यूपी उपचुनाव के 'नहले' में 'दहला' क्यों तलाश रहे पक्ष-विपक्ष?
प्रेम शंकर मिश्रा, लखनऊ: यूपी में यूं तो नौ सीटों पर उपचुनाव हो रहा है, लेकिन इसको लेकर मच रहा शोर किसी आम चुनाव से कम नहीं है। उपचुनाव वाली नौ सीटों में पांच- गाजियाबाद, खैर, मीरापुर, मझवां और फूलपुर पर NDA काबिज था, जबकि कुंदरकी, करहल, सीसामऊ और कटेहरी सपा के पास थी। आठ सीटें विधायकों के सांसद बनने के चलते खाली हुई हैं, जबकि सीसामऊ में तत्कालीन सपा विधायक इरफान सोलंकी के सजायाफ्ता होने के चलते चुनाव हो रहा है। वेस्ट यूपी, सेंट्रल से लेकर पूर्वांचल तक की सीटों को समाहित करने वाले उपचुनाव के लिए सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही अपनी पूरी ताकत झोंक हुए हैं। शीर्ष नेता प्रचार में उतर चुके हैं। 20 को मतदान और 23 को नतीजे आने हैं। आइए जानते हैं कि उपचुनाव के 'नहले' पर नतीजों के जरिए पक्ष-विपक्ष दोनों ही आखिर नैरेटिव का 'दहला' क्यों तलाशने में जुटे हैं? NDA: 'विश्वास वापसी' का मौकालोकसभा चुनाव में यूपी में भाजपा की सीटें ही आधी नहीं हुई हैं, बल्कि नतीजों ने भाजपा, सहयोगी दलों और उनके समर्थकों के 'अजेय' होने के विश्वास की जमीन भी दरकाई है। इसलिए, उपचुनाव को सरकार-संगठन 'विश्वास वापसी' के मौके के तौर पर देख रहा है। हरियाणा के परिणाम के बाद यूपी के उपचुनाव में बेहतर नतीजों की तलाश 2027 के लिए आत्मविश्वास के लिहाज से भी अहम है।उपचुनाव में मुजफ्फनगर की मीरापुर सीट से रालोद लड़ रही है। मीरजापुर की मझवां सीट पिछली बार सहयोगी दल निषाद पार्टी ने जीती थी। यह सीट जिस लोकसभा का हिस्सा है, वहां से अपना दल (सोनलाल) की मुखिया अनुप्रिया पटेल सांसद हैं। इसलिए, उपचुनाव सहयोगी दलों की जमीनी अहमियत भी परखेगा।फूलपुर सीट भी भाजपा के लिए जमीनी पकड़ और संगठन की आंतरिक राजनीति के लिए अहम है। यह सीट डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के प्रभाव क्षेत्र से भी जुड़ती है। लोकसभा चुनाव के बाद से केशव के सुर 'अपनों' पर ही तीखे हैं। लेकिन, जिस तरह ओबीसी वोट खिसके, सवालों के घेरे में उनके सहित पार्टी के दूसरे ओबीसी चेहरे भी हैं। इसलिए, फूलपुर पर भी सबकी नजर है।सभी सीटों पर फिलहाल सीएम योगी आदित्यनाथ ने चुनाव प्रचार शुरू कर दिया है। प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी व संगठन महामंत्री धर्मपाल सिंह यहां बैठकें कर चुके हैं। 30 मंत्रियों के साथ ही हर सीट पर लगभग 10-10 विधायक जातीय समीकरणों के हिसाब से जमीन तैयार करने के लिए लगाए गए हैं। I.N.D.I.A.: 'बूस्टर' पर नजरलोकसभा चुनाव में यूपी में 50% से अधिक सीटें जीतकर I.N.D.I.A. के दलों ने भाजपा के अपने दम पर पूर्ण बहुमत की राह रोक दी। वोट शेयर और सीटों की संख्या के लिहाज से सपा का स्थापना के बाद का यह सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था। अब उपचुनाव से 2027 के लिए उम्मीदों के 'बूस्टर' पर नजर है।सपा ने अपने PDA (पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक) कार्ड को और मजबूती से उपचुनाव में चला है। नौ सीटों में चार पर मुस्लिम, दो पर दलित और तीन पर ओबीसी चेहरे उतारे गए हैं। इसमें गाजियाबाद की अनारक्षित सीट पर भी दलित चेहरे पर दांव शामिल है। अखिलेश यादव के इस्तीफे के बाद खाली हुई करहल सीट से लेकर सीसामऊ, कटेहरी और कुंदरकी के अलावा पार्टी की नजर NDA के कोटे वाली पांच सीटों पर भी है, जिसमें चार में लोकसभा चुनाव में सपा ने खूब वोट बटोरे थे।गठबंधन में सपा-कांग्रेस साथ हैं, लेकिन उपचुनाव में कांग्रेस ने उम्मीदवार नहीं उतारा है। अपने कोटे में आई 2 सीटें भी उसने वापस कर दी हैं। उपचुनाव दोनों दलों के बीच जमीनी कमिस्ट्री व यूपी के नेताओं का आपसी तालमेल भी परखेगा। खासकर, महाराष्ट्र में जिस तरह से कांग्रेस से अनबन चल रही है, यूपी में आगे की साझेदारी के लिए समन्वय अहम होगा।सपा मुखिया अखिलेश यादव अपने घर की सीट करहल के अलावा गाजियाबाद में भी चुनावी कार्यक्रम कर चुके हैं। उपचुनाव में चुनिंदा सीटों तक सीमित रहने वाले अखिलेश का पहली बार सभी सीटों पर प्रचार का कार्यक्रम बन रहा है। इसे आजमगढ़ सहित अन्य सीटों पर पहले के उपचुनावों में की गई गलती से बचने की कवायद के तौर पर देखा जा रहा है। BSP सहित थर्ड फ्रंट असर दिखाने को बेकरारपिछले एक दशक में दूसरी बार लोकसभा में शून्य हासिल करने वाली बसपा विपक्ष में रहते हुए पहली बार इतनी सीटों पर उपचुनाव में उतर रही है। इससे पहले सत्ता में रहते हुए इक्का-दुक्का सीटों पर ही बसपा ने उम्मीदवार उतारे थे। पार्टी के लिए हर चुनाव अब अस्तित्व की लड़ाई जैसा ही है।पिछले कुछ चुनावों से बसपा का कोर वोट लगातार खिसक रहा है। भाजपा के साथ ही हालिया लोकसभा चुनाव में सपा-कांग्रेस ने भी इसमें सेंध लगाई है। इससे मायावती की चिंता बढ़ी है। उपचुनाव की यह लड़ाई वोटरों की उस पूंजी को बचाने की भी है, जो बसपा के चुनाव से बाहर रहने पर दूसरे विकल्प तलाशने लगता है और इस कवायद में पार्टी से छिटक जाता है।बसपा ने हालांकि उम्मीदवार जरूर उतारे हैं लेकिन पार्टी मुखिया मायावती से लेकर उनके भतीजे आकाश आनंद तक किसी का भी चुनाव प्रचार का कोई कार्यक्रम तय नहीं हुआ है। इसलिए, जमीन पर पार्टी के उम्मीदवार स्थानीय संगठन, अपनी ताकत और शीर्ष नेतृत्व की मुख्यालय से आने वाली अपील के ही भरोसे हैं।नगीना से लोकसभा में जीत हासिल कर चौंकाने वाले चंद्रशेखर की आजाद समाज पार्टी भी उपचुनाव में ताकत आजमा रही है। असुदुद्दीन औवैसी की AIMIM भी कभी सपा की सहयोगी रही पल्लवी व कृष्णा पटले की अगुआई वाले अपना दल (कमेरावादी) के साथ उपचुनाव में उतरी है। ये छाप छोड़ेंगे या वोट कटवा बनेंगे, इस पर इनकी आगे राजनीतिक दिशा तय होगी। उपचुनाव: रोचक तथ्य
- 09 सीटों पर 90 उम्मीदवार मैदान में
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