संपादकीय: गतिरोध तो टूटा भारत-चीन, LAC पर बनी सहमति

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भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर चले आ रहे गतिरोध का टूटना न केवल द्विपक्षीय रिश्तों के लिहाज से बड़ी खबर है बल्कि अंतरराष्ट्रीय रिश्तों के मौजूदा समीकरणों के मद्देनजर भी एक गंभीर घटना है। यह बताती है कि सही नजरिये के साथ और समुचित ढंग से कोशिश की जाए तो बड़े से बड़ा विवाद भी बातचीत से सुलझाया जा सकता है। 2020 से पहले की स्थिति इस समझौते में भारत के लिए संतोष की बात यह है कि LAC पर फिर से 2020 के पहले जैसी स्थिति बन गई। यही वह सबसे बड़ा मुद्दा था, जहां बातचीत अटक जाती थी। विवाद से जुड़े कई बिंदुओं पर सहमति बन चुकी थी। बाकी मसलों पर भी बातचीत चल रही थी। चीन का कहना था कि पूर्ण सहमति आगे-पीछे बनती रहेगी, तब तक हमें द्विपक्षीय रिश्तों को सामान्य बनाने की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। लेकिन भारत का स्पष्ट रुख था कि जब तक LAC पर 2020 से पहले जैसी स्थिति नहीं बनती, तब तक दोनों देशों के रिश्ते सामान्य हो ही नहीं सकते। विश्वास बहाली के कदम
साफ है कि इस सहमति ने रिश्तों को सामान्य बनाने वाले प्रयासों के लिए जमीन तैयार कर दी है। हालांकि अभी इस सहमति को जमीन पर लागू करने का काम बाकी है और उसके बाद भी रिश्तों में विश्वास बहाल करने के प्रयासों पर ध्यान देना होगा। जिस तरह के हालात में गलवान घाटी में दोनों पक्षों में हिंसक झड़प हुई, वैसी स्थिति फिर न बने इसके लिए दोनों तरफ से कई स्तरों पर कदम उठाने होंगे। ब्रिक्स बैठक पर नजरें
यह सहमति ऐसे समय बनी, जब रूस में ब्रिक्स देशों की शिखर बैठक हो रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बैठक के सिलसिले में रूस में हैं। वहां चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के साथ द्विपक्षीय बैठक की राह में जो सबसे बड़ा रोड़ा था, वह दूर हो चुका है। देखना होगा कि दोनों नेताओं के बीच यह बैठक होती है तो उसमें किस तरह की सहमति बनती है। भारत और चीन के बीच इस नई बनी सहमति का ब्रिक्स शिखर बैठक के माहौल और उसके अजेंडे पर किस तरह का पॉजिटिव प्रभाव पड़ता है, इस पर भी प्रेक्षकों की नजरें लगी हैं। किसी के खिलाफ नहीं
जैसा कि खुद प्रधानमंत्री मोदी ने दो दिन पहले स्पष्ट किया कि ब्रिक्स गैर-पश्चिमी देशों का मंच भले हो, यह पश्चिम विरोधी मंच नहीं है। यह किसी के खिलाफ नहीं है। वैसे भी भारत पहले से ही राष्ट्रीय हितों पर आधारित स्वतंत्र और संतुलित नीति का अनुसरण करता रहा है। ऐसे में अगर चीन और भारत के द्विपक्षीय रिश्तों में कड़वाहट कम होती है तो यह किसी भी अन्य देश की चिंता का कारण नहीं होना चाहिए।