मां दुर्गा को महिषासुर वध के लिए आदिवासियों ने ही दिया था 'मंत्र', संताल समाज में दशहरा का अनोखा रूप 'दसांय'
जामताड़ाः झारखंड के जामताड़ा में आदिवासी समुदाय के लोग दशहरा के मौके पर दुर्गा पूजा को ‘दसांय’ के रूप में मनाते हैं। यह त्योहार उनकी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और उनके स्वशासन की रक्षा के लिए किए गए संघर्षों को दर्शाता है। दसांय की धूम संताल गांवों में बेलभरण पूजा के साथ शुरू हो जाती है और विजयदशमी तक चलती है। इस दौरान पारंपरिक गीत-संगीत और नृत्य से पूरा माहौल भक्तिमय हो जाता है।
नवरात्रि के दौरान दी जाती है मंत्र की दीक्षादसांय का त्योहार आदिवासी समुदाय के लिए बेहद खास होता है। यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। मान्यता है कि जब मां दुर्गा महिषासुर का वध कर रही थीं, तो उन्हें आदिवासियों ने ही मंत्र की दीक्षा दी थी। इसी मान्यता के चलते नवरात्रि के दौरान आदिवासी युवकों को मंत्र की दीक्षा दी जाती है। दसांय पर्व में घर-घर जाकर गुरु-शिष्य करते हैं नृत्यहर संताल गांव में एक गुरु होते हैं और उनके कई चेले होते हैं। दसांय के दौरान गुरु अपने चेलों को लेकर मांदर, नगाड़ा और करताल जैसे वाद्य यंत्र बजाते हुए गांव-गांव घूमते हैं।
गुरु और चेले दोनों ही धोती पहनते हैं और मोर पंख के साथ हर घर में जाकर नृत्य करते हैं। दसांय पर्व में गुरु अपने शिष्यों को देते हैं ज्ञानइस दौरान गुरु अपने चेलों को कई तरह की विद्याओं का ज्ञान देते हैं। इनमें जड़ी-बूटियों से इलाज और विभिन्न मंत्रों का ज्ञान शामिल है। यह ज्ञान संताल समुदाय को अपने गांव और समाज की रक्षा करने में मदद करता है। मंत्र की दीक्षा के बाद हुआ था महिषासुर का वधराष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक सुनील बास्की बताते हैं, ‘हमारे आदिवासी समाज में ऐसा माना जाता है कि जब मां दुर्गा महिषासुर का वध कर रही थी तो आदिवासी की ओर से ही उन्हें मंत्र की दीक्षा दी गई थी और उसके बाद महिषासुर का वध हुआ था।
जिस कारण नवरात्र में मंत्र की दीक्षा आदिवासी युवकों को दी जाती है। गुरु मेला में अपने शिष्यों पर चलाते हैं बाणविजयदशमी के दिन, गुरु अपने चेलों को लेकर मेले में जाते हैं। यहां विभिन्न जगहों से आए चेलों पर गुरु बाण चलाते हैं। जो चेला बाण से बच जाता है उसे सबसे अच्छा चेला घोषित किया जाता है। मेले से लौटने के बाद हर गांव के अखाड़े में विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। इसके बाद दसांय का त्यौहार समाप्त हो जाता है।
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