दांव लगा रही है।बढ़ते डॉलर ने भारतीय रुपये को लगभग 3% गिराकर 86.70 रुपये के रिकॉर्ड निचले स्तर पर ला दिया है।
विश्लेषकों ने चेतावनी दी है कि यदि टैरिफ और आव्रजन नियंत्रण जैसे ट्रंप अभियान के कुछ प्रमुख वादे लागू किए जाते हैं, तो महंगाई और ट्रेजरी यील्ड पर दबाव बढ़ सकता है। इससे भारत में पूंजी प्रवाह प्रभावित हो सकता है। इससे भारत सहित उभरते बाजारों में आगे भी बिकवाली का दबाव रहने की आशंका है, क्योंकि लीवरेज ट्रेड समाप्त हो रहे हैं और बॉन्ड यील्ड में बढ़ोतरी से इक्विटी मूल्यांकन में सुधार हो रहा है। इक्विटी बाजारों को स्थिर करने के लिए यह अहम है कि बॉन्ड यील्ड और अमेरिकी डॉलर स्थिर रहें। निवेशकों को क्या करना चाहिए?कोड एडवाइजर्स के पार्टनर और फंड मैनेजर ऋषभ नाहर ने कहा, 'वास्तविक जोखिम अस्थिरता नहीं है बल्कि उन एसेट्स को होल्ड करना है जो अपने मूल्यांकन पर खरे नहीं उतरते हैं।
निवेशकों को सक्रिय रूप से कमजोर होल्डिंग्स को कम करना चाहिए। खासकर उन होल्डिंग्स से पीछा छुड़ाने की जरूरत है जिनमें ग्रोथ की संभावना नहीं है।' उनका सुझाव है कि सोने और उच्च-गुणवत्ता वाले लोन के लिए रणनीतिक आवंटन अस्थिरता को कम कर सकता है जबकि रिडिप्लॉमेंट के लिए लिक्विडिटी बनाए रख सकता है।