'स्त्री' और 'सिटाडेल: हनी बनी' के मेकर्स राज और डीके बोले- फिल्में बनाने के लिए उधार लिया, कार बेची, कंगाल हुए
इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले राज और डीके क्रिएटिविटी की भूख को शांत करने के लिए फिल्मों में लेखक-निर्देशक बने। हालांकि अपने करियर में इन दोनों को कई चुनौतियों और नाकामियों का सामना करना पड़ा, मगर 'स्त्री' का लेखन -निर्माण और फैमिली मैं उनके करियर का टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। अब वे लेकर आ रहे हैं, 'सिटाडेल:हनी बनी'। इस लेखक-निर्देशक जोड़ी से एक खास बातचीत। आप दोनों ही इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे,फिर निर्देशन के क्षेत्र में कैसे आ गए?
राज और डीके एनालेटिकल लोगों के बारे में कहा जाता है कि वे ब्रेन का लेफ्ट साइड इस्तेमाल करते हैं जबकि क्रिएटिव लोगों के बारे में माना जाता है कि वो दिमाग का दांयां साइड इस्तेमाल करते हैं, तो हम दोनों ही दिमाग का लेफ्ट साइड ज्यादा इस्तेमाल कर रहे थे और राइट हिस्सा खाली पड़ा हुआ था। हम लोग जो कर रहे थे, उसमें हमें संतुष्टि नहीं मिल रही थी। हम क्रिएटिव रूप से कुछ करना चाहते थे। हालांकि हमारा इंडस्ट्री से कभी कोई ताल्लुक नहीं रहा। हमें फिल्म स्कूल में जाने का समय भी नहीं मिला, क्योंकि हम तब काम कर रहे थे। कभी किसी के असिस्टेंट भी नहीं रहे। मगर जब हमें क्रिएटिव भूख कुछ ज्यादा ही सताने लगी, तो हमने सोचा कि हम अपने पैसे लगा कर अपनी फिल्म खुद बनाएं। हमारे पास तब घर नहीं था, मगर कार थी, तो हम दोनों ने अपनी -अपनी कार बेच दी। हमारी सारी सेविंग उस फिल्म में लगा दी। वही दौर हमारे लिए फिल्म स्कूल बन गया। हम एडिटिंग और फिल्म मेकिंग सीखने लगे और फिल्मों में आने का दुस्साहस कर बैठे। आप दोनों के लिए सबसे मुश्किल दौर क्या था?
राज और डीके: मुश्किल दौर बहुत मुश्किल था, जब हमारी दो बड़ी फिल्में नहीं चलीं और वो फिल्में थीं 'हैपी एंडिंग' और 'जेंटलमैन'। इन फिल्मों का बजट बहुत था, स्टार कास्ट भी काफी बड़ी थी। आम तौर पर जब आपकी दो बड़ी फिल्में न चलें, तो आपका करियर खत्म हो जाता है। ऐसे समय में कई लोग डिप्रेशन में भी चले जाते हैं, मगर हम लोगों ने अपना विश्लेषण किया और सोचा कि हम क्या गलत कर रहे हैं। हम मासी या क्लासी फिल्मों की बात नहीं करेंगे, मगर हमें लगा कि हमारी उन फ्लॉप फिल्मों में कुछ ज्यादा ही हो गया था। अब भी जब हम उन फिल्मों के बारे में सोचते हैं, तो लगता है कि कहानी तो बहुत अच्छी थी, हमने दिल लगाकर काम किया था, मगर शायद पैकेजिंग सही नहीं थी। आज भी उन दोनों फिल्मों की बड़ी फैन फॉलोइंग है, मगर उन फिल्मों के बाद हमें लगा कि हमें दोबारा आत्मनिर्भर होना पड़ेगा। वहां से हमारी दूसरी जर्नी शुरू हुई और तब हमने लिखी स्त्री और उसे प्रड्यूस भी किया। हमें लगा कि फिल्म अगर चली, तो बहुत अच्छी बात है। नहीं चली, तब भी कंट्रोल तो हमारे हाथ में ही होगा। हमारी सोच यही थी कि हमें जो चाहिए होगा, हम बनाएंगे। इसमें दूसरों की दखलंदाजी नहीं होगी। बस वहीं से सिलसिला शुरू हुआ। 'स्त्री',' फैमिली मैन', 'फैमिली मैन 2', 'फर्जी', 'गन्स एंड गुलाब', जो अब 'सिटाडेल:हनी बनी' तक चलता ही जा रहा है। 'स्त्री' को लेकर हम बहुत गर्व महसूस करते हैं, क्योंकि 'स्त्री' हमारी ही बेबी है। इसकी कहानी हम लोगों ने ही लिखी थी, तो इसके सृजनकर्ता हम ही हैं। ऐसे में जब पार्ट वन के बाद पार्ट टू इतनी हिट रही है, तो लगता है कि स्त्री और बड़ी हो गई है। अब्बास-मस्तान की तरह आप लोगों की भी निर्देशकों की जोड़ी है, आप लोगों में से कौन सृजनात्मक पक्ष देखता है और किस पर आर्थिक जिम्मेदारी होती है?
डीके :अब्बास-मस्तान साहब को मैं जब से देख रहा हूं, तो मैंने पाया कि वे एक जैसे दिखते हैं, उनका पहनावा भी एक जैसा ही है, तो शायद उनकी सोच भी मेल खाती होगी। हमारा भी ऐसा ही है, हमारे तमाम टेक्नीशियनों तक हम दोनों की एक ही राय पहुंचती है। कई बार दृश्यों को लेकर कभी मैं बात करता हूं, तो कभी डीके, मगर शूटिंग पर हमारा कन्विक्शन इतना एक-सा होता है कि किसी को याद नहीं रहता कि राज ने क्या कहा था और मैंने क्या, क्योंकि हम हमेशा सामान पक्ष में होते हैं। हमने जब शुरुआत की, तो हम एक साथ लिख रहे थे, एक साथ निर्देशित और निर्माण भी कर रहे थे। पैसों का बोझ हम दोनों को सहना पड़ता था। हम दोनों को ही बैंक अकाउंट खाली करना पड़ता था। राज : पहली फिल्म तो हमने ही बनाई थी। अपने पैसों से फ्रेंड्स और परिचितों से फंडिंग करके। यही वजह है कि हम बजट को लेकर बहुत जिम्मेदार महसूस करते हैं। हमारी सोच यही होती है कि जो भी पैसा लगे, वो पर्दे पर दिखे, वरना पैसों की वेस्टेज ही है। हम दोनों ही बराबर की जिम्मेदारी है, मगर डीके ज्यादा प्रैक्टिकल है। सिटाडेल जैसी मशहूर सीरीज के स्पिन ऑफ के रूप में सिटाडेल:हनी बनी को लाने का कितना दबाव महसूस कर रहे हैं?
डीके:इस सीरीज को लेकर खुशी भी है और प्रेशर भी, मगर हम आपको दें कि यह एक स्टैंडअलोन सीरीज है। पिछले सिटाडेल यूनिवर्स का एक छोटा-सा पार्ट है इसमें। हम मानते हैं कि रूसो ब्रदर्स के कारण सिटाडेल की पूरी दुनिया में अपनी एक ख्याति है, मगर हमारी कोशिश यही थी कि हम उस स्तर की एक ऐसी सीरीज बनाएं, जिसे पहले इंडिया में पसंद किया जाए, तो यह पूरी तरह से भारतीय दर्शकों को ध्यान में रख कर बनाई गई है। राज : हम चाहते थे कि हम इस बार कुछ नया और अलग करें। हमने थ्रिल और एक्शन पर दारोमदार रखा। देखिए प्रेशर का होना तो स्वाभाविक है, क्योंकि वो एक स्थापित सीरीज है, मगर मैं समझता हूं कि निर्देशक को हमेशा प्रेशर को झेलना पड़ता है। हम पर इससे ज्यादा प्रेशर फैमिली मैं 3 का है। (हंसते हैं) फैमिली मैन को लेकर भी लोगों की एक्सपेक्टेशन भी काफी बढ़ी हुई। देखिए, आम तौर पर सीक्वल चल जाती हैं, पसंद की जाती हैं, मगर एक मेकर की जिम्मेदारी होती है कि वह कुछ नया देकर दर्शकों को आकर्षित कर सके। सीरीज की अभिनेत्री समांथा रुथ के बारे में हमने पढ़ा कि इस भूमिका के लिए उन्होंने आप लोगों से गुजारिश की कि उनकी जगह किसी और को ले लें आप, क्या ये सच है?
डीके: उनका ये कहना प्रॉजेक्ट की भलाई के लिए था। असल में वे ये प्रॉजेक्ट करना चाहती थीं, मगर उनकी सेहत साथ नहीं दे रही थी। उनकी हेल्थ कंडीशन के कारण सभी लोग उनका इंतजार कर रहे थे और प्रॉजेक्ट शुरू नहीं हो पा रहा था, तो वे नहीं चाहती थी कि उनके कारण सीरीज की शूटिंग डीले हो। मगर हम ये सीरीज उन्हीं के साथ करना चाहते थे, तो हमने सभी ने इंतजार किया। वरुण ने भी। राज:वरुण (सीरीज के एक्टर वरुण धवन) भी अपने डेट्स दे चुके थे, मगर जब उनकी तबीयत खराब हुई, तो वरुण भी रुक गए। ये हम सभी का सामूहिक निर्णय था कि उनके ठीक होने के बाद उनके साथ ही शूटिंग की जाए। समांथा की मायोसाइटिस बीमारी के कारण आप लोगों को शूटिंग के दौरान किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा?
राज और डीके :उन्हें काफी चैलेंजेस फेस करने पड़े, क्योंकि उन्होंने जब शूटिंग शुरू की, तब वे महज पचास प्रतिशत ही ठीक हुई थीं, मगर चूंकि हम सभी वेट कर रहे थे शूटिंग शुरू होने का, तो वे काम पर लौट आईं थीं। हम सभी सेट पर काफी सपोर्टिव रहे और वैसे भी शूटिंग के समय जो भी सेहत संबंधी समस्याएं होती थीं, वे उनके कमरे तक सीमित होती थीं। एक बार लाइट्स-कैमरा-एक्शन शुरू होता, तो वे अपने किरदार में आ जाती थीं। समांथा की पूरी कोशिश रहती थी कि उनकी बीमारी का शूटिंग पर कोई असर न पड़े। शूटिंग शरू होने और उसके अंत होने तक वे एक प्रोफेशनल की तरह किरदार में रहती थीं।
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