हम साथ-साथ हैं
जब अमेरिका में बाइडन सरकार की विदाई और नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के वाइट हाउस में स्वागत की तैयारियां चल रही हैं, भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर की छह दिनों की अमेरिका यात्रा ने स्वाभाविक ही ध्यान खींचा है। यात्रा का मकसद यह सुनिश्चित करना है कि बदलते वैश्विक माहौल और अमेरिका में हो रहे सत्ता परिवर्तन से द्विपक्षीय रिश्तों की सहजता प्रभावित न हो। पोलराइज्ड माहौल :
अगर इस यात्रा की पृष्ठभूमि देखी जाए तो साफ है कि पिछले महीने अमेरिका में हुए राष्ट्रपति चुनाव अस्वाभाविक रूप से पोलराइज्ड माहौल में हुए। दोनों पक्षों ने एक-दूसरे पर जिस तरह के आरोप लगाए और नीतियों की जैसी तीखी आलोचना की, उससे उपजी कड़वाहट चुनावों तक सीमित रह पाएगी, ऐसा विश्वासपूर्वक नहीं कहा जा सकता। ट्रंप की घोषणाएं : नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप अपनी मुखरता के लिए जाने जाते रहे हैं, लेकिन राष्ट्रपति चुने जाने के बाद शपथ ग्रहण से पहले अपनी सरकार के लिए नियुक्तियों और कई बयानों के जरिये यह संकेत दे दिया कि अहम वैश्विक मसलों पर उनकी सोच क्या है। नतीजे के तौर पर बाइडन प्रशासन के आखिरी दिनों के कुछ फैसलों को आगामी सरकार की राह मुश्किल बनाने वाला माना गया। इस वजह से यह संदेह बढ़ा कि कहीं अमेरिका में सत्ता परिवर्तन के बाद की नीतियों पर इस कड़वाहट का बेजा असर न पड़े। प्रो-एक्टिव कदम :
ऐसे में विदेश मंत्री जयशंकर की इस यात्रा को संभावित अनिश्चितताएं खत्म करने की एक प्रो-एक्टिव कोशिश के रूप में देखा जा सकता है। इस दौरान जयशंकर न सिर्फ बाइडन प्रशासन के लोगों से मिलेंगे बल्कि ट्रंप की टीम के अहम लोगों से भी उनकी मुलाकात और बातचीत होगी। विदेश मंत्री की इस यात्रा की तैयारी के क्रम में विदेश सचिव विक्रम मिस्री और अमेरिका में भारतीय राजदूत विनय क्वात्रा की अमेरिकी थिंकटैंक के लोगों के साथ ही बाइडन प्रशासन और ट्रंप की टीम के सदस्यों से संयुक्त बैठकों से भी इस बात की पुष्टि होती है। दोतरफा हित :
पिछले दो-ढाई दशकों में अमेरिका और भारत के रिश्तों में हुई प्रगति को ध्यान में रखें तो यह कोशिश अस्वाभाविक नहीं लगती। साल 2000 में जो द्विपक्षीय व्यापार महज 20 बिलियन डॉलर था, वह 2023 में बढ़कर 195 बिलियन डॉलर हो गया। इसी अवधि में द्विपक्षीय रक्षा व्यापार शून्य से बढ़कर 24 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया। इस साल के अंत तक द्विपक्षीय व्यापार 200 बिलियन डॉलर पार करने की अपेक्षा है। यही नहीं, 2023 में अमेरिका भारत में रेमिटेंस के सबसे बड़े स्रोत के रूप में उभरा। इनके साथ ही मौजूदा वैश्विक समीकरणों में दोनों देशों के बीच तालमेल की अहमियत को देखें तो स्पष्ट हो जाता है कि दोनों देशों के संबंधों की सहजता सुनिश्चित करने का प्रयास स्वाभाविक ही नहीं आवश्यक है।
Next Story