सहयोग संग सावधानी

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भारत और चीन के बीच बुधवार को हुई विशेष प्रतिनिधियों की बातचीत में बनी सहमति इस बात का ठोस संकेत है कि दोनों देशों के रिश्तों में पिछले चार साल से आया ठहराव धीरे-धीरे दूर हो रहा है। हालांकि यह प्रक्रिया अभी शुरुआती चरण में है और इससे जुड़े कई किंतु-परंतु कायम हैं। मानसरोवर यात्रा : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग की रूस के कजान में ब्रिक्स शिखर बैठक के दौरान हुई मुलाकात के बाद से मतभेद दूर करने की प्रक्रिया में जो तेजी आई, उसका असर पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर बने माहौल पर भी दिखा। पांच साल के अंतराल पर हुई विशेष प्रतिनिधियों की बैठक में सहमतियों पर अमल की तो पुष्टि हुई ही, यह संकेत भी मिला कि अब दोनों पक्ष इससे आगे बढ़ने को तैयार हैं। बॉर्डर ट्रेड, ट्रांस बॉर्डर नदियों पर डेटा शेयरिंग और मानसरोवर यात्रा की संभावनाएं वाकई उत्साह बढ़ाने वाली हैं। सहयोग पर जोर :
जैसे-जैसे सीमा संबंधी मसलों पर सहमति बन रही है और वहां माहौल सामान्य होने की तरफ बढ़ रहा है, दोनों देशों के रुख में सहयोग पर जोर भी बढ़ता जा रहा है। ध्यान रहे, चीन का काफी समय से आग्रह रहा है कि LAC से जुड़े मसलों को एक तरफ करके सहयोग बढ़ाया जाए, लेकिन भारत अपने इस रुख पर अडिग रहा कि जब तक LAC पर हालात सामान्य नहीं होते, रिश्ते सामान्य नहीं हो सकते। ऐसे में यह गौर करने वाली बात है कि अब भारत की तरफ से भी सहयोग का दायरा बढ़ाने की संभावना पर पॉजिटिव रुख दर्शाया जा रहा है। बयानों में अंतर :
इस बात को भी कुछ हलकों में रेखांकित किया गया है कि संबंधों में सुधार और बातचीत में प्रगति को व्यक्त करने के दोनों पक्षों के तरीकों में पूरी तरह समानता नहीं है। मिसाल के तौर पर, बातचीत के बाद दोनों तरफ से जो अलग-अलग बयान जारी किए गए, उनमें अंतर है। जहां चीन के बयान में स्पष्ट शब्दों में सर्वसम्मति के छह बिंदु गिनाए गए हैं, वहीं भारत के बयान में इन्हें सर्वसम्मति करार देने से बचा गया है। LAC पर निर्माण :
अमेरिकी रक्षा मंत्रालय की ओर से बुधवार को ही जारी पेंटागन की सालाना रिपोर्ट की यह बात भी गौर करने लायक है कि चीन ने न तो गलवान घाटी में जून 2020 को हुई सैन्य झड़प के बाद इस क्षेत्र में बढ़ाई गई सैन्य तैनाती में कोई कमी की है और न ही टैंकों, मिसाइलों व अन्य भारी हथियारों की संख्या में कोई कटौती की है। हालांकि अभी उस इलाके से सैन्य वापसी की प्रक्रिया शुरू होनी बाकी है, लेकिन फिर भी चीन के पिछले रेकॉर्ड को देखते हुए सतर्क रहने की जरूरत से इनकार नहीं किया जा सकता।