कटि स्नान (Hip Bath) क्या है, जानिए इससे होने वाले अदभुत लाभ ...
कटि स्नान क्या है – कटि का अर्थ कमर होता है। इसलिए जब कटि स्नान कहा जाता है तो उसे कमर के नीचे का स्नान मान लिया जाता है। परन्तु प्राकृतिक चिकित्सा में कटि का अर्थ कमर से नीचे का भाग न होकर नाभि के नीचे का भाग होता है। इस कटि स्नान में नाभि के नीचे से लेकर जांघ आदि निचले अंगों को धोया जाता है। इस स्नान को कटि स्नान, पेड़ू स्नान, आदि नामों से जाना जाता है। पेड़ू का यह स्नान घर्षणयुक्त होना आवश्यक है। इसलिए इस स्नान का नाम ´घर्षण स्नान´ है.
घर्षण स्नान के लिए एक लकड़ी या मिट्टी का बर्तन अथवा कटि स्नान के लिए एक टब की आवश्यकता होती है। टब की गहराई इतनी होनी चाहिए कि उसमें आराम से बैठा जा सके तथा पानी डालने पर पानी नाभि तक पहुंच सके। इस स्नान में केवल कमर को ही पानी में भिगोकर स्नान किया जाता है, इसलिए इसे कटि-स्नान कहते हैं। इस टब की गहराई डेढ़ से दो फुट होती है। इस टब में पीठ को टिकाने के लिए सपाट लम्बाई होती है। इस टब में बैठकर ही घर्षण कटि स्नान किया जाता है
क्या क्या चाहिए :- टब, छोटा स्टूल, छोटा तौलिया, कम्बल, पानी|
जल का तापमान :- कटि स्नान में प्रयोग में लाये जाने वाले जल का तापमान शरीर के तापमान से कम रहना चाहिए तभी जल का प्रभाव शरीर पर हो सकेगा । गर्मी के दिनों में जल का तापमान 55 डिग्री फारनहाईट तथा सर्दियों में 70 से 85 डिग्री फारनहाईट रहना चाहिए | ठन्डे जल का तापमान बढ़ाने के लिए उसमे अलग से गर्म पानी मिला देना चाहिए |
कटि स्नान करने का समय : – कटि स्नान प्रारंभ में पांच मिनट से शुरू करके प्रतिदिन एक -एक मिनट बढ़ाते हुए पंद्रह मिनट तक किया जा सकता है | बच्चों व् कमजोर व्यक्तियों को पांच मिनट से अधिक नही लेना चाहिए | प्रातः खाली पेट कटि स्नान करना चाहिए |
कटि स्नान करने की विधि : – टब में इतना पानी भरें जिससे कि टब में बैठने पर पानी उपर नाभि तक एवं नीचे आधी जंघाओं तक आ जाये |टब में अधलेटी अवस्था [ जैसे आराम कुर्सी पर बैठते हैं ] में बैठ जाएँ | दोनों पैर टब के बाहर चौकी या किसी ऊँची चीज पर रख लें | ध्यान रहे कि पानी से पैर न भीगने पायें |रोयेंदार तौलिये से पेड(पेट)पर दायें से बाएं अर्ध चंद्राकर घर्षण करें [ मालिश करें ] |कटि स्नान के बाद शरीर में गर्मी लाने के लिए लगभग 15 -20 मिनट टहलें,व्यायाम करें अथवा कम्बल ओढ़कर लेट जाएँ |
विशेष सावधानी :- यदि कमजोरी अधिक हो तो सिर को छोडकर टब सहित पूरा शरीर एक कम्बल से ढक लें |कटि स्नान करते समय तब में पीछे से पीठ को बीच-बीच में हिलाते रहें, इससे रीढ़ के स्नायु में संचार होगा , फलस्वरूप शरीर में चेतनता ,फुर्ती आयेगी और रोगप्रतिरोधक क्षमता में भी वृद्धि होगी.
कटि स्नान से शरीर में होने वाली प्रतिक्रिया और लाभ क्या ह्?
साधारण सी दिखने वाली इस क्रिया का प्रभाव सम्पूर्ण शरीर पर पड़ता है | यदि यह कहा जाय कि “कटि स्नान प्राकृतिक चिकित्सा की संजीवनी बूटी है |” तो अतिशयोक्ति नही होगा |
पानी का तापमान शरीर के तापमान से कम होने के कारण टब में बैठते ही पेडू की अतिरिक्त गर्मी कम होकर पूरे पाचन तंत्र में संकुचन की स्थिति उत्पन्न होती है जिससे कई अंग जैसे लीवर,क्लोम ग्रंथि,आमाशय, छोटी आंत आदि में सक्रियता आती है और वे पर्याप्त मात्रा में पाचक रसों को स्रवित करना प्रारंभ कर देते हैं जिससे पाचन तंत्र की मजबूती के साथ ही जीर्ण कब्ज, जो सभी रोगों की जननी है , से भी छुटकारा मिलता है | इसके अतिरिक्त रीढ़ की हड्डी में पानी का स्पर्श होने से स्नायुविक रोग भी दूर हो जाते हैं |
कटि स्नान से लाभ :-
छोटी व् बड़ी आंत के अधिकांशतः सभी रोग कटि स्नान से दूर हो जाते हैं |पेडू की अतिरिक्त गर्मी के फलस्वरूप मल में जो स्वाभाविक नमी होती है, वह सूख जाती है जिसके कारण मल आंत में सूखकर कड़ा हो जाता है, इसी अवस्था को जीर्ण कब्ज या कोष्ठबद्धता कहते हैं | कटि स्नान से पेट की अतिरिक्त गर्मी पानी में निकल जाती है एवं कब्ज से मुक्ति मिलती है |दर्द रहित पेडू की पुरानी सूजन में विशेष लाभकारी है |पीलिया रोग में स्टीम बाथ के तुरंत बाद २-३ मिनट कटि स्नान करने के उपरांत पूर्ण स्नान करने से पित्त पर्याप्त मात्रा में निकलता है एवं पीलिया समाप्त हो जाता है |नये एक्जिमा में कटि स्नान अत्यंत लाभकारी है |नियमित कटि स्नान करने से शरीर की जीवनीशक्ति आश्चर्यजनक रूप से बढ़ जाती है जिससे कैंसर, लकवा, क्षय यानि टीबी जैसे भयंकर रोगों से बचाव होता है |कटि स्नान जननेंद्रिय की दुर्बलता एवं वीर्य के पतलेपन को दूर करता है |बबासीर , आंत, गर्भाशय की रक्तस्राव की अवस्था में कटि स्नान अत्यंत हितकारी है |
अगर ये समस्या है तो ?
रक्तस्राव की अवस्था में कटि स्नान लेते समय यह ध्यान रहे कि दोनों पैर चौकी पर रखने की बजाय किसी बर्तन में गर्म पानी में डुबोकर रखें | इस क्रिया को करने से पेडू में स्थित अतिरिक्त रक्त पैरों में उतर जाता है तथा पानी की ठंडक से पेडू सिकुड़ने लगता है, फलस्वरूप रक्तस्राव बंद हो जाता है |अनिद्रा, हिस्टीरिया, चिडचिडापन, स्नायुविक रोगों में कटि स्नान अति लाभप्रद है |
स्त्री रोगों में कटि स्नान से लाभ :-
स्त्रियों के लगभग सभी रोगों में कटि स्नान बहुत लाभकारी है |पुराने रक्तप्रदर, श्वेतप्रदर में कटि स्नान लाभ करता है |गर्भाशय की स्थानभ्रष्टता एवं जब गर्भाशय आदि अन्दर से बाहर आते मालूम हों तो कटि स्नान से आश्चर्यजनक रूप से लाभ पहुंचता है |गर्भवती स्त्री प्रसव से दो माह पूर्व से ही कटि स्नान लेना प्रारंभ कर दे तो बिना कष्ट के सामान्य रूप से प्रसव होगा |गर्भपात के लक्षण दिखाई पड़ने पर यदि 20 से 30 मिनट तक कटि स्नान लिया जाय तो गर्भपात रुक सकता है | इस अवस्था में सावधानीपूर्वक पेट को बहुत धीरे -धीरे रगड़ना आवश्यक है ।
बाल रोगों में कटि स्नान से लाभ :-
बच्चों को कटि स्नान करने से उनकी स्मरण शक्ति व् बुद्धि का विकास होता है |बच्चों को सोते समय बिस्तर में पेशाब करना एक ऐसा रोग है जिससे बच्चे में इस रोग के आलावा हीनभावना आनी प्रारंभ हो जाती है | इन बच्चों को यदि नियमित कटि स्नान कराना प्रारंभ कर दिया जाय तो कुछ ही दिनों में रोग से छुटकारा मिल जाता है |
सावधानियां :-
कटि स्नान खाली पेट ही लें |कटि स्नान ऐसी जगह में करना चाहिए, जहाँ पर ठंडी हवा के झोंके न आ रहे हों |पानी और शरीर का तापमान समान नही होना चाहिए |कटि स्नान लेने के डेढ़-दो घंटे तक स्नान नहीं करना चाहिए |न्युमोनिया, गठिया, दमा, साईटिका के तीव्र दर्द में कटि स्नान नही लेना चाहिए |एपेंडिक्स, गर्भाशय, मूत्राशय, बड़ी आंत, जननेंद्रिय के विभिन्न अवयवों की नई सूजन तथा ह्रदय रोग की ख़राब स्थिति में कभी भी ठन्डे पानी से कटि स्नान नहीं करना चाहिए |पहले दिन ही अधिक ठन्डे जल से कटि स्नान नहीं करना चाहिए बल्कि प्रथम दो-तीन दिन सामान्य जल – शरीर के तापमान से थोडा कम तापमान का जल .का प्रयोग करें तत्पश्चात क्रमशः प्रतिदिन जल के तापमान को कम करते जाएँ | आशा ह् आप सब इससे लाभ उठाएंगे।।
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