अमेरिकी मीडिया भ्रष्ट, 'दुश्मन खेमा'... डोनाल्ड ट्रंप की जीत का प्रेस की आजादी पर क्या होगा असर? पढ़ें ग्राउंड रिपोर्ट
मधुलिका सिन्हा, न्यूयॉर्क: साल 2024 के राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की सत्ता में वापसी से सिर्फ अमेरिका में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में प्रेस की आजादी, मीडिया उद्योग के प्रभाव और जनता की राय को आकार देने में इसकी भूमिका पर गंभीर चर्चा शुरू हो गई है। ट्रंप ने जीत की घोषणा करते हुए अपने भाषण में जिस तरह से मीडिया को 'दुश्मन खेमा' कहा है, वह इस बात का स्पष्ट संकेत है कि है कि आने वाले समय में मीडिया को हिसाब-किताब के क्षण का सामना करना पड़ सकता है। पत्रकार एक-दूसरे से पूछ रहे हैं कि मीडिया की उपेक्षा करने वाले इस शख्स को पूरी दुनिया में मिली कवरेज आखिर क्या इशारा कर रही है? सूचनाओं के वातावरण में मीडिया अपनी आजादी के लिए किस जगह और किस स्तर पर खड़ा है?'द डेली वायर पॉडकास्टर' मैट वॉल्श ने ट्रंप की जीत पर एक्स पर लिखा, 'लीगेसी मीडिया आधिकारिक तौर पर मर चुका है। सूचनाएं पहुंचाने की उनकी क्षमता नष्ट हो गई है। ट्रंप ने साल 2016 में मीडिया पर युद्ध की घोषणा की थी, आज रात उन्होंने उसे पूरी तरह से परास्त कर दिया। वे फिर कभी प्रासंगिक नहीं होंगे।' सोशल मीडिया पर किसी गुमनाम टीवी अधिकारी का एक पोस्ट दिखाई दिया जिसमें लिखा था कि 'अगर आधे देश ने फैसला कर लिया है कि ट्रंप राष्ट्रपति बनने के योग्य हैं, तो इसका मतलब है कि वे मीडिया को सही तरीके से नहीं पढ़ या देख रहे हैं, हमने एक विवेकशील दर्शक वर्ग को पूरी तरह से खो दिया है।' ट्रंप ने मीडिया पर साधा निशाना उन्होंने कहा, 'ट्रंप की जीत का मतलब है कि मुख्यधारा का मीडिया अपने मौजूदा स्वरूप में मर चुका है। बेशक मीडिया को मरा हुआ कह देना अतिश्योक्ति है लेकिन यह टिप्पणी मीडिया की वास्तविक चिंताओं को दर्शाती है। जीत के तुरंत बाद ट्रंप ने जिस तरह का बयान दिया उसे ध्यान में रखते हुए पत्रकारों की यह चिंता वाजिब दिखती है। बुधवार की सुबह फ्लोरिडा के पाम बीच में बतौर राष्ट्रपति अपनी जीत की घोषणा करते हुए ट्रंप ने अपने समर्थकों, अपने परिवार और अपने प्रचार अभियान टीम को धन्यवाद देते समय बिना किसी संदर्भ के मीडिया पर निशाना साधते हुए कहा कि मेरे साथी और उपराष्ट्रपति चुने गए जेडी वेंस को मैंने प्रचार अभियान के दौरान अक्सर दुश्मनों के शिविर में जाते आते रहने को कहा था क्योंकि उन्हें भरोसा था कि वेंस इन सब दुश्मनों को धराशायी कर देंगे।ट्रंप ने इस संदर्भ में सीधे तौर पर सीएनएन और एमएसएनबी मीडिया समूह का नाम लिया। ट्रंप ने पेंसिल्वेनिया में हाल में एक चुनाव रैली के दौरान भी जुलाई में उनपर किए गए हमले का जिक्र करते हुए मजाक में कहा था कि अगर उनके खिलाफ एक और हत्या का प्रयास किया गया तो उन्हें पत्रकारों पर गोली चलने की कोई चिंता नहीं होगी। उन्होंने कहा 'मुझे केवल फर्जी खबरों से ही निशाना बनाया जा सकाता है लेकिन मैं इनकी परवाह नहीं करता। मीडिया वाले पूरी तरह से भ्रष्ट हैं।' इस कार्यक्रम में सीएनएन सहित अमेरिका के कई मीडिया समूहों के संवाददाताओं को प्रवेश की इजाजत नहीं दी गई। डोनाल्ड ट्रंप फॉक्स न्यूज से भी नाखुश ट्रंप का वर्षों से अमेरिकी प्रेस के साथ शत्रुतापूर्ण संबंध रहा है। वे अक्सर मीडिया को कुटिल और लोगों का दुश्मन करार देते रहे हैं। वह हमेशा प्रचारवादी मीडिया चाहते हैं। यहां तक कि रिपब्लिकन पार्टी की तरफ झुकाव वाले फॉक्स न्यूज से भी उन्हें अक्सर शिकायत रही है। पिछले महीने, उन्होंने डेमोक्रेटिक पार्टी का विज्ञापन दिखाए जाने पर फॉक्स न्यूज के मालिक मर्डोक से शिकायत की थी। हमने जब अपने स्तर पर यहां कुछ डेमोक्रेट और रिपब्लिकन समर्थकों से मीडिया के प्रति ट्रंप के रुख के बारे में जानना चाहा तो डेमोक्रट समर्थक भारतवंशियों ने कहा कि ट्रंप एक तानाशाह की तरह व्यवहार करते हैं। गुस्से से आपा खो देते हैं। यह बताता है कि वह एक परिपक्व राजनेता नहीं हैं। एक अन्य ने कहा कि थोड़ा इंतजार कीजिए आपको पता लगेगा कि मीडिया पर वह कैसा शिंकजा कसने वाले हैं। हम बस इतना चाहते हैं कि मीडिया अपनी ताकत बनाए रखे ट्रंप के डर से घुटने नहीं टेकने लगे। कुछ ने यह राय भी व्यक्त की कि ट्रंप दोबारा आने वाले नहीं हैं। इसलिए मीडिया के खिलाफ अगर उन्होंने उपेक्षा की अपनी नीति जारी रखी तो अगले राष्ट्रपति चुनाव में उनकी पार्टी को ही इसका फल भुगतना होगा। रिपब्लिकन समर्थकों का कहना था कि मीडिया हमेशा से ट्रंप की छवि खराब करने में आगे रहा है। खासतौर से सीएनएन जैसे मीडिया हाउस का तो एक मात्र एजेंडा ही यह है। ये लोग ट्रंप को एक राजनेता नहीं अपराधी की तरह पेश करते हैं। मीडिया के खिलाफ सख्त ऐक्शन लेंगे ट्रंप ?रिपब्लिकन समर्थकों ने यह भी कहा कि इन डेमोक्रेट लोगों ने ज्यादातर प्रवासियों को मीडिया में घुसा रखा है। ये सिर्फ ट्रंप की नहीं बल्कि पूरे अमेरिका की छवि खराब करते हैं। इन्हें टोको तो प्रेस की स्वतंत्रता का हवाला देते हैं। इन्हें लिखने बोलने की इतनी ही आजादी चाहिए तो अपने अपने देश वापस जाएं और वहां प्रेस की आजादी की झंडा उठाएं। यही वजह है कि मंगलवार को जब ट्रंप के जीत की खबर आई तो रिपब्लिकन की ओर झुकाव वाले मीडिया ने ट्रंप की जीत का शीर्षक लगाने की बजाए लिखा कि यह कॉरपोरट मीडिया की सबसे बड़ी हार है।इस पृष्ठभूमि में देखें तो , ट्रंप का पुनर्निर्वाचन कई प्रमुख मीडिया समूहों के साथ उनकी शत्रुता के एक नए दौर को दर्शाता है। उनके सामने कई सवाल हैं, जैसे कि क्या ट्रंप प्रशासन प्रेस के ख़िलाफ अपने इस रवैये को बदलेगा? या फिर कई मीडिया हाउस के लाइसेंस रद्द करने का कदम उठाएगा जैसा कि उन्होंने सुझाव कई बार दिया है, और क्या वह उन पत्रकारों को वाइट हाउस में घुसने की इजाजत नहीं देगा जो ट्रंप के आलोचक रहे हैं। यह भी सवाल है कि क्या कहीं ट्रंप को खुश करने के लिए कुछ मीडिया हाउस घुटने टेक देंगे और खबरों को सेंसर कर चलाएंगे। यदि ऐसा हुआ तो इसपर ट्रंप का विरोध करने वाले पाठक और दर्शक कैसी प्रतिक्रिया देंगे? अमेरिकी मीडिया ने भी कसी कमर कुछ को यह चिंता भी है कि सिर्फ अमेरिका ही नहीं पूरी दुनिया में सोशल मीडिया के जरिए सूचनाएं प्राप्त करने का चलन तेजी से बढ़ता जा रहा है जिससे मुख्यधारा मीडिया अपना प्रभाव खोता जा रहा है। मीडिया उपभोग पैटर्न में यह बदलाव पारंपरिक मीडिया के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती बन रही है। हालांकि इन तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद कई मीडिया संगठन ट्रंप की जीत की खबर आते ही अगले दिन अपने कर्मचारियों को यह आश्वासन देते नजर आएं कि स्वतंत्र पत्रकारिता पर आंच नहीं आने दी जाएगी। कॉनडे नास्ट के प्रमुख रोजर लिंच ने तुरंत एक्स पर पोस्ट किए संदेश में लिखा 'हम स्वतंत्र पत्रकारिता के सिद्धांतों को बनाए रखने के अपने मिशन में पहले से अधिक मजबूती के साथ काम करेंगे क्योंकि एक संपन्न और स्वतंत्र प्रेस, लोकतंत्र और हम सभी के साझा भविष्य के लिए महत्वपूर्ण है।' इसमें दो राय नहीं कि डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन में मीडिया को अब स्वतंत्र पत्रकारिता के महत्व के बारे में अपनी टीमों को आश्वस्त करने के साथ-साथ बदलाव की आवश्यकता को भी स्वीकार करने की चुनौती का सामना करना पड़ेगा। यही वह चीजें होंगी जो अमेरिकी पत्रकारिता के भविष्य और तेजी से ध्रुवीकृत समाज में लोकतंत्र के स्तंभ के रूप में सेवा करने की इसकी क्षमता को आकार देंगे। लेखिका मधुलिका सिन्हा वरिष्ठ पत्रकार हैं और अमेरिका में लंबे समय से रहती हैं।
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