झुंझुनूं उपचुनाव में ओला परिवार की विरासत दांव पर, नए समीकरण जानकर छूट जाएंगे कांग्रेस के पसीने

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झुंझुनूं: यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि कई दशकों से झुंझुनूं पर ओला परिवार का दबदबा कायम रहा है,जो आज भी है लेकिन 13 नवंबर को हो रहे झुंझुनूं सीट के लिए उपचुनाव में इस बार विरोधियों ने इस दबदबे को नेस्तनाबूद करने की ठान ली है। शेखावाटी जनपद के प्रसिद्ध जाट नेता स्व.शीशराम ओला के सुपुत्र और सांसद बृजेंद्र ओला के लिए यह घड़ी काफी संकट वाली सिद्ध हो रही है।
दरअसल बड़े ओला के देवलोकगमन के बाद उनके लाडले को पहली बार कोई कठिन परीक्षा देनी पड़ रही है। अब तक तो वे अपने पिताश्री की साख से आगे बढ़कर विधायक और सांसद बन गए लेकिन इस चुनाव में उन्हें अपने सुपुत्र अमित ओला को विधानसभा की दहलीज तक पहुंचाने का कड़ा टास्क मिला है। जिसको पार पाने से पसीने छूट रहे है। 1996 के उपचुनाव का इतिहास दोहराने की तैयारी में बीजेपी शेखावाटी जनपद के झुंझुनूं जिले में भाजपा को जीत के अक्सर दिवास्वप्न ही देखने को मिले हैं। यहां के मतदाता का झुकाव अधिकतर कांग्रेस की ओर रहा है।
ऊपर से भाजपा में आपसी कलह इतनी अधिक रही है कि वो शांत होने का नाम ही नहीं लेती बल्कि भाजपाई एक- दूसरे को निपटाने के चक्कर में पार्टी को गर्त में ले जाते हैं। इस बार भाजपा ने रणनीति बनाकर वर्ष-1996 के उपचुनाव का इतिहास दोहराने की तैयारी की है। उस समय बड़े ओला सांसद निर्वाचित हो गए थे। तब उन्होंने सुपुत्र व वर्तमान सांसद बृजेंद्र ओला को विधायक बनने के लिए प्रयास किए थे लेकिन जनता ने उनके फैसले को नकारते हुए भाजपा के डॉ.मूलसिंह शेखावत को जीता दिया था। इस प्रकार झुंझुनूं में भाजपा का कमल खिल गया और इसी इतिहास को एक बार पुन: बीजेपी दोहराना चाहती है।
सीएम और गुढ़ा की मुलाकात के मायने इसके लिए रणनीतिकारों ने मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की पूर्व मंत्री राजेंद्र गुढ़ा से मुलाकात करवाई। इसके बाद झुंझुनूं के चुनाव दंगल में गुढ़ा की एंट्री हुई। गुढ़ा के ताल ठोकते ही कांग्रेस की आसान जीत के आगे पहला रोड़ा आता है ऊपर से ओला परिवार के प्रति अल्पसंख्यकों की नाराजगी आग में घी का काम कर गई। जब तक ओला इस खेल को समझते तब तक बयार उलटी बहने लगी। दूसरी ओर भाजपा के बागी बबलू चौधरी को चुनाव न लड़ने के लिए मना लेना भी पार्टी को खूब रास आ रहा है। जाटों के वोटो में सेंध लगी चुनाव को जमाये रखने के लिए भाजपा ने इसकी जिम्मेदारी मंत्री अविनाश गहलोत और सुमित गोदारा को दे रखी है, भाजपा का यह सटीक निर्णय है।
दरअसल हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सैनी को भाजपा बुलाकर जमा जमाया खेल बिगड़ना नहीं चाहती। इसलिए अविनाश गहलोत, माली और मंत्री सुमित गोदारा, जाट मतदाताओं को भाजपा की ओर खींचने का जिम्मा ले रखा हैं। झुंझुनूं सीट पर जाट,मुसलमान, राजपूत के अलावा सैनी मतदाता भी नतीजे को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। जाटों के वोटो में सेंध लग चुकी है मतलब साफ है समझदार कौम पलायन कर चुकी है। मंत्रियों की फौज के बाद मुख्यमंत्री करेंगे प्रचारमुस्लिम वोटरों ने ओला परिवार के खिलाफ बगावत का झंडा पहले से ही खड़ा कर रखा है और राजपूत मतदाता तो कमल को थामें बैठे हैं साथ ही मूल ओबीसी और स्वर्ण जाति का मतदाता का रुख भाजपा की ओर है।
ऐसे में झुंझुनूं का चुनाव भाजपा के लिए जीतने का बेहतर अवसर बन चुका है। झुंझुनूं में जीत की खुशबू आते देखकर भाजपाई काफी उत्साहित हैं। मंत्रियों की फौज के बाद कल मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा पार्टी प्रत्याशी राजेंद्र भांबू के समर्थन में प्रचार करने आ रहे हैं। सीएम शर्मा भांबू का नामांकन दाखिल करने के लिए भी आए थे। ओला परिवार ने मुस्लिम इलाकों में दी दस्तक बहरहाल जमी जमाई चौपड़ बिखरने से अब सांसद बृजेंद्र ओला भी चिंतित नजर आने लगे हैं। जीती बाजी पर सवालिया निशान लगता देखकर अब ओला परिवार ने मुस्लिम इलाकों में घर-घर दस्तक देना शुरू कर दिया है।
उन्हें विश्वास है अकलियत के लोग कांग्रेस का दामन बिल्कुल नहीं छोडेंगे। ओला कुनबे के इस प्रयास से कांग्रेस से छिटक गए मुस्लिम मतदाताओं की छीजत तो कम हो सकती है लेकिन जो खड्डा हो गया उसे भरना मुश्किल लगता है। कुल मिलाकर झुंझुनूं के चुनाव में ओला परिवार की विरासत को बचाए रखने का दारोमदार सांसद ओला पर है। देखना रोचक होगा बड़े ओला की लंबे समय तक सिखाई गई 'बारखडी' छोटे ओला कहा तक बोल पाते है। सियासी गलियारों में तो चर्चा आम है ओला की 'बलि' लगने की पूरी-पूरी संभावना बन गई है!