कोल्हान टाइगर 'चंपाई' सरायकेला में दिखा पाएंगे दम? अपने ही गढ़ में पुराने प्रतिद्वंद्वी से मिल रही है कड़ी टक्कर
सरायकेला (सरायकेला-खरसावां): जमशेदपुर-सरायकेला रोड को छोड़कर जब आप एक सिंगल लेन वाली सड़क को 5-6 किलोमीटर आगे बढ़ते हैं तो एक गांव आता है, जिलिंगगोडा। यह गांव राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और कोल्हान के टाइगर कहे जाने वाले चंपाई सोरेन का है। गांव के पास पहुंचते ही आपको आदिवासी गांव की सादगी, साफ सफाई और सुरुचिपूर्ण सजावट नजर आने लगती है।
अलग-अलग इलाकों में प्रचार कर रहे हैं जिलिंगगोड़ा के युवा दोपहर का वक्त है, बहुत थोड़े से बुजुर्ग महिलाएं और बच्चे गांव में हैं और बाकी सब दादा यानी चंपई सोरेन के प्रचार के लिए अलग-अलग इलाकों में घूम रहे हैं। एक बड़े से पेड़ के नीचे दो अलग-अलग घेरा बनाकर कुछ पुरुष ताश खेल रहे हैं। सुबह खेत का काम करके गांव लौटे पुरुष अब खा पी कर मनोरंजन के नाम पर ताश पर हाथ आजमा रहे हैं। उनसे बात करनी चाही तो बात करने से मना कर दिया। एक बोला- क्या बात करें मीडिया से बात कर करके थक गए हैं। चाचा-भतीजे की लड़ाई पर ग्रामीणों ने साधी चुप्पीगांव के लोग चंपाई सोरेन और जेएमएम नेता हेमंत सोरेन के बीच जो कुछ भी हुआ, उस पर बात नहीं करना चाहते।
गांव के प्रधान गुनो मांझी का कहना था कि आपस में चाचा भतीजे के बीच में क्या हुआ, न हम जानते है और ना हम जानना चाहते हैं। नाम ना बताने की शर्त पर एक बुजुर्ग बोले कि अचानक मुख्यमंत्री बनाया और फिर बेइज्जत करके हटा दिया। ऐसा होता है क्या? चंपाई सोरेन के सीएम बनने से गांव का हुआ विकासहालांकि गुनो माझी कहते हैं कि चंपाई सोरेन के आने के बाद गांव का विकास हुआ है। गांव में बिजली लगी। कैसे जब वह मुख्यमंत्री बने तो पांच महीने में गांव की सड़कों की सूरत बदल गई। हालांकि उनका कहना था कि गांव में पानी की कमी और शिक्षा की स्थिति ठीक नहीं है।
गांव में मैट्रिक तक की स्कूल है, बच्चों को आगे पढ़ने के लिए कई किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। गांव में करीब डेढ़ सौ घर और 700 वोटर्स हैं। चंपाई किसी पार्टी में रहे, गांव के लोगों का मिलेगा साथगांव में आज भी चंपाई सोरेन का घर है, जो सामने से दूसरे आदिवासी घरों की तरह खपरैल और मिट्टी का बना हुआ है, लेकिन इस घर के आंगन से पीछे एक बड़ा आहता खुलता है, जहां एक बड़ी कोठी नुमा घर दिखाई देता है। पूर्व मुख्यमंत्री के घर पर आपको बाकायदा एक सुरक्षा कर्मी भी तैनात दिख जाएगा। गांव के ज्यादातर लोगों का मानना था कि चंपई दादा किसी भी पार्टी में रहें, गांव उनके साथ है।
सरायकेला का राजनीतिक समीकरण तेजी से बदल रहाकोल्हान में अपना ठीक ठाक आधार रखने वाली बीजेपी पिछली बार राज्य की 14 में से एक भी सीटें नहीं निकल पाई थी। इस स्थिति से उबरने के लिए पार्टी ने जेएमएम के कद्दावर नेता पर चंपाई सोरेन पर दांव खेला और उन्हें उनके पारंपरिक सरायकेला सीट से उतारने का फैसला किया। चंपाई के बीजेपी में जाने के बाद हेमंत सोरेन उन्हीं के लगातार प्रतिद्वंद्वी रहे गणेश महाली को अपनी पार्टी में लाकर चंपई सोरेन के खिलाफ उतार दिया है। चंपाई सोरेन का मृदुभाषी होना बड़ी ताकतफिलहाल मुकाबला दोनों के बीच है।
एक तरफ सरायकेला के लोग जहां इलाके का विकास न होने के चलते थोड़ा खफ़ा नजर आते हैं, दूसरी ओर सोरेन का मृदभाषी होना, सबसे हंस मुस्कुरा कर बात करना और लोगों की छोटी मोटी मदद करना जैसी चीज उनके पक्ष में जाती दिखाई देती हैं। आदित्यपुर इलाके में रहने वाले टाटा स्टील कंपनी के एक रिटायर्ड अधिकारी का कहना था कि पिछले 15 सालों से सरायकेला में चंपई सोरेन का एकछात्र राज्य चल रहा है। पांच साल सत्ता में रहने के बाद भी वह इलाके के विकास के लिए कोई खास काम नहीं करवा पाए। फिर भी वह मानते हैं कि दबंग महाली की अपेक्षा लोग मधुरभाषी सोरेन के साथ नजर आ रहे हैं।
विकास और रोज़गार का मुद्दा सबसे बड़ाऐसा नहीं है कि इलाके में चंपाई सोरेन के आलोचक नहीं है। आदित्यपुर इलाके से आने वाली सीनियर पत्रकार व जमशेदपुर वेस्ट से निर्दलीय चुनाव में उत्तरी अन्नी अमृता कहती है कि चंपाई सोरेन डेढ़ दशक से इलाके का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। लेकिन यहां सड़कों लिए कुछ नहीं कर पाए। हमारे इलाके में टाटा कांड्रा रोड, जो सीधे सरायकेला जाती है, उस रोड जो सड़क के स्तर पर जो कुछ दिख रहा है, वह हम स्थानीय लोगों ने लड़ झगड़ कर अपने स्तर पर करवाया है। चंपाई सोरेन के बीजेपी में आने से पार्टी नेताओं की जगी उम्मीदेंहालांकि बीजेपी को लग रहा है कि चंपाई सोरेन से के आने से कोल्हान के आदिवासी वोट उनकी तरफ आएंगे, लेकिन खुद कोल्हान में आदिवासी उनके साथ खड़े नहीं दिखाई दे रहे।
घाटशिला इलाके के मऊभंडार में स्थित हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड कारखाने के पास चाय की गुमटी पर बैठे नारायण सोय कहते हैं कि चंपई सोरेन को कोल्हान का टाइगर कहा जाता है। टाइगर के पीछे लोगों को तो जाना चाहिए, जनसमू को जाना चाहिए, लेकिन उनके साथ ना तो कोई विधायक गया और ना ही जिला स्तर या पंचायत स्तर का कोई नेता या कार्यकर्ता। सिर्फ अपने बेटे और अपने एक साथी को टिकट दिला पाए। नारायण सोय कहते हैं कि चंपाई के जाने से बीजेपी को कोई खास फायदा नहीं होगा, क्योंकि उनके साथ आदिवासी समाज के ज्यादातर लोग नहीं हैं।
उल्लेखनीय है कि कोल्हान में संताल, हो, मुंडा जैसे आदिवासियों की कई शाखाएं हैं, लेकिन स्थानीय राजनीति के जानकार सोरेन का संताल छोड़कर बाकी आदिवासी समुदायों पर वैसी खास पकड़ नहीं है। इसके अलावा, कोल्हान में रोजगार एक बड़ा मुद्दा है। आदिवासी सहित इलाकों में सभी समुदाय के लोग पलायन कर रहे हैं। चाचा चंपाई को घेरने के लिए भतीजे हेमंत ने बनाई रणनीतिहालांकि जेएमएम ने चंपई सोरेन के जाने के चलते कोल्हान में संभावित नुकसान को देखते हुए बाकायदा एक रणनीति तैयार की, जिसके तहत पार्टी ने चंपई के विरोधियों को अपने खेमे में लाने का काम किया।
पिछले कुछ दिनों में पार्टी ने कोल्हान इलाके से बीजेपी के खेमे से पूर्व विधायक लक्ष्मण टुडू, पूर्व विधायक कुणाल सारंगी, जिला परिषद अध्यक्ष बड़ी मुर्मू और गणेश महाली, वास्को बेसरा को अपनी ओर लाने का काम किया। गणेश महाली और चंपई सोरेन कई बार आमने-सामने टकरा चुके हैं। बीजेपी से आए इन सभी नेताओं का कोल्हान के अपने-अपने इलाकों में जनाधार है। सारंगी परिवार काफी समय से कोल्हान इलाके में राजनीति कर रहा है, खासकर ओड़िया वोटरों में उनकी अच्छी पकड़ है। वही पार्टी ने घाटशिला, पोटका और जुगसलाई जैसे इलाके की जिम्मेदारी बारी मुर्मू और लक्ष्मण टुडू को दी है।
चंपाई सोरेन बीजेपी से कोल्हान इलाके में तीन सीटें मांगी है, इनमें सरायकेला से वो खुद, जबकि घाटशिला से उनके बेटे बाबूलाल और खरसावां से उनके भरोसेमंद माने जाने वाले सोनाराम बोदरा मैदान में है। ऐसे में हेमंत ने बाकायदा बीजेपी से आए नेताओं के जरिए चाचा चंपई को इन सीटों तक उलझाए रखने की रणनीति पर काम किया है। अब चंपाई के लिए सिर्फ सरायकेला जीतना ही नहीं, घाटशिला और खरसावां को निकालना भी नाक का सवाल बन चुका है।
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