सबका साथ जरूरी

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एक देश एक चुनाव पर अमल की दिशा में ठोस कदम उठाते हुए केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इससे संबंधित प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। विपक्षी पार्टियां अभी भी इसके खिलाफ हैं, लेकिन सत्ता पक्ष इसे अमल में लाने पर अडिग है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि संसद में इस पर किस तरह की रस्साकशी होती है। विचार बुरा नहीं : वैसे मूल रूप से पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने का विचार बुरा नहीं है। चाहे अलग-अलग चुनावों पर होने वाले खर्च की बात हो या सरकार के कामकाज में इसकी वजह से होने वाली दिक्कतों की या देश के राजनीतिक माहौल में बनने वाले तनाव की- हर तरह से यह बात सुविधाजनक लगती है कि पांच साल में एक ही बार पूरे देश के चुनाव करा लिए जाएं ताकि बाकी समय सारी सरकारें विकास कार्यों पर फोकस कर सकें। लोकतांत्रिक चेतना :
सुविधा के इस तर्क से आगे बढ़ने पर लोकतांत्रिक चेतना का सवाल आता है। किसी भी लोकतंत्र में चुनावों को सिर्फ सुविधा और खर्च के नजरिए से नहीं देखा जा सकता। लोकतंत्र चुनाव में वोट देने की प्रक्रिया तक सीमित रहने वाली चीज नहीं है। असल बात समाज की लोकतांत्रिक चेतना है। उसका मजबूत बने रहना और समय-समय पर शांतिपूर्ण तरीकों से व्यक्त होते रहना जरूरी है। देश के अलग-अलग हिस्सों में समय-समय पर चुनाव होते रहें तो इस चेतना को निरंतरता मिलती है जो इसकी मजबूती को बनाए रखने में सहायक होती है। व्यावहारिक पहलू :
इसके साथ ही व्यवहार का पहलू भी जुड़ा है। लोकतंत्र एक जीवंत भाव है और यह सिर्फ स्थिरता में नहीं बल्कि अस्थिरता में भी खिलता है। ध्यान रहे, शुरुआती डेढ़ दशक तक देश में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होते रहे। लोकतांत्रिक प्रक्रिया के सामान्य उतार-चढ़ावों के क्रम में ये अलग-अलग होने लगे। अगर एक साथ चुनाव शुरू कराने के बाद फिर से अविश्वास प्रस्ताव या खंडित जनादेश के चलते यह क्रम बिगड़ता है तो उसे बनावटी ढंग से एक साथ बनाए रखना लोकतांत्रिक सहजता के लिहाज से कितना उचित होगा, इस पर भी विचार करना जरूरी है। क्षेत्रीय आकांक्षा :
एक साथ चुनाव पर फैसला करते हुए क्षेत्रीय दलों के तर्क को भी दरकिनार नहीं किया जा सकता। उनकी इस बात में दम है कि एक साथ चुनाव कराने से मतदाताओं के मन पर राष्ट्रीय मसले हावी हो सकते हैं। बहरहाल, यह बिल अभी संसद में पेश किया जाना है। ऐसे में उम्मीद की जानी चाहिए कि वहां इसके सभी पहलुओं पर बारीकी से विचार-विमर्श होगा और फिर सभी पक्षों के हितों व तर्कों को ध्यान में रखते हुए ही कोई अंतिम फैसला लिया जाएगा।